Perl Farming – सभी जानते हैं कि समुद्री घोंघे की सीप में मोती (Pearl) पैदा होता है, आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि UP के एक गांव के तालाब में ही मोती पैदा किए जा रहे हैं। फतहपुर के हसनपुर अकोढ़िया नामक एक गांव का किसान (Farmer) जिसने 2 वर्ष पूर्व सीप के भीतर बीज रखकर मोती की खेती (Perl Farming) करना शुरू किया।
अब वह इससे खूब मुनाफा कमा रहा है और अपने इस काम के लिए खूब प्रसिद्ध भी हो गया है। कुछ समय पहले कानपूर की CSA कृषि विश्वविद्यालय (Agriculture University) की टीम द्वारा इस किसान के तालाब का निरीक्षण किया गया, उन्होंने इन किसान की खूब सराहना की और उसकी सहायता करने का वायदा भी किया।
कौन है यह किसान…? (Pearl farmer Ramesh Singh)
खेत में ही छोटा सा तालाब बनवाकर जिस किसान ने मोती की खेती कर दिखाई है, उसका नाम है रमेश सिंह (Pearl farmer Ramesh Singh) और वे केवल मोती की खेती के लिए ही मशहूर नहीं है बल्कि उन्होंने फूलों की खेती के साथ ही 140 प्रकार के धान का उत्पादन करने का रिकॉर्ड भी बनाया है।
प्राप्त सूत्रों के अनुसार किसान रमेश ने लगभग 18 से 19 माह पूर्व अपने खेत में एक छोटा तालाब खुदाया था और फिर उसमें पानी भरवाकर, सीपियों के अंदर मोती के बीज रखकर पानी में लटकाकर यह खेती शुरू की। उनकी यह तरकीब और अथक प्रयास व्यर्थ नहीं गए। पहली बार में ही रमेश को लगभग 200 मोती प्राप्त हो गए। जिससे उनकी हिम्मत बढ़ी और उन्होंने मोती की खेती को आगे बढ़ाने का निश्चय किया।
अब 20 हजार मोती पैदा करने का लक्ष्य
इसके बाद किसान रमेश सिंह ने अपने 20 बाई 22 मीटर के तालाब में मोती की खेती से 20 हजार मोतियों के उत्पादन का लक्ष्य बनाया है। इस टारगेट को पूरा करने के लिए उन्होंने लगभग 10 हजार सीपियों के अंदर बीज डाले हैं, जिससे उन्हें करीब 40 से 50 लाख रुपए के मोतियों की पैदावार प्राप्त होने की आशा है।
इस सम्बंध में रमेश ने बताया कि आर्टिफिशियल मोती निर्मित करने के लिए महाराष्ट्र से एक विशेष तरह का पाउडर लाते हैं। पहले इस पाउडर की छोटी छोटी गोलियां बनाकर फिर इन गोलियों को सीप के अंदर रखा जाता है। आजकल मार्केट में भी आर्टिफिशल मोती की काफी डिमांड है।
इस ख़ास प्रोसेस से तैयार होता है मोती
सीपी से मोती पैदा करने के बारे में रमेश सिंह बताते हैं कि पहले तालाब में चूनी, चोकर व गोबर डाला जाता है जिससे मोती ठीक प्रकार से वृद्धि कर सकें। 15 – 20 महीने के पश्चात सीप से मोती बनकर तैयार होता है। इसके बाद इसका ऊपरी कवच तोड़कर उसमें से मोती निकाल लेते हैं। बता दें कि होलसेल मार्केट में एक आर्टिफिशल मोती की कीमत 200 से 500 रुपये तक होती है, जबकि रिटेल मार्केट में यही मोती 400 से 1500 रुपये तक बिकता है। बिहार में भी कुछ स्थानों पर मोती की खेती हो रही है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
सौरभ शैलेश, जो सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (Central Institute of Freshwater Aquaculture) में एक्सपर्ट के तौर पर कार्यरत हैं, उन्होंने बताया कि इंटरनेशनल मार्केट में मोती की डिमांड काफी अधिक है। मोती की खेती के बारे में खास बात ये होती है कि इसकी पैदावार देश में किसी भी इलाके में की जा सकती है। सिर्फ आपके पास छोटा सा तालाब और मीठा पानी होना चाहिए। सौरभ शैलेश ने यह भी कहा कि मोती की खेती करना थोड़ा वैज्ञानिक तरीका होता है। अतः जब आपको यह करना हो तो उससे पहले उचित प्रशिक्षण लेना आवश्यक होता है।
मोती की खेती का प्रशिक्षण (Pearl farming training) CIFA की ओर से समय-समय पर दिया जाता है। जिससे लोगों को काफी सहायता मिल रही है। बता दें कि मोती की खेती का प्रशिक्षण मुफ्त दिया जाता है। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में CIFA का मुख्यालय स्थित है, जहां से कोई भी शख्स 15 दिनों के लिए फ़्री प्रशिक्षण (CIFA Pearl farming training fee) ले सकता है। इस खेती से जुड़ी अन्य जानकारी आप CIFA की ऑफिशियल वेबसाइट से ले सकते हैं और साथ ही इससे जुड़े व्यक्तियों से संपर्क करके भी जानकारी ले सकते हैं।