भारत एक कृषि प्रधान देश है और यही कारण है कि यहाँ लोग काफ़ी पढ़-लिखकर और काफ़ी अच्छे पैकेज की नौकरी छोड़कर कृषि के तरफ़ बहुत ही जल्द आकर्षित हो जाते हैं। आज देश के युवा कृषि में अनेक प्रयोग करने में लगे हैं और कई रिकॉर्ड्स क़ायम कर रहे हैं। इस कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है ‘नागेंद्र पांडे’ का जिन्होंने पढ़ाई के बाद कृषि शुरू कर दी और उनकी आय आज लाखों रूपये प्रति माह में हो रही है।
उत्तर प्रदेश के महाराजगंज के ‘नागेंद्र पांडे‘ (Nagendra Pandey) ने एग्रीकल्चर में स्नातक कर लगभग 15 वर्ष तक अपने मन की नौकरी को ढूँढा। जब उन्हें संतुष्टि नहीं मिली तो कृषि करने का मन बना लिया। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने आस-पास के किसानों की समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया।
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काफ़ी खोज करने के बाद उन्हें किसानों की बदहाली का कारण पता चला, जिसमें सिंचाई के लिए जल का अभाव के साथ-साथ फर्टिलाइजर में लगने वाले ख़र्च शामिल थें। किसान काफ़ी महंगे खाद खरीदते थें इसके बावजूद भी उस हिसाब से फ़सल नहीं पा रहे थें। उन्होंने किसानों की समस्याओं के समाधान का विचार किया और फिर वर्मी खाद बनाने की शुरुआत की।
खाद बनाने के लिए उन्होंने स्वयं के ज़मीन का चयन किया और उसमें 40-45 केंचूओं को छोड़ दिया जो 45 दिनों में ही 2KG हो गए और फिर नागेंद्र उनसे वर्मी खाद बनाने लगे। साल 2000 से शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट ने काफ़ी विस्तृत रूप ले लिया है, जहाँ 120 फीट की ज़मीन में 750 क्विंटल खाद बनायी जाती है और यहीं से पैकिंग मार्केटिंग का भी काम होता है।
नागेंद्र ने खाद के पैकेट का मूल्य ₹200 रखा है और इसके साथ-ही-साथ किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वह उन्हें मुफ्त में केंचूएँ भी प्रदान करते हैं। नागेंद्र ने महाराजगंज (गोरखपुर) में वर्मी कंपोस्ट की तीन यूनिट लगा दी है और इस प्रकार वह उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े वर्मी खाद उत्पादक बन चुके हैं।
किसानों की दूसरी समस्या थी सिंचाई के लिए जल, जिसके लिए वह मुख्य रूप से वर्षा के जल पर आश्रित थें। इससे निजात दिलाने के लिए उन्होंने अपने खेत में ही तालाब बनवा दिया, जिसको उन्होंने पाइपलाइन के माध्यम से जोड़ दिया। इससे पूरे साल पानी की सप्लाई होती है और जो अतिरिक्त पानी होता है वह पाइप के माध्यम से वापस आ जाता है, जिसका पुनः प्रयोग होता है। इस प्रकार उन्होंने जल की समस्या का भी समाधान कर दिया।
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नागेंद्र आधुनिक कृषि को अपनाकर धान तथा गेहूँ की फ़सल उगाते हैं, जिसमें वह वर्मी का खाद और वर्मी वास (गोबर और पानी का मिश्रण) को मटकी में लटका कर छिड़काव करते हैं और इस प्रकार वह अपनी लागत के मुकाबले बहुत ज़्यादा कमाते हैं। उन्होंने 1 एकड़ की ज़मीन में शहतूत की नर्सरी लगाई है इसमें होने वाले 1, 050, 000 पौधों को ढाई रुपए प्रति पौधे के दर से मध्य प्रदेश सरकार को बेच देते हैं जिससे प्रत्येक 6 महीने में उन्हें 14-15 लाख की कमाई हो जाती है।
नागेंद्र अपने इन प्रयासों से राज्य स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं, जिसकी तारीफ बड़े-बड़े अधिकारी भी करते हैं। नागेंद्र आज किसी बड़े कंपनी में काम कर रहे होते तो भी इतनी अच्छी कमाई नहीं कर रहे होते और ना ही उनकी ऐसी पहचान बनी होती। इनके तकनीकों को अपनाकर आप लोग भी लाभ ले सकते हैं।
फ़ोटो साभार: गाँव कनेक्शन