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Kanwar Yatra 2023: श्रावण मास में प्रमुख मानी जानी वाली कांवड़ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले किसने की थी, जानें यहां

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Sawan 2023: कांवड़ यात्रा हिंदू धर्म में महत्त्वपूर्ण मानी जाती है और इसे श्रावण मास के दौरान श्रावण सोमवार (सावन सोमवार) को प्रमुखता दी जाती है। इस समय बड़ी संख्या में भक्त कांवड़ यात्रा को जाते हैं। आइए आज हम आपको इसकी शुरुआत के बारे में बताते हैं।

पहले कांवड़िए थे भगवान परशुराम

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मान्यता है कि कावड़ यात्रा का प्रारंभ भगवान परशुराम ने किया था। उन्होंने कांवड़ से गंगाजल लाया और उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ब्रजघाट (पूर्व में गढ़मुक्तेश्वर के नाम से जाना जाता था) में स्थित महादेव की मूर्ति पर अभिषेक किया था। इस परंपरा को आज भी निभाया जाता है और बहुत सारे श्रद्धालु ब्रजघाट जाकर गंगाजल लेकर महादेव की मूर्ति पर जलाभिषेक करते हैं।

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त्रेतायुग में पहले कांवड़िए थे श्रवण कुमार

कुछ धार्मिक विद्वानों के अनुसार, त्रेतायुग में सबसे पहले श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की थी। उनके माता-पिता नेत्रहीन थे और तीर्थ यात्रा के दौरान उनकी इच्छा थी कि वे हरिद्वार में गंगा स्नान करें। इसलिए, श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर उन्हें हरिद्वार ले गए और वापस आते समय गंगाजल को कांवड़ में लाएँ। इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत के रूप में माना जाता है।

भगवान राम थे पहले कांवड़िए

कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत करने का श्रेय भगवान राम को दिया जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम ने बिहार राज्य के सुल्तानगंज से अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबा धाम के शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था। यह स्थान ही कांवड़ यात्रा की प्रारंभिक निगरानी बिंदु माना जाता है।

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समुंद्र मंथन के बाद देवताओं ने की थी सबसे पहले कांवड़ यात्रा

अन्य प्रसिद्ध धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला था, तो भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में रोक लिया था। इसके परिणामस्वरूप, उनका गला नीला पड़ गया। विष के गर्मी को कम करने के लिए सभी देवताओं ने बहुत सारी पवित्र नदियों का जल शिव को अर्पित किया था और उन्होंने गंगा जल को भी चढ़ाया था। इसी कारण श्रावण मास में कांवड़ यात्रा को शुभ माना जाता है।

रावण था पहला कांवड़िया

समुंद्र मंथन के बाद भगवान भोलेनाथ ने हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया था, तब उनके शरीर पर विष का प्रभाव होने लगा थे। जब यह बात रावण को पता चली तो वह लंका से उत्तर प्रदेश आ गया। बागपत जिले के पास पुरा महादेव मंदिर में उसने तप किया और गंगा के जल से शिव जी का अभिषेक किया।

रावण तब तक पुरा महादेव मंदिर में गंगा जल से शिव का अभिषेक करता रहा, जब तक भगवान विष की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त नहीं हो गए। रावण ने सावन महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक की शुरुआत की थी। इसलिए इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है और रावण को पहला कांवड़िया।

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News Desk
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