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वाईकॉम महादेव मंदिर की अनूठी परंपरा… सेवादार दरवाज़ा बंद करने से पहले पूछेंगे, ‘कोई भूखा तो नहीं है’

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Vaikom Mahadeva Temple: मंदिरों में भक्तों के लिए प्रसाद के रूप में भोजन कराने की परंपरा तो वर्षों से चली आ रही है। वैसे तो मंदिर में भोजन रूपी प्रसाद गृहण करने सभी प्रकार के लोग आया करते हैं पर खासतौर पर बहुत से गरीब, बेसहारा और भूखे लोग मंदिरों में मिलने वाले भोजन से ही अपना पेट भरा करते हैं।

हमारे देश के केरल जिले के कोट्टयम जिले में तो एक मंदिर ऐसा भी है, जहाँ की भोजन रूपी अन्नदान परंपरा काफी अनूठी है। यहाँ पर लोगों को पेट भर खाना तो खिलाया ही जाता है और फिर मंदिर का दरवाजा बन्द करने से पूर्व लोगों से पूछा जाता है, की यहाँ कोई भूखा तो नहीं है? सबने खाना खा लिया न…

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मंदिर के द्वार से कोई भूखा नहीं जाता

वैसे तो केरल में बहुत से भव्य मंदिर हैं, पर यह मंदिर अपने आप में विशेष खासियत रखता है। इस मंदिर का नाम है वाईकॉम महादेव मंदिर (Vaikom Mahadeva Temple) । जहाँ के सेवादार लोगों को सुबह से शाम तक भोजन कराने में लगे रहते हैं और बस इसी प्रयास में रहते हैं कि इस मंदिर के द्वार से जो भी जाए, खाना खाकर ही जाए.

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वाईकॉम महादेव मंदिर (Vaikom Mahadeva Temple) में लोगों की अथक श्रद्धा और विश्वास है और मंदिर की ये परंपरा अभी की नहीं है, बल्कि सालों पुरानी है क्योंकि ये मंदिर दक्षिण भारत का एक अतिप्राचीन मंदिर है, जिसमें वर्षों से अन्नदान की परंपरा चली आ रही है।

अंतिम व्यक्ति को खाना खिलाकर ही बंद किए जाते हैं मंदिर के गेट

इस विशेष मंदिर की रसोई में प्रतिदिन सुबह से शाम तक करीब 2000 से भी अधिक व्यक्तियों को खाना खिलाया जाता है। एक और खास बात यह भी सुनने को मिलती है कि मंदिर के मुख्य द्वार को बंद करने से पूर्व, मंदिर के सेवादार चारों दरवाजों पर खड़े होकर सभी से आवाज लगाकर पूछते हैं की, क्या सभी ने खाना खा लिया? क्या कोई व्यक्ति ऐसा है जिसने रात का खाना न खाया हो, जो भूखा हो?

यदि इसके उत्तर में किसी ने हाँ कहा, तो उस व्यक्ति के लिए उसी वक्त तुरंत भोजन का प्रबंध किया जाता है और उस आखिरी व्यक्ति को पेट भर खाना खिलाने के पश्चात ही मंदिर का मेन डोर बंद करते हैं। ऐसा वे सेवादार प्रतिदिन नियमित रूप से करते हैं और साथ में यह भी ख्याल रखते हैं कि केवल मंदिर में ही नहीं, बल्कि मंदिर के आस–पास में भी कोई व्यक्ति भूखा ना रह जाए.

108 परिवार लगे हुए हैं मंदिर की व्यवस्था में

कई पीढ़ियों से इस मंदिर में एक खास परिवार मुत्तास नामपूथिरी परिवार खाना बनाता रहा है। जिसके लिए इस परिवार के लोग सुबह जल्दी उठकर पहले पारंपरिक रूप से स्नान करके, फिर मंदिर के पारंपरिक अग्नि कुंड में जलते कोयले से शिवजी की पूजा–अर्चना किया करते है। शिवजी की पूजा विधी के बाद ही मंदिर की रसोई में खाना बनाने का कार्य आरंभ होता है।

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इसी प्रकार से यहाँ जो भी सब्जियाँ बनाई जाती हैं, उन्हें काटने का अधिकार यहाँ पाथिनारनमार नाम से पहचाने जाने वाले 16 नायर परिवारों को प्राप्त है। इस प्रकार से कुल 108 परिवार मिलकर पीढ़ियों से इस मंदिर की व्यवस्था को देखते आ रहे हैं।

इस खास मंदिर की रसोई भी बहुत भव्‍य है और इस भव्य रसोई में अलग–अलग प्रकार के व्यंजन काफी अधिक मात्रा में तैयार किए जाते हैं। इतना ही नहीं, त्यौहार के अवसरों पर तो रोजाना यहाँ पर भक्तों के लिए 3600 किलो तक चावल पकाया जाता है।

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अब तक नहीं टूटी सदियों पुरानी मंदिर की परंपरा

जैसा की हमने बताया, ये मंदिर बहुत प्राचीन है और इसमें अन्नदान की परंपरा भी उतनी ही पुरानी है और अब तक भी कभी किसी भी हालत में ये परंपरा नहीं टूटी. यहाँ तक कि कोरोना की महामारी के वक्त भी कई भूखे लोग इस मंदिर की रसोई में बना भोजन खाकर अपना गुजारा चलाते थे। इस शिव मंदिर में भक्त शिवजी को वैक्कथप्पन तथा अन्नदाना प्रभु के नाम से भी कहकर पुकारते हैं।

आप जब भी केरल जाएँ, तो इस अनूठे मंदिर (Vaikom Mahadeva Temple) के दर्शन और प्रसाद का लाभ जरूर उठाएँ।

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News Desk
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