वह एक गाना है ना.. ” अपने लिए जिए तो क्या जिए, ऐ दिल तु जी ज़माने के लिए”
इन्हीं पंक्तियों को आत्मसात करती हुई ज्योति अपनी ज़िन्दगी बिता रही है। वह अपने छत पर ही जैविक खेती करके उपजी हुई सब्जियों को अनाथालय में दान दे देती हैं। अक्सर यह देखने में आता है कि ज्यादातर लोग ख़ुद के लिए काम करते हैं और जीते हैं। लेकिन कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जो दूसरों के लिए मेहनत करते हैं।
28 वर्षीय ज्योति हमेशा दूसरों की मदद पर चढ़कर करती हैं। बचपन से ही बागवानी में शौक रखने वाली ज्योति एक ऐसी लड़की है, जिन्होंने अपने छत पर ही 800 से ज़्यादा पेड़ पौधों को लगाया है। इसके लिए ज्योति एक ख़ुद ही मिट्टी और उर्वरक भी तैयार करती हैं।
बचपन से ही खेती करने का था सपना
ज्योति एक ऐसी परिस्थिति में पली-बढ़ी हैं, जहाँ इनके माता-पिता के लव मैरिज करने के कारण इन्हें पूरे परिवार का प्यार और सहयोग कभी नहीं मिला। ज्योति अपनी आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई अपने बुआ के घर रहकर पूरी की है, जहाँ उन्हें हॉस्टल की तरह महसूस होता था और इनकी माँ मायके में रहती थी। अकेला महसूस होने के कारण ही इन्हें पेड़-पौधों ने काफ़ी आकर्षित किया। बचपन में इन्हें स्कूल में पेड़ पौधा लगाने और उनकी देखभाल करने का मौका भी मिला।
अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए ज्योति अपना ज्यादातर समय पेड़ पौधों को देती थी जिससे उन्हें बहुत ख़ुशी मिलती थी। ज्योति जब कभी भी अपने ननिहाल यानी अपनी माँ के पास जाती थी तब भी वह अपना ज्यादातर समय पेड़ पौधों में ही लगाती थी
आगे चलकर ज्योति इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद हैदराबाद में जॉब करने लगी। जॉब में व्यस्त रहने के बावजूद भी ज्योति को एक कमी हमेशा महसूस होती थी। उन्हें ऐसा लगता की माँ को उनकी ज़रूरत है। उनकी माँ अभी तक दुखों से उबर नहीं पाई थी।
2008 में नौकरी छोड़ घर वापस आ गई
ज्योति ने 2008 में अपनी नौकरी छोड़ने का फ़ैसला लिया और अपनी माँ के पास घर वापस आ गई। यहाँ आकर इन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए 20 फूल के पौधे गमले में लगाकर खेती की शुरुआत की। उसके बाद इनके पौधों की संख्या में इज़ाफ़ा होता गया। आज के समय में ज्योति आलू, करेला, तरोई गोभी, कद्दू, मिर्च आदि सब्जियाँ भी उगातीं हैं। वह ख़ुद से ही जैविक खाद और वर्मीकम्पोस्ट का निर्माण कर सब्जियों को तैयार करतीं हैं। इनके पौधों की देखभाल में अब उनके पेरेंट्स भी इनका पूरा सहयोग करते हैं।
ज्योति ने बताया कि अक्सर वह पौधों की देखभाल करते-करते थक जाती हैं। लेकिन यह पौधे ही उनके अंदर हमेशा पॉजिटिव एनर्जी डालते हैं और उनकी माँ जो हर वक़्त ग़म में डूबी रहती थी, वह भी बागवानी को देखकर अपने अवसाद को भूल जाती हैं और खुश रहती हैं।
हर सप्ताह लोगों में 3 किलो सब्जियाँ बांटती है
ज्योति की खेती करने में सबसे ख़ास बात यह है कि वह जितनी भी सब्जियों की खेती करती हैं, वह उन्हें अनाथ आश्रम में दान कर देती हैं। ज्योति हर सप्ताह लगभग 3 किलो सब्जियाँ लोगों में मदद के तौर पर बांट देती हैं। उन्हें इस बात की बेहद ख़ुशी है कि उनकी मेहनत लोगों के काम आती है। ज्योति इस पूरे लॉकडाउन में भी लोगों की काफ़ी मदद की है।
फिलहाल भविष्य में ज्योति का यही सपना है कि वह ख़ुद का ज़मीन खरीद कर वहाँ सब्जियों की खेती करें और लोगों की मदद करती रहें। साथ ही साथ लोगों को रोजगार भी प्रदान कर सके, क्योंकि दूसरों की मदद करने में जो ख़ुशी मिलती है वह ख़ुशी शायद ही कहीं मिले।