हिंदी साहित्य की सबसे महानतम रचना ‘रामचरित मानस’ (Ramcharitmanas) आज भी मध्य प्रदेश राज्य (Madhya Pradesh) के चित्रकूट जिले (Chitrakoot) में हस्तलिखित रूप में मौजूद है। इसे देश-विदेश के लाखों लोग देखने और पढ़ते पहुँचते हैं।
तुलसीदास हस्तलिखित पांडुलिपि मंदिर में संरक्षित
भक्ति काल के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस की हस्तलिखित पांडुलिपि आज भी चित्रकूट के राजापुर में संरक्षित है। इस प्राचीन पांडुलिपि की संरक्षण कार्य मानस मंदिर के महंत रामाश्रय त्रिपाठी द्वारा किया जा रहा है, जो खुद को तुलसीदास के शिष्य और उनके वंशज बताते हैं।
1587 की रचित प्रविष्टियाँ अब तक हैं सुरक्षित
गोस्वामी तुलसीदास ने 1587 में रामचरितमानस (Ramcharitmanas) की रचना शुरू की थी। यह अवधि भाषा में रचित है और इसे पूरा करने में उन्हें 2 साल 7 महीने 26 दिन लगे। यह 150 पन्ने की पांडुलिपि है, हर पन्ने पर 7 लाइन लिखी है। रामाश्रय त्रिपाठी बताते हैं, “2004 में भारत सरकार के पुरातत्व विभाग, दिल्ली द्वारा पांडुलिपि सुरक्षित करने के लिए जापान में बने पारदर्शी टिशु पेपर को इसके सभी पेज पर लगाया है। साथ ही कागज को लंबे समय तक सुरक्षित रखने वाले कैमिकल्स का भी इस्तेमाल किया गया है।”
देख और पढ़ सकते हैं चित्रकूट के राजापुर में
महंत ने बताया है कि यहाँ न केवल हस्तलिखित अयोध्या कांड देखा जा सकता है, बल्कि उसे पढ़ा भी जा सकता है। चित्रकूट में आज भी प्रभु राम और बाबा तुलसी से जुड़ी घटनाएँ मानों जीवंत हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बाबा तुलसी को प्रभु राम और लक्ष्मण के दर्शन रामघाट पर ही हुए थे।
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