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रिटायरमेंट के बाद चढ़ गया खेती का जुनून, आज छत पर ही लीची-स्ट्रॉबेरी से लेकर उगा दिए आम-अमरूद के पेड़

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आपने ऐसे बहुत से लोगों को देखा होगा जो ज़िन्दगी के एक पड़ाव पर आकर कुछ नया करने का सोचते हैं। ऐसा ज्यादातर किसी घटना से प्रभावित होकर होता है। जब किसी के जीवन में कोई ऐसी घटना घट जाती है, जो उसका नज़रिया बदल देती है। ऐसे में लोग नए-नए प्रयोग करने लगते हैं। हालांकि, बहुत से लोग इस प्रयोग में सफल होते हैं, तो बहुत से लोग असफल भी हो जाते हैं।

आज हम आपको इस ख़बर में जिस व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं। वह भी कुछ इसी तरह की है। उस व्यक्ति ने भले ही पूरा जीवन शहर के कंक्रीट के बने मकान में बिताया हो। लेकिन ज़िन्दगी का आधा पड़ाव पार करने के बाद उसे महसूस हुआ कि वह पेड़-पौधों में भी दिलचस्पी रखते हैं। फिर उसने कंक्रीट के जंगलों को पेड़ पौधों से गुलजार करने का फ़ैसला किया। आइए जानते हैं उस शख़्स की कहानी।

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इस तरह हुई शुरुआत

इस शख़्स का नाम डॉक्टर साहा (Dr. Saha) है। जो कि कोलकाता (Kolkata) में रहते हैं। डाॅ साहा ने पूरा जीवन रेलवे में बतौर आई सर्जन (Eye Surgeon) नौकरी में बिताया है। लेकिन डाॅ साहा ने रेलवे से रिटायर होने के बाद जो किया उसे यदि शहर का हर आदमी अपनाने लगे तो शायद लोग गांवों की बजाय शहर में भी प्रकृति का लुफ्त उठा सकेंगे। डाॅ साहा ने कोलकाता में अपने 2200 स्क्वायर फीट की छत पर आज चैरी, लीची, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबैरी, संतरे, कटहल, आम, अंगूर, अमरूद, शिमला मिर्च, बैंगन जैसे तमाम पौधे उगा रखे हैं। इससे वह प्रकृति को तो बचा ही रहे हैं साथ ही अपने घर में बनी ताजी सब्जियों का लुत्फ भी उठा रहे हैं।

जब पता लगा गार्डनिंग के छिपे शौक का

डाॅ साहा ने ‘द बेटर इंडिया’ वेबसाइट से बातचीत करते हुए बताया कि उन्हें शुरुआत से गार्डनिंग का शौक नहीं था। एक बार जब उनकी पोस्टिंग मालडा में हुई थी, तो उस दौरान वह ‘मालडा होरिकल्चर डिवीज़न’ (Malda Horticulture Division) की तरफ़ से उन्हें एक कार्यक्रम का निमंत्रण आया था। जब वह इस कार्यक्रम में पहुँचे तो देखा कि वहाँ तरह-तरह के फूल लगे हुए थे। इन तमाम रंगों के फूलों की रौनक को देखकर डाॅ साहा को पता लगा कि वह भी गार्डनिंग के बेहद शौकीन हैं। इसी दौरान उन्होंने निर्णय किया कि वह भी अब ख़ुद का गार्डन तैयार करेंगे और उसकी देखभाल भी वह ख़ुद करेंगे।

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आज उगाते हैं 250 से ज़्यादा पौधे

आपको जानकर हैरानी होगी कि डाॅ साहा जिन्होंने महज़ एक कार्यक्रम से फूल पौधों को लगाने की प्रेरणा ली थी, आज वह अपने घर की छत पर 250 से ज़्यादा पौधे उगाते हैं। डाॅ साहा कहते हैं कि उनके घर पर ही उनकी बेटी को ड्राइंग टीचर घर पर ही होम ट्यूशन पढ़ाने आती थी। इस दौरान डाॅ साहा भी कई बार अपनी बेटी की क्लास में चले जाया करते थे। जिसके बाद डाॅ साहा को तरह-तरह के फूलों-पौधों की प्रजाति के बारे में जानकारी मिलती थी। आज डाॅ साहा अपने घर पर ही फूल, फल, सब्जियाँ और जड़ी बूटियाँ सब उगाते हैं।

डाॅ साहा आज बहुत सारी ऑनलाइन गार्डनिंग कम्युनिटी (Online Gardening Community) से भी जुड़े हैं। जिससे उन्हें तमाम तरह के पौधों के बारे में जानने को मिलता है। इनसे सीख कर ही वह इन पौधों को अपने घर पर उगाने की कोशिश करते हैं। ऑनलाइन गार्डनिंग कम्युनिटी से मिली सीख आज रंग ला रही है। डाॅ साहा के घर की छत आज तमाम तरह के फल-फूल के पौधों से गुलजार हो चुकी है।

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ये पौधे हैं आकर्षण का केंद्र

डाॅ साहा आज घर की छत को पूरी तरह से खेत बना चुके हैं। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि आज उनकी छत पर मीठी इमली, नीले आम और लाल अमरूद के पेड़ आराम से देखने को मिल जाएंगे। इनकी ख़ास बात ये है कि इन फलों का रंग बदला हुआ होता है, लेकिन स्वाद में ये भी दूसरे आम फलों की तरह ही होते हैं। दूसरी ख़ास बात ये हैं कि अब तक हमने आम और कटहल जैसे पेड़ों को गाँव के खेतों में ही उगते देखा है। छोटी जगह में इन्हे उगाना संभव नहीं होता। लेकिन डाॅ साहा इन्हें भी अपनी छत पर उगाते हैं।

बेटी भी हैं उनके गार्डन की मुरीद

डाॅ साहा के गार्डन के मुरीद आज बहुत से लोग हो चुके हैं, उन्हीं में से एक उनकी बेटी भी है। उनकी बेटी जब भी उनसे मिलने उनके घर आती है तो उनके गार्डन को देख बेहद प्रभावित होती है। वह मांग करती है कि पापा अपने ‘किचन गार्डन’ में से कोई सब्जी उसे बनाकर ख़ुद खिलाएँ। डाॅ साहा ऐसा करते भी हैं जिससे उन्हें बहुत ख़ुशी मिलती है।

लॉकडाउन में साबित हुआ वरदान

डाॅ साहा बताते हैं कि पिछले साल जब देशभर में लॉकडाउन लग गया था, तो उनका ये गार्डन उनके लिए वरदान साबित हुआ था। उस दौरान ऐसी स्थिति थी कि लोग बाहर ना जा पाने के चलते घर पर अवसाद के शिकार होने लगे थे। तमाम नकारात्मक विचारों से घिरने लगे थे। उस दौरान डाॅ साहा का ये गार्डन उनके लिए ‘स्ट्रेस बूस्टर’ साबित हुआ।

वह हर रोज़ सुबह उठते और एक नया पौधा लगाते। साथ ही दिनभर अपने पौधों की देखभाल में बिता देते थे। इससे उनका समय भी आसानी से बीत जाया करता था और उन्हें देश की इस सबसे मुश्किल घड़ी में भी अपने शरीर में नई तरह की ऊर्जा का अहसास होता। जो कि उस दौरान सभी के लिए बेहद ज़रूरी था।

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News Desk
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तमाम नकारात्मकताओं से दूर, हम भारत की सकारात्मक तस्वीर दिखाते हैं।

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