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असिस्टेंट प्रोफेसर की जॉब छोड़ी और बन गए किसान, अब सब्जी की खेती से करते हैं लाखों की कमाई

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एक ऐसा भी दौर था जब लोग गाँवों से शहरों की और पलायन करने लगे थे, लगता था मानो अब गाँव खाली हो जाएगें, फिर खेती बाड़ी कौन करेगा? पर समय के साथ मानवीय सोच में भी बदलाव आया है। अगर अच्छी खासी जॉब हो तो खेती करने के बारे में भला कौन सोचेगा, पर नहीं, बदलाव के इस दौर में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनी ज़िद और कुछ अलग करने के जज्बे के साथ नई राहों पर चल पड़े हैं। पिछले कुछ सालों में आपने ऐसी बहुत-सी खबरें पढ़ी और सुनी होंगी जिनमें लोगों ने अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर खेती-बाड़ी करना शुरू कर दिया है और अब खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

ऐसा ही किया है पानीपत जिले के आसन खुर्द गाँव के 38 वर्षीय डा. जयपाल तंवर (Dr. Jaipal Tanwar) ने। जिन्होंने अपनी असिस्टेंट प्रोफेसर की जॉब छोड़कर खेत में सब्जियाँ उगाना शुरू कर दिया। हालांकि उनके इस फैसले पर परिवार वाले राजी नहीं थे। उनकी पत्नी व ससुर ने भी उनका विरोध किया। पिता ने भी नौकरी ना छोड़ने की सलाह दी, पर डॉ. जयपाल इरादों के पक्के थे और अडिग रहकर अपना काम करते रहे। उन्होंने खेती के लिए ख़ूब मेहनत की और आज प्रति एकड़ से 6 से 8 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं। आज सभी परिवार वाले उनके फैसले की तारीफ करते हैं।

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पत्‍नी व ससुर ने किया विरोध तो एक साल का समय मांगा

डा. जयपाल तंवर (Dr. Jaipal Tanwar)की पत्‍नी का नाम डा. अनीता है, वह भी दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री कॉलेज में हिन्दी की प्रोफेसर हैं। जब डॉ जयपाल ने बताया कि वह अपनी जॉब छोड़ कर खेती करना चाहते हैं तो उनकी पत्नी ने उनका विरोध किया और कहा कि उनका विवाह एक किसान से नहीं, प्रोफेसर के साथ हुआ था। डॉ तंवर के पिता प्रेम सिंह तंवर जो ख़ुद एक किसान हैं, उन्होंने भी यही सलाह दी कि खेती-बाड़ी घाटे का व्यवसाय है, अगर तुम्हें खेती ही करनी थी तो इतनी पढ़ाई क्यों की? 10वीं कक्षा पूरी करके मेरे साथ खेत में हाथ बंटा लेते।

इतना ही नहीं उनके इस फैसले पर पट्टीकल्याणा निवासी उनके ससुर महेंद्र सिंह ने भी बहुत विरोध किया और कहा की मैं अपनी बेटी को उनके घर ही नहीं भेजूंगा। फिर डॉ तंवर ने इन सभी परिस्थितियों को संभालते हुए परिवार वालों को समझाया और अपने ससुर से भी 1 वर्ष का समय मांगा। उन्होंने परिवार वालों से वादा किया कि अगर खेती में नुक़सान हुआ तो वे यह काम छोड़ कर फिर से नौकरी पर लग जाएंगे। उन्होंने पूरी तैयारी, परिश्रम व लगन से काम किया। उन्होंने एक एकड़ के पालीहाउस में नोहरा गाँव में लाल-पीली शिमला मिर्च और खीरे की रासायनिक कीटनाशक रहित फ़सल उगाई। उनकी मेहनत रंग लाई और यह फ़सल अच्छी हुई, जिससे उन्हें 6 लाख रुपये का मुनाफा हुआ।

अपना आउटलेट खोला, दिल्ली से लोग खरीदते हैं सब्जियाँ

डॉ जयपाल तंवर (Dr. Jaipal Tanwar) ने बताया कि वे साल 2009 में ऊझा गाँव में स्थित नलवा कालेज ऑफ एजुकेशन में संस्कृत के असिस्टेंट प्रोफेसर की पोस्ट पर कार्यरत थे। इनके कॉलेज के पास ही कृषि विज्ञान केंद्र था, जिसमें वे जाते रहते थे। कृषि विज्ञानियों से-से उन्हें पता चला कि सब्जियाँ उगाने से अच्छा मुनाफा होता है। फिर उन्होंने भी खेती करने का निश्चय किया और साल 2014 में अपनी जॉब छोड़ दी। उन्‍होंने वर्ष 2015 में नोहरा, जोशी माजरा, करनाल के शेखपुरा, घरौंडा, नरूखेड़ी, सोनीपत के मुरथल और पट्टीकल्याणा में पालीहाउस और ओपन फील्ड में पीली व लाल गोभी, ब्रोकली, शिमला मिर्च, खीरा और पीले तरबूज इत्यादि की फसलें उगाई।

वे कहते हैं कि करीब 2 वर्ष तक उन्होंने पानीपत सब्जी मंडी में सब्जी बेची। पिज़्ज़ा बोलने अपनी फ़सल का उचित मूल्य नहीं प्राप्त हुआ तो पट्टीकल्याणा के सामने जीटी रोड पर उन्होंने एक आउटलेट खोला। वहाँ पर दिल्ली के व्यापारियों को उनकी सब्जियाँ बहुत पसंद आई और वे उसे खरीदने लगे। आप तो जब भी उन्हें सब्जियाँ देनी होती है तो वह व्यापारी मैसेज करके सब्जी पैक करने को कह देते हैं। इस प्रकार से रोजाना 7 क्विंटल सब्जी तो सिर्फ़ दिल्ली के व्यापारी उनसे ले जाकर घर-घर पहुँचाते हैं। फिर इसके बाद जो सब्जी बस्ती है उसे डॉ जयपाल मार्केट में मांग के हिसाब से बेच देते हैं। वे अपनी सब्जियाँ मंडी में नहीं बेचा करते।

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डिस्ट्रिक्ट और स्टेट लेवल पर मिला अवार्ड, 1 एकड़ से कमाते हैं 6-8 लाख का मुनाफा

डा. तंवर को उनके सराहनीय प्रयासों के लिए वर्ष 2019 में घरौंडा में सेंट्रल ऑफ एक्सीलेंस में शिमला मिर्च और गोभी की फ़सल के लिए कृषि मंत्री जेपी दलाल द्वारा राज्य स्तर पर बेस्ट सब्जी विक्रेता के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अभी हाल ही में उन्हें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भी शिवाजी स्टेडियम में ज़िला स्तर पर बेस्ट फार्मर का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। अब उनके परिवार वाले भी उनकी बहुत तारीफ कर रहे हैं। 1 एकड़ ज़मीन से उन्हें 6 से 8 लाख रुपए तक की कमाई हो रही है। इसके साथ ही, डॉ तंवर अब 30 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। उनके ससुर ने उन्हें अपनी 9 एकड़ भूमि खेती करने के लिए दे दी है।

फसल में करते हैं नीम कीटनाशक का उपयोग

डॉ जयपाल ने बताया कि उन्होंने अपने ससुराल पट्टीकल्याणा में स्थित 10 एकड़ ज़मीन में ओपन और छह एकड़ में पालीहाउस में पीली और गुलाबी फूल गोभी, लाल-पीली शिमला मिर्च, गाजर, मूली, शलजम और पालक इत्यादि सब्जियाँ उगाई हैं। जिनमें उन्होंने ताइवान के बीजों का उपयोग किया है। अब वे अपने खेत में पीला तरबूज, खरबूजा व घीया की फसलें उगाना चाहते हैं इसके लिए वे तैयारी कर रहे हैं।

उनकी उगाई फसलों की एक और खासियत यह है कि वे अपनी फसलों में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं करते हैं, बल्कि नीम से बने कीटनाशक और बायो खाद का प्रयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि 1 एकड़ में सब्जी उगाने में 10 लाख रुपये का ख़र्च करना होता है। जिस पर सरकार 2.70 लाख रुपये की सब्सिडी प्रदान करती है, तो इस प्रकार से 6 लाख रुपये तक की बचत होती है।

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उनकी सब्जियाँ महंगी हैं क्योंकि उनमें है ज़्यादा पोषक तत्व

डॉ जयपाल तंवर (Dr. Jaipal Tanwar) यह दावा करते हैं कि उनके पालीहाउस में जो सब्जियाँ उगाई जाती हैं उनमें रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं होता है इसलिए उन सब्जियों में पोषक तत्व बरकरार रहते हैं, जबकि मार्केट में मिलने वाली अन्य सब्जियों में रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग की वज़ह से बड़ी मात्रा में पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। यही वज़ह है कि उनकी-उनकी सब्जियाँ मंहगी बिकती हैं। 1 kg फूल गोभी 70 से 100 रुपए, खीरा 34 रुपये किलो और टमाटर 20 से 25 रुपये किलो के हिसाब से बेचा जाता है।

डॉ जयपाल (Dr. Jaipal Tanwar) दिल्ली, सोनीपत और अपने प्रदेश के दूसरे स्थानों पर खेतों में जाते हैं और लोगों को सलाह भी देते हैं। खेती से जुड़ी सलाह देने के लिए वे फीस लेते हैं, पर अपने आसपास के कृषकों को निःशुल्क सलाह दिया करते हैं।

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News Desk
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