काली मां के इस मंदिर में Noodles का लगता है भोग, आखिर क्या है इसके पीछे की वजह?

Chinese Kali Mandir: भारत रोचक तथ्यों का देश है जहां की हर चीज में अलग ही बात है और लोग इसको मानते भी हैं. चाहे 7 अजूबों में शामिल आगरा का ताजमहल हो या फिर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री हो या ऐतिहासिक बातें हों. इन सभी में कुछ ना कुछ दिलचस्ब चीजें सामने आ ही जाती हैं लेकिन भारत में कई अलग-अलग प्राचीन मंदिर हैं जहां की अलग-अलग कहानियां मशहूर हैं.

ऐसा ही एक पश्चिम बंगाल के कोलकाता के टंगरा क्षेत्र में चाइनीज काली मंदिर है जो पूरा इलाका चाइना टाउन के नाम से भी मशहूर है. गली में स्थित इस मंदिर में तिब्बती सैली को अपनाया गया है जो पुराने कोलकाता और पूर्वी एशिया की खूबसूरत संस्कृति से सजा हुआ है. यहां की अनोखी बात ये है कि काली मां को भोग में लोग नूडल्स चढ़ाते हैं और प्रसाद में वही खाते हैं. मगर ऐसा क्यों है चलिए आपको बताते हैं इसके पीछे की दिलचस्प वजह. इसे भी पढ़ें – एक दिन की नवजात बच्ची को कुत्तों के बीच छोड़ गई मां, कुतिया ने अपना दूध पिलाकर बचाई जान

Chinese Kali Mandir Kolkata

काली मां को क्यों चढ़ाया जाता है नूडल्स?

काली मां के इस मंदिर में सिर्फ चाइनीज डिशेज ही भोग के रूप में चढ़ाई जाती हैं जिनमें सबसे ज्यादा नूडल्स है. यहां सिर्फ चाइनीज डिशेज भोग नहीं लगाई जाती हैं बल्कि अगबत्तियां भी चीन से ही मंगालकर जलाई जाती हैं. प्रसाद के अलावा यहां की खुशबू भी बाकी मंदिरों से अलग होती है. मंदिर में पूजा-पाठ एक बंगाली पुजारी करते हैं जो बुरी आत्माओं को दूर करने के लिए खास मौकों पर हाथ से बने कागज जलाते हैं और उनकी पूजा करने के तरीके बहुत अलग हैं.

मां काली के इस मंदिर में चाइनीज प्रसाद चढ़ाए जाने के पीछे एक रोचक और चमत्कारिक वजह बताई जाती है. मान्यता के अनुसार, लगभग 20 साल पहले इस मंदिर को चीनी और बंगाली लोगों ने फंड इकट्ठा करके बनाया था. इस जगह पर पिछले 60 सालों से एक पेड़ के नीचे ही देवी मां की मूर्ती स्थापित है और उनकी पूजा भक्त बहुत ही श्रद्धा के साथ करते हैं.

स्थानीय लोगों के मुताबिक, कई साल पहले एक चीनी लड़का गंभीर रूप से बीमार हुआ था और उसके इलाज में कोई चीज असर नहीं कर रही थी. एक दिन बच्चे के माता-पिता उसे वहां ले गए और पेड़ के नीचे लिटा दिया. इसके बाद उन्होंने देवी मां से प्रार्थना की और वो बच्चा चमत्कारिक रूप से खड़ा हो गया.

इसके बाद से से मंदिर को बनाया गया और हिंदू समुदाय के साथ ही यहां चीन समुदाय के लोग भी दर्शन करने आते हैं. ये मंदिर तब से आस्था का प्रतीक बन गया. जब चीन के लोग यहां ज्यादा आने लगे तो इस मंदिर में चाउमीन का भोग लगाया जाने लगा. इसे भी पढ़ें – भिखारी पति से नहीं देखी गई पत्नी की परेशानी, भीख में मिले 90 हजार रुपए जमाकर खरीद ली मोपेड