Doomsday Vault – आपके जेहन में कभी ना कभी तो ये सवाल ज़रूर आया होगा कि अगर दुनिया ख़त्म हो जाए तो क्या होगा। लेकिन इस सवाल का जवाब आपको शायद ही कभी मिला हो। क्योंकि ये सवाल है ही इतना पेचीदा कि इस पर शायद ही कोई सोच-विचार करने बैठे। वैसे भी हर कोई यही सोचता है कि दुनिया शायद कभी ख़त्म नहीं होगी। सूरज चांद और इंसान हमेशा ही इसी तरह अपना काम करते रहेंगे।
लेकिन आज हम आपको जो ख़बर बताने जा रहे हैं उससे पढ़कर शायद आप चौक जाएंगे। क्योंकि दुनिया ख़त्म होने की तारीख भले ही हमें अभी ना पता हो। परंतु दुनिया ख़त्म हो जाने के बाद उसे दोबारा कैसे बसाया जा सकता है। इस बात की तैयारी एक देश में ज़रूर कर ली गई है। वह भी आज के कई साल पहले। आइए आपको बताते हैं कि कौन-सा है वह देश और कैसी है उसकी ये तैयारी।
‘कयामत के दिन की तिजोरी’ (डूम्स डे वॉल्ट)
आज जिस तरह से दुनिया भर में को रोना अपना कोहराम मचा रहा है। उसे दुनिया के लाए क़यामत से कम नहीं समझा जा सकता। लेकिन यदि कभी कोई क़यामत इससे बड़े पैमाने पर आ जाए कि दुनिया ही ख़त्म हो जाने की कगार पर पहुँच जाए, तो उसके लिए ‘कयामत के दिन की तिजोरी’ काम आएगी। जो कि नार्वे देश में कई साल पहले बनाई जा चुकी है।
क्या है इसकी खासियत (Doomsday Vault)
हम सभी जानते हैं कि मनुष्य प्रजाति के लिए सबसे ज़रूरी खेती होती है। खेती ही वह साधन है जिससे मानव सभ्यता आगे बढ़ सकती है। हो सकता है आप कहें इंसान मांस खाकर भी जीवन बिता सकता है, पर ये लम्बे समय तक संभव नहीं है। इसलिए इस तिजोरी को ‘डूम्स डे वॉल्ट’ स्पीट्सबर्गन आयलैंड (नार्वे) में एक सैडस्टोन माउंटेन से 390 फीट अंदर बनाया गया है।
इस तिजोरी में फिलहाल 8 लाख 45 हज़ार क़िस्म के बीज रखे गए हैं, जबकि आपको जानकर हैरानी होगी कि इसके आकार के मुताबिक इसमें 45 लाख क़िस्म तक के बीजों का भंडारण किया जा सकता है। ‘डूम्स डे वॉल्ट’ के लिए ग्रे कॉन्क्रीट का 400 फुट लंबा सुरंग माउंटेन में बनाया गया है। इसकी सुरक्षा को देखते हुए इसके दरवाजे बुलेट प्रूफ बनाए गए हैं, ताकि कभी कोई कितनी बी बड़ी विनाश लीला आ जाए। इस तिजोरी को कोई नुक़सान ना पहुँचा सके।
भारत ने भी दिया है योगदान
‘डूम्स डे वॉल्ट’ (Doomsday Vault) नॉर्वे में बनी तिजोरी किसी विशेष देश की नहीं है। इस तिजोरी को बनाने में दुनिया के सौ देशों ने अपना-अपना योगदान दिया है। इस योगदान में एक हिस्सा भारत का भी शामिल है। इस तिजोरी में आज की तारीख में लगभग नौ लाख विभिन्न खाद्य पदार्थों के बीज का संग्रहण किया गया है। जिसमें गेहूँ, चना, मटर, उड़द आदि तमाम तरह की चीजें शामिल हैं। ये वनस्पतियाँ आपातकालीन स्थिति के लिए रखी गई है। आपको बता दें कि-कि इस तिजोरी का निर्माण आज के 13 साल पहले ही 2008 में कर दिया गया था।
नार्वे में ही क्यों बनाई ये तिजोरी
अभी तक आपने ये जान लिया होगा कि इस तिजोरी को सभी देशों ने मिलकर बनाया है, तो आपने ज़रूर सोचा होगा कि फिर इसे किसी शक्तिशाली देश जैसे अमेरिका, रूस या चाइना आदि में क्यों नहीं बनाया गया। इसका जबाब ये है कि नार्वे भौगोलिक तौर पर उत्तरी ध्रुव पर बसा हुआ देश है। जहाँ हमेशा ठंड रहती है। ऐसे में इस तिजोरी में रखे बीज लंबे समय तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं।
जानकारों की मानें तो इस तिजोरी में बीजों का सही तापमान बनाए रखने के लिए कूलिंग की भी पूरी व्यवस्था की गई है। लेकिन किसी आपदा के चलते यदि ये व्यवस्था काम नहीं भी करती तो भी ये बीज दो सौ सालों तक बड़े आराम से सुरक्षित रखे जा सकते हैं। आपको बता दें कि इस तिजोरी में कोई भी देश यदि बीज रखना चाहे तो उसे नार्वे सरकार के एक एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं। साथ ही इस तिजोरी में रखे गए बीजों का मालिकाना हक़ भी रखने वाले देशों का ही होगा। नार्वे सिर्फ़ मात्र उसकी देखभाल करेगा।
-18° तापमान पर रखे जाते हैं बीज
इस तिजोरी में तापमान हमेशा-18 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है। जिससे ये बीज लम्बे समय तक खराब ना हों। साथ ही इस तिजोरी में ऐसी व्यवस्था भी की गई है। जिससे यदि कभी यहाँ बिजली आदि चली जाए तो भी ये बीज दौ सौ सालों तक सुरक्षित रहें। इसके लिए ‘डूम्स डे वॉल्ट’ की छत और गेट पर प्रकाश परावर्तित करने वाले रिफ्लेक्टिव स्टेनलेस स्टील, शीशे और प्रिज्म लगाए गए हैं। ताकि बाहर की गर्मी इस तिजोरी के अंदर ना प्रवेश कर सके। क्योंकि यदि बाहर की गर्मी इसके अंदर प्रवेश कर जाती हो तो अंदर रखी सारी बर्फ पिघल जाएगी।
2016 में सीरिया के काम आई थी ये तिजोरी
आपको इस तिजोरी के बारे में जानकर शायद ऐसा लगा हो कि ये तिजोरी तो हजारों साल बाद कभी शायद ही काम आए। लेकिन ऐसा नहीं है। गृहयुद्ध के दौरान जब 2016 में सीरिया में हालात बेहद खराब हो गए थे, तो इस तिजोरी को खोला गया था। इस तिजोरी में से जौ और चने के बीज के साथ लगभग 38 हज़ार सैंपल गुप्त तरीके से सीरिया, मोरक्को और लेबनान जैसे देशों में भिजवाए गए थे। ताकि यहाँ दोबारा से खेती की जा सके। हालांकि इन देशों में गृहयुद्ध के चलते इन बीजों का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाया था और ये बीज बड़ी मात्रा में खराब हो गए।
ये चुनिंदा लोग ही खोल सकते हैं तिजोरी (Doomsday Vault)
दुनिया की इस तिजोरी (Doomsday Vault) को साल में तीन से चार बार ही खोला जा सकता है। वह भी केवल चुनिंदा लोगों के द्वारा। इन चुनिंदा लोगों में अमेरिकी संसद के सीनेटर्स और संयुक्त राष्ट्र संघ के सेक्रेटरी जनरल को इजाज़त मिली है। बिल गेट्स ने इस तिजोरी को बनाने के लिए अपनी तरफ़ से 60 करोड़ रुपए दिए थे। साथ ही दुनिया के सौ देश जिनमें अमेरिका, भारत, स्वीडन उत्तर कोरिया जैसे तमाम देश भी शामिल है। इन सभी ने मिलकर भविष्य के लिए इसे तैयार किया है। इस तिजोरी को दुनिया में ‘ब्लैक बाॅक्स व्यवस्था’ के नाम से भी जाना जाता है।
इस ख़बर के साथ ही हम आपको ये आगाह कर दें कि अभी दुनिया ख़त्म हो जाने जैसी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई है। ये व्यवस्था सिर्फ़ भविष्य की कल्पना मात्र को आधार बनाकर तैयार की गई है।