भारत में आम बोलचाल के लिए कई बार मुहावरे और जुमलों का इस्तेमाल किया जाता है, जो सामने वाले व्यक्ति को ताना देने का सबसे बेहतरीन तरीका होता है। ऐसे में आपने भी कभी न कभी रत्ती भर शब्द का जिक्र जरूर सुना होगा, जिसका शाब्दिक अर्थ छोटा-सा या थोड़ा-सा होता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि रत्ती सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि एक पौधा होता है, जिसमें पत्ते और फल दोनों उगते हैं। इस रति के पौधे को आमतौर पर गूंजा के नाम से जाना जाता है, जो जंगल से लेकर पहाड़ी इलाकों हर जगह पर आसानी से उग सकता है।
एशियाई पौधा है रत्ती
गूंजा यानी रति के पौधे में खास तरह के बीज उगते हैं, जिनके बाहर मटर की तरह खोल मौजूद होता है। इस कवर के अंदर काल और लाल रंग के छोटे-छोटे दाने मौजूद होते हैं, जिन्हें रति के बीज कहा जाता है। यह रंगीन दाने अक्सर बीज के पक जाने के बाद हवा की वजह से पेड़ से टूट कर जमीन पर गिर जाते हैं, जो पहाड़ी इलाकों में बड़े पैमाने पर देखने को मिलते हैं।
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आपको यह जानकर हैरानी होगी कि प्राचीन काल में गूंजा के बीजों का इस्तेमाल सोने और चांदी का भार मापने के लिए किया जाता था, क्योंकि उस दौर में वजन तोलने के लिए कोई खास तकनीक विकसित नहीं हुई थी। इस तरह जितने रति के बीज में सोने या चांदी का भार किया जाता था, उसे सात रत्ती सोना या आठ रत्ती चांदी जैसे नाम दिए जाते थे।
यही वजह है कि उस दौर में स्थानीय सुनारों के पास रति के बीज हुआ करते थे, जिसका इस्तेमाल वह रत्नों को मापने के लिए किया करते थे। रति के बीजों के अलावा उसके पत्ते भी काफी लाभदायक साबित होते हैं, जिन्हें चबाने से मुंह में हुए छालों से राहत मिलती है।
इसके अलावा रति के पौधे की जड़ों को भी औषधिय पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिनका इस्तेमाल दवाई बनाने के लिए किया जाता है। कई लोग रति के रंगीन बीजों को अंगूठी में पहनना पसंद करते हैं, वहीं कुछ जगहों पर रति की माला बहुत ज्यादा प्रचलित है। कहा जाता है कि रति के रंगीन बीज सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होते हैं, जिन्हें पहनने से शरीर को फायदा मिलता है।
नहीं बढ़ता है इस बीज का वजन
रति के बीज अन्य बीजों से बिल्कुल अलग होते हैं, क्योंकि बीतते समय या बढ़ते आकार की वजह से इन बीजों का वजन कभी भी नहीं बदलता है। अगर आप रति के बीज को 10 साल बाद भी तोल कर देखेंगे, तो उसका वजन पहले के समान ही होगा।
इसके अलावा इन बीजों को पानी में भिगाने या फिर धूप में सुखाने से भी इसके वजन में कोई फर्क नहीं आता है, जबकि रति के बीज का वजन बहुत ही कम होता है। शायद यही वजह है कि प्राचीन काल में लोगों ने इस बीज के ऊपर रत्ती भर का मुहावरा बना दिया होगा, जिसका इस्तेमाल आज भी आम बोलचाल की भाषा में किया जाता है।
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