Why Tyre Colour is Black: भारत की सड़कों पर विभिन्न ब्रांड्स की गाड़ियाँ दौड़ती हुई दिखाई देती हैं, जिनका रंग और डिजाइन अलग-अलग होता है। लेकिन विभिन्न ब्रांड्स की इन कारों में एक चीज बिल्कुल सामान्य होती है, जो कुछ और नहीं बल्कि गाड़ियों का टायर है।
दुनिया भर में चलने वाली सभी कारों के टायर का रंग काला ही होता है, जबकि उनके डिजाइन और मॉडल में फर्क देखने को मिल सकता है। लेकिन क्या आपको पता है कि गाड़ियों का टायर हमेशा से काला नहीं हुआ करता था, बल्कि एक समय पर सफेद या मटमैले रंग के टायरों का चलन होता था। फिर कंपनियों ने काले रंग के टायर बनाना शुरू क्यों कर दिया, इसके पीछे कौन-सा विशेष कारण छिपा है।
ऑफ व्हाइट या मटमैले रंग के होते थे टायर (Why Tyre Colour is Black)
ऐसा नहीं है कि गाड़ियों के टायर हमेशा से ही काले रंग के हुआ करते थे, बल्कि साल 1917 से पहले गाड़ियों के टायर का रंग हल्का सफेद या मटमैला हुआ करता था। दरअसल उस दौर में टायर बनाने के लिए प्राकृतिक रबर का इस्तेमाल किया जाता था, जिसका रंग हल्का सफेद या मटमैला होता था।
ऐसे में उस प्राकृतिक रबर के साथ बिना कोई छेड़छाड़ किए टायर बनाने का काम किया जाता था, जिससे उसके रंग में खास परिवर्तन नहीं आता था। लेकिन जैसे-जैसे सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ने लगी, कार कंपनियों को बेहतरीन प्रफोमेंस का प्रेशर भी बढ़ने लगा था।
ऐसे में कार कंपनियों ने टायर की क्वालिटी को सुधारने के लिए नए-नए प्रयोग करना शुरू कर दिया था, जिसके तहत सबसे पहले टायर को मजबूती देने के लिए प्राकृतिक रबर में जिंक ऑक्साइड नामक एक खास केमिकल मिलाया जाता था। इससे टायरों को मजबूती मिलती थी और लंबे समय तक खराब नहीं होते थे, हालांकि उस केमिकल को मिलाने के बाद भी टायर का रंग मटमैला ही रहता था। ये भी पढ़ें – हरे रंग के कपड़े से क्यों ढकी जाती है निर्माणाधीन बिल्डिंग, जानिए इसके पीछे की वजह
1917 के बाद प्रचलन में आए थे काले टायर
इस तरह कंपनियों ने टायर की क्वालिटी को बेहतर बनाने के लिए कई प्रकार के प्रयोग किए, जिसके बाद साल 1917 में रबर में कार्बन मिलाया जाने लगा। इस कार्बन की वजह से टायर का प्राकृतिक रंग बदल कर काला हो जाता था, जिसके बाद बाज़ार में हल्के सफेद और मटमैले रंग के बजाय काले रंग के टायर का चलन शुरू हो गया।
रबर में कार्बन मिलाने का खास मकसद यही था कि उसे ज्यादा से ज्यादा मजबूती प्रदान की जा सके, क्योंकि सूरज की तेज और गर्म किरणों की वजह से टायर को काफी नुकसान पहुँचता था और उनमें दरार आ जाती थी। ऐसे में कंपनियों ने सोचा कि टायर को बनाने के लिए कार्बन का इस्तेमाल किया जाए, ताकि दिन भर धूप में खड़ी रहने वाली कार के टायर को कम से कम नुकसान पहुँचे।
ऐसे में इस प्रयोग के तहत रबर में कार्बन मिला दिया जाता था, क्योंकि कार्बन लंबे समय तक सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को ब्लॉक करने का काम करता है। इसकी वजह से टायर पर सूरज की डायरेक्ट रोशनी नहीं पड़ती थी और वह लंबे समय तक बिना किसी नुकसान के चल सकता है।
कार्बन युक्त टायर बनाने से उसके कटने या फटने का खतरा भी कम हो जाता है, क्योंकि सूर्य की गर्मी की वजह से रबर को नुकसान नहीं पहुँचता है। ऐसे में कार चालक की सुरक्षा और सहूलियत को ध्यान में रखते हुए सभी कंपनियों ने टायर बनाने के लिए कार्बन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से गाड़ियों के टायर का रंग काला होता है।
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