दहेज़ (Dowry) का अर्थ होता है, जब लड़की के परिवार के तरफ़ से विवाह के समय जो धन या सम्पति वर पक्ष को दी जाती है, उसे ही दहेज़ कहा जाता है। इसे नकद, गहने और कीमती सामान के रूप में दिया जाता है। इसका इतिहास बहुत लंबे समय से चला आ रहा है। दहेज़ जैसी प्रथा भारत समेत कई देशों में फ़ैली हुई है।
अगर हम दहेज़ के वर्तमान परिदृश्य की तुलना अतीत से करें तो इसका इतिहास बिल्कुल ही बदल चुका है। पहले यह शादी के समय लड़कियों को अपनी इच्छानुरूप उपहार के तौर पर दिया जाता था ताकि लड़कियाँ अपने नए घर गृहस्थ को अच्छे से चला सके लेकिन अब यह पूरी तरह से व्यापार रूपी ज़ंजीर में पूरे समाज को जकड़ चुका है। यह आधुनिक समाज से लेकर पिछड़े समाज में अभी भी विकराल रूप में फैला हुआ है।
इसके मुख्य कारण है:-
- लोगों की संकीर्ण मानसिकता
- बेटे एवं बेटियों में भेदभाव
- शिक्षा कि कमी इत्यादि
यह बहुत दुखद बात है कि हमारे देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज़ सम्बन्धी मौत की शिकार होती है।
इस प्रकार हम यह कह सकते है कि दहेज़ प्रथा समाज में फ़ैली कुरीतियों में से एक है। यह एक ऐसी प्रथा है जिसने ना जाने कितने पिताओं को घर से बेघर कर दिया है, कितने परिवारों को भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है, ना जाने कितनी बेटियों की ज़िन्दगी को मौत के मुँह में धकेला है। यह समाज में एक कलंक के सामान है।
दहेज़ प्रथा के कारण ही समाज़ में बाल विवाह, घरेलु हिंसा, तलाक़ जैसी अनेक कुरीतियों का जन्म हुआ है, जिससे समाज की प्रगति रुक-सी गई है। कुछ वर्ष पहले तक-तक स्थिती ऐसी थी कि बहुत से परिवार वाले बेटियों के जन्म लेते ही उन्हें मार देते थे और कुछ बहुत दुःखी हो जाते थे, उन्हें लड़कियों के जन्म के समय से ही उनकी भविष्य की चिंता सताने लगती थी। यह स्थिती वर्त्तमान समय में भी कहीं-कहीं विधमान है।
अगर हम दहेज़ प्रथा के कानून की बात करें तो दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज़ लेने या देने या इसके लेन देन में सहयोग करने पर पाँच वर्ष की क़ैद और 15,000 रूपये ज़ुर्मना देना पड़ता है। दहेज़ की लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A जो की पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पति अथवा कीमती वस्तुओं के अवैधानिक माँग के मामले से सम्बंधित है। इसके अंतर्गत 3 साल का ज़ुर्माना हो सकता है।
धारा 406 के अनुसार लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की क़ैद और ज़ुर्माना दोनों का प्रावधान है, यदि लड़की के ससुराल वाले लड़की के स्त्रिधन को सौपने से मना करते हैं तो। अगर किसी लड़की की विवाह के सात साल के अंदर असामान्यता परिस्थिति में मौत हो जाती है और यह साबित हो जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया जाता था तो भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304-B के अंतर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है।
यह हमारे समाज में अभिशाप बन गया है। हमें इसे पूरी तरह से ख़त्म करने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए हमें लड़कियों की पढ़ाई पर ज़ोर देना चाहिए, Inter Caste Marriage के लिए भी नवयुवको को प्रोत्साहित किया जा सकता है, क्योंकि इससे वर ढूँढना आसान हो जाता है। अखबार, टीवी, रेडिओ, फ़िल्म इत्यादि के सहायता से भी लोगों को जागरूक किया जा सकता है।
अतः इस प्रथा को पूरे देश से उखाड़ फ़ेकने की ज़रूरत है, तभी हमारा समाज, हमारा देश प्रगति की पथ पर आगे बढ़ सकता है।