Teacher Gerald John Struggle Story – एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी-भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं! पर असल में ऐसा कहना चाहिए कि सरकार के घर देर है अंधेर नहीं, क्योंकि इसका एक सटीक उदाहरण है गेराल्ड जॉन (Gerald John) के साथ घटी ये घटना…
हुआ कुछ यूं कि जब 1989 में गेराल्ड जॉन 24 वर्ष के थे, उस समय उन्होंने अखबार में छपे एक विज्ञापन को पढ़कर देहरादून के सरकारी सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान CNI बॉयज इंटर कॉलेज (C.N.I. BOYS’ INTER COLLEGE) में वाणिज्य अध्यापक की पोस्ट पाने के लिए अप्लाई किया था।
मेरिट लिस्ट में किया टॉप, तब भी नहीं मिली जॉब
एक रिपोर्ट के अनुसार, जॉन ने ना सिर्फ इंटरव्यू पास किया बल्कि मेरिट लिस्ट में टॉप भी किया, पर फिर भी उनको जॉब नहीं मिल पाई थी। उनसे जब जॉब ना मिलने का कारण जानना चाहा उन्होंने बताया कि जॉब पाने वाले कैंडिडेट के पास आशुलिपि (Stenography) का कौशल होना आवश्यक था। जबकि जॉन को आशुलिपि नहीं आती थी। यद्यपि जब अखबार में इस जॉब का एड दिया गया था, उसमें आशुलिपि का कहीं उल्लेख नहीं था।
55 साल बाद मिला न्याय
विज्ञापन में आशुलिपि से सम्बंधित कोई उल्लेख ना होने की इस बात को आधार बनाकर फर्रुखाबाद के रहने वाले जॉन ने वर्ष 1990 में इलाहाबाद हाईकोर्ट जाकर केस किया। फिर साल 2000 में जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से भिन्न हो गया, तो इस केस को नैनीताल में एचसी को ट्रांसफर कर दिया गया। आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि जॉन को अब जाकर न्याय मिला जबकि उनकी उम्र 55 वर्ष है। उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा दिसम्बर 2020 में जॉन के पक्ष में निर्णय सुनाया गया।
80 लाख रुपए का मिला मुआवजा
अदालत ने उनके पक्ष में निर्णय लेते हुए उन्हें विद्यालय में पोस्टिंग भी दी और साथ ही मुआवजे के तौर पर 80 लाख रुपए देने का आदेश भी दिया। अभी हाल ही कि रिपोर्ट के अनुसार कुछ माह पूर्व ही उत्तराखंड सरकार द्वारा जॉन को मुआवजे की रकम में से 73 लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया है और बाकी 7 लाख रुपए का भुगतान उत्तर प्रदेश सरकार करेगी। जॉन अब विद्यालय में सबसे वरिष्ठ शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं, अतः वे एजुकेशनल डिपार्टमेंट के कार्यवाहक प्राचार्य भी बन गए हैं।