किसी भी व्यक्ति के संघर्ष को आप तब और ज्यादा करीब से महसूस कर पाते हैं, जब या तो आप उस संघर्ष से गुजर चुके होते हैं, या तो उस से गुजर रहे होते हैं। ऐसे ही एक संघर्ष की कहानी सुपर-30 के संचालक श्री आनंद कुमार ने भी शेयर की है, क्योंकि उन्होंने स्वयं भी ऐसे ही हालातों से गुजर कर सफलता प्राप्त की। अपने कॉलम में आनंद कुमार ने उत्तर प्रदेश के रहने वाले प्रभात पांडे की कहानी बयां की।
स्कूल जाने के नही थे पैसे, लेकिन आंखों में थे बड़े ख्वाब
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर के छोटे से गांव में रहने वाले प्रभात पांडे की आंखों में बड़े-बड़े सपने बसा करते थे। प्रभात के पिता श्री मिथिलेश पांडे ने भी अधिकारी बनने का सपना देखा था, लेकिन आर्थिक संकट के कारण वह अपना सपना पूरा नहीं कर पाए। किसी तरह से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। वह संस्कृत के विद्वान थे। उनके चार बच्चों में एक प्रभात पढ़ाई में बहुत अच्छा था। प्रभात का मन विज्ञान में ही लगा रहता था। वह अक्सर कुछ ना कुछ मॉडल बनाता रहता था।
प्रभात की इच्छा गांव के पास स्थित एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने की थी, लेकिन पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह प्राइवेट स्कूल में उनका दाखिला करा पाते। प्रभात को सरकारी विद्यालय से ही अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। हाई स्कूल में आने के बाद उनकी इच्छा गणित और विज्ञान विषय लेने की थी, लेकिन फिर से पैसों की तंगी ने उनका रास्ता रोकने की कोशिश की। इस बार प्रभात ने आर्थिक तंगी को अपने सपनों के बीच नहीं आने दिया और अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर स्वयं से पढ़ाई कर बोर्ड परीक्षा में बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए।
वैज्ञानिक बनना चाहते थे प्रभात
आनंद कुमार जी आगे लिखते हैं कि प्रभात वैज्ञानिक बनने का सपना देखा करते थे। उनके पिता को यह बात मालूम थी, इसलिए वह चाहते थे कि प्रभात आईआईटी से पढ़ाई करें। आईआईटी में दाखिले के लिए एक अच्छी कोचिंग की जरूरत थी। उनके मित्रों और रिश्तेदारों ने उन्हें कोटा से कोचिंग करने की सलाह दी। कोटा से कोचिंग करने के लिए बहुत सारे पैसों की जरूरत पड़ती,लेकिन प्रभात के स्वाभिमानी पिता मिथिलेश पांडे ने किसी के आगे मदद की गुहार नहीं लगाई और पैसों का इंतजाम करने में लगे रहे।
इसी दौरान उन्हें सुपर-30 के बारे में पता चला। उसके बाद उन्हें आनंद जी के पास पटना लाया गया। एक शुरुआती टेस्ट लेने के बाद आनंद कुमार जी ने प्रभात को अपनी सुपर-30 टीम में शामिल कर लिया। आनंद कुमार जी लिखते हैं कि, “प्रभात पढ़ाई में बहुत अच्छा था और काफी मेहनती भी था। सुपर-30 टीम के अलावा वह मेरे परिवार से भी घुल-मिल गया था।
वैज्ञानिक बन कर ही दम लिया
प्रभात का आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में चयन हो गया, किंतु उन्हें अपनी पसंद की ब्रांच नहीं मिल रही थी और वह वैज्ञानिक बनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एनआईटी में दाखिला ले लिया। वहां खूब मेहनत से पढ़ाई करने के बाद उनकी नौकरी भी लग गई। तब वह अपने पिता के साथ मिठाई लेकर आनंद कुमार जी से मिलने पटना भी गए।
चूंकि प्रभात वैज्ञानिक बनना चाहते थे, इसलिए नौकरी करते हुए भी तैयारी करते रहे। अंततः उनका सपना पूरा हुआ और इसरो में उनका चयन हो गया। अपनी मेहनत और लगन तथा परिवार के सहयोग के दम पर उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल किया।