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30 वर्ष पहले माँ द्वारा आंगन में शुरू किए गए मशरूम की खेती को चार बेटों ने बना दिया ब्रांड

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आज की कहानी के माध्यम से हम आपका परिचय एक ऐसे किसान से करवाने जा रहे हैं जिसने मशरूम की खेती में एक ऐसा मुकाम हासिल कर लिया जो दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन चुका है। गौरतलब हो कि इसकी शुरुआत इनकी माँ ने काफ़ी छोटे स्तर पर किया था, जिसे इन चारों भाइयों ने मिलकर ब्रांड बना दिया और राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित भी हुए।

मशरूम उत्पादन के लिए पूरे इलाके में प्रसिद्ध पंजाब के अमृतसर के धरदेव गाँव के मन्दीप सिंह (Mandeep Singh) अपने फॉर्म ‘रंधावा मशरूम‘ के तहत काफ़ी बड़े पैमाने पर मशरुम का कारोबार करते हैं और साथ ही साथ इन्हें प्रोसेस कर इनसे आचार, भुजिया और बिस्किट जैसे अन्य खाद्य पदार्थ भी बनाते हैं। इन सब से उन्हें प्रत्येक वर्ष करोड़ों का फायदा होता है।

Randhawa-Mushroom

32 वर्षीय मन्दीप जब 2 साल के थे तब से ही उनके घर मशरूम की खेती की शुरुआत हुई थी जिसे उनकी माँ ने 1989 में शुरू किया था। मन्दीप के चार भाई हैं और मशरूम के उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक की अलग-अलग भूमिका निभाते हैं-

  • मनजीत सिंह- जो सबसे बड़े हैं प्रोडक्शन देखते हैं हरप्रीत सिंह-प्रोसेसिंग के साथ स्पाॅन बनाने का काम देखते हैं
  • मन्दीप सिंह-बैंकिंग, मार्केटिंग और मीडिया से सम्बंधित काम देखते हैं।
  • सबसे छोटे भाई ऑस्ट्रेलिया में खेती देखते हैं।
  • जबकि रंधावा मशरुम का बागडोर आज भी उनकी माँ ने संभाल रखा है।

रंधावा मशरूम (Randhawa mushroom) की शुरुआत

मंदीप के पिता पंजाब पुलिस कार्यरत थें और उनकी माँ स्वेटर बुनती थी, जिन्हें बाजारों में बेचा जाता था। धीरे-धीरे बुने स्वेटर की जगह रेडीमेड स्वेटर ने ले ली और इस प्रकार बाजारों में बुने हुए स्वेटर का डिमांड कम हो गया। इसके बाद इन्होंने स्वेटर बुनन का काम छोड़ आंगन में ही मशरूम की खेती करने का सोचा। तब के समय में मशरूम उतना प्रसिद्ध नहीं था इस कारण इसे बेचने में काफ़ी दिक्कत होती थी।

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अपने साथ हुई एक घटना का ज़िक्र करते हुए मन्दीप बताते हैं कि जब उनके पिता मशरूम के पहले पैकेट को बेचने दुकान गए तो दुकानदार ने यह बोलकर कि ये अच्छा नहीं होता है बल्कि इसे खाकर लोग बीमार पड़ेंगे काफ़ी सस्ते में खरीदा। इसके बावजूद भी उन्होंने धैर्य का परिचय देते हुए अपने उत्पादन को जारी रखा था। उन्होंने अब इसे सीधे तौर पर ग्राहकों को बेचने का सोचा और फिर उनके चारों बेटे साइकिल के द्वारा स्टेट हाईवे के पास ले जाकर इसे बेचने लगे।

इनके मशरुम काफ़ी उच्च गुणवत्ता के होते थे इसलिए काफ़ी कम समय में ही इस इलाके में अपनी पकड़ बना ली थी। सब सही चल रहा था कि अचानक 2001 में फ़सल में हुई वेट बबल नामक की बीमारी लग गई और फ़सल बर्बाद हो गया। जिसके बाद वैज्ञानिकों ने चार पांच साल तक मशरूम की खेती नहीं करने की सलाह दी और इसे अन्य जगह पर शिफ्ट करने को बताए।

यह दौर उन लोगों के लिए काफ़ी मुश्किल था लेकिन फिर भी उन लोगों ने हिम्मत का परिचय देते हुए घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर बटाला अमृतसर हाईवे के पास 4 एकड़ की ज़मीन पर खेती शिफ्ट कर दी जहाँ पहली बार में काफ़ी अच्छी फ़सल हुई। अधिक उत्पादन के लिए उन्होंने आउटलेट को शुरू किए।

मन्दीप Indore Composting के माध्यम से AC रूम में मशरूम की खेती करते हैं जिसमें सभी कार्यों को मशीनों के द्वारा किया जाता है और सालों भर मशरूम की खेती की जाती है। इस तकनीक में काफ़ी तेजी से उत्पादन होता है और यह टिशू कल्चर तकनीक का इस्तेमाल बीजों को तैयार करने के लिए करते हैं।

Randhawa-Mushroom

इसकी बुआई के लिए ग्रोइंग रूम का उपयोग किया जाता है जिसकी संख्या फिलहाल 12 है। मन्दीप के यहाँ प्रतिदिन लगभग 8 क्विंटल मशरूम का उत्पादन होता है जिसमें बटन, ऑएस्टर आदि जैसे लगभग 12 प्रकार के मशरूम शामिल होते हैं। उत्पादन के साथ-साथ यहीं से इन्हें बेचा भी जाता है। इनके उत्पादों की मांग अमृतसर के साथ-साथ जालंधर, गुरदासपुर, बटाला और पठानकोट तक में है और वह थर्ड पार्टी के माध्यम से अपने मशरूम को दुबई भी भेजते हैं।

अन्य किसान भी बिना किसी परेशानी के मशरूम का उत्पादन कर सके इसके लिए वह उन्हें मशरूम कंपोस्ट भी बेचते हैं और महिलाओं को रोजगार मिले इसके लिए अपने फॉर्म में 98% महिला वर्कर ही रखे हैं जिनकी देखभाल का काम उनकी माँ करती है।

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2017 में मशरूम के उत्पादन के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान और सेल्फ मार्केटिंग के लिए ISO द्वारा ‘रंधावा मशरूम‘ को राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित भी किया जा चुका है। मंदीप भविष्य में मशरूम के होम डिलीवरी के लिए तत्पर हैं और इसके लिए काम भी चल रहा है जिससे ग्राहकों को कम पैसे में ताज़ा मशरूम मिल सके।

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वो किसानों से अपील करते हैं कि दुनिया में हर चीज बदल रहा है इसलिए आप परंपरागत कृषि साथ ही नए तरीके से खेती कर लाभ प्राप्त करें। इसके आगे मंदीप बताते हैं कि देश की आधी आबादी कृषि कार्य में लगी हुई है और इसी पर निर्भर है इसके लिए ज़रूरी है स्कूली छात्रों को शुरू से ही कृषि कार्यों के लिए तैयार रखा जाय।

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