यह ज़रूरी नहीं कि हर काम पैसे के लिए किया जाए और जिस काम को करके ख़ुशी ना मिले, तो उसे छोड़ देना ही बेहतर होता है। वैसे आजकल के युवाओं में रिस्क लेने की कैपेबिलिटी बढ़ गई है। अच्छे-अच्छे कंपनी की नौकरी को भी छोड़ आत्मनिर्भर बनने की बात कर रहे हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जिन्होंने आत्मनिर्भर बनने के लिए खेती को चुना।
मध्य प्रदेश के विदिशा के रहने वाले संकल्प शर्मा (Sankalp Sharma), जिन्होंने पुणे स्थित भारतीय विद्यापीठ से एमबीए की डिग्री हासिल की है। एमबीए करने के बाद इनके बहुत अच्छी जॉब भी लगी और सैलरी पैकेज भी बहुत अच्छी थी लेकिन जिस चीज की कमी थी, वह थी इनके मन की खुशी, क्योंकि नौकरी करके इन्हें बहुत ज़्यादा ख़ुशी नहीं मिल रही थी। आखिरकार इन्होंने खेती करने के सपने को मन में संजोए 2015 में अपनी नौकरी छोड़ दी और खेती का काम शुरू कर दिया।
1 लाख रुपए की नौकरी छोड़ी
संकल्प बैंकिंग सेक्टर में पूरे 10 साल तक नौकरी किए और जब उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ने का फ़ैसला किया तब उनकी मासिक आय 1 लाख रूपये थी। उनके मन में कहीं ना कहीं इस बात का डर भी था कि वह खेती में सफल हो पाएंगे या नहीं, कहीं नौकरी छोड़ने के बाद उनकी समस्या और ना बढ़ जाए, क्योंकि खेती करना लॉन्ग टर्म का काम है। इसमें बहुत जल्दी मुनाफा नहीं कमाया जा सकता। इसलिए इन्होंने 2 साल तक अपने ख़र्च को बिल्कुल ही कम कर लिया ताकि ने आर्थिक समस्याओं का सामना ना करना पड़े।
12 एकड़ ज़मीन पर की खेती की शुरुआत
खेती की शुरुआत संकल्प ने अपने 12 एकड़ पैतृक ज़मीन पर कि जिस पर उन्होंने प्याज, अदरख, लहसुन, मिर्च, टमाटर इत्यादि उगाया। खेती के दौरान ही उन्होंने देखा कि लोग रसायनिक खाद से उपजे सब्जियों और फलों का खाने में प्रयोग करते हैं, जिसमें पाए जाने वाले सारे पोषक तत्व ख़त्म हो जाते हैं। इसलिए इन्होंने आगे से जैविक खेती करने का फ़ैसला लिया।
पद्मश्री सुभाष पालेकर से ली जैविक खेती की जानकारी
संकल्प को जैविक खेती की जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने इसे शुरू करने से पहले 2016 में पद्मश्री से सम्मानित सुभाष पालेकर से मिले। जिन्होंने संकल्प को जैविक खेती से जुड़ी सारी जानकारियाँ दी जिससे कम लागत में ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफा कमाया जा सके और साथ ही फसलों की पैदावार भी अच्छी हो।
एक ही बार करनी पड़ती है सिंचाई
संकल्प लें उसके बाद अपने उस 10 एकड़ ज़मीन पर शरबती गेहूँ की खेती करनी शुरू कर दी। जिसकी मांग हमारे देश में सबसे ज़्यादा है और इस गेहूँ की एक ख़ास बात यह है कि इसकी खेती में सिर्फ़ एक बार ही सिंचाई करती करनी पड़ती है, जबकि अन्य गेहूँ की खेती में तीन से चार बार सिंचाई करनी पड़ती है।
फिलहाल संकल्प 2016 से ही शरबती गेहूँ की खेती कर रहे हैं। 1 एकड़ ज़मीन में कम से कम 12 से 14 क्विंटल शरबती गेहूँ का उत्पादन होता है। वैसे बाज़ार में इसकी क़ीमत 3 हज़ार से लेकर 32 सौ रुपए प्रति क्विंटल है, लेकिन जैविक तरीके से शरबती गेहूँ उगाने के कारण संकल्प को बाज़ार में 5 से 6 हज़ार रुपए प्रति क्विंटल क़ीमत मिल जाता हैं।
तकनीकों से करते हैं खेती
संकल्प का कहना है कि प्राकृतिक खेती के मूल चार स्तंभ माने जाते हैं। बीजामृत, मल्चिंग, जीवामृत और वापसा। वह बताते हैं कि जहाँ पर वह अभी प्राकृतिक खेती कर रहे हैं ठीक उसी जगह पर पहले केमिकल फार्मिंग की जाती थी। ऐसे में मिट्टी को बदलना काफ़ी ज़्यादा ज़रूरी हो गया था इसके लिए उन्होंने पानी में ख़ूब जीवामृत का इस्तेमाल किया और उर्वरक क्षमता पर काम किया।
खेती में गाय के गोबर का करते हैं इस्तेमाल
संकल्प अपने खेतों में सिर्फ़ गाय के गोबर के खाद का इस्तेमाल करते हैं और कीटनाशक दवाइयों आम, अमरूद, नीम की पत्तियों का रस और उसके साथ-साथ अदरक लहसुन और मिट्टी को मिलाकर बनाते हैं। संकल्प खेती के लिए सटीक तकनीकों के साथ-साथ 5 लेयर तकनीक का भी इस्तेमाल करते हैं।
सॉइल टेक्निक का प्रयोग करते हैं
संकल्प खेती के लिए वेंकट रेड्डी के बनाए हुए सॉइल टेक्निक का प्रयोग करते हैं जिसमें, वह अपने खेतों में तीन से चार फीट मिट्टी को निकाल देते हैं और फिर 200 लीटर पानी में लगभग 30 किलो मिट्टी का घोल बनाते हैं। जिसके बाद यह मिट्टी काफ़ी चिकनी हो जाती है और कुछ पैमाने पर ऊपरी मिट्टी को भी मिला देने के बाद इसका प्रयोग फ़सल पर छिड़कने के लिए करते हैं। ऐसा करने से फसलों में फंगस या कीट नहीं लगते हैं। इससे पौधे बीमारियों से भी दूर रहते हैं। खेतों में ऊपरी मिट्टी का इस्तेमाल करने से पौधे तेजी से बढ़ते हैं और इनमें humus मौजूद रहता है साथ ही यह एक तरीके से उर्वरक का काम भी करता है।
5 लेयर तकनीक का करते हैं इस्तेमाल
संकल्प ने 2016 से 5 लेयर तकनीक की शुरुआत की। इस तकनीक के वज़ह से ही वह अपने 2 एकड़ की ज़मीन पर पपीता, नींबू, सीताफल के साथ-साथ टमाटर, अदरक और दलहन की भी खेती कर पा रहे हैं। यह एक तरह से बगीचे जैसा हो जाता है जिसमें मानवीय हस्तक्षेप कम होने पर भी इनके बढ़ने में कोई कमी नहीं होती है।
12 से 13 लाख रुपए की होती है बचत
संकल्प अपने खेतों का काम नर्मदा नेचुरल फार्म द्वारा कराते हैं। उनके खेतों में जिन-जिन चीजों का उत्पादन होता है वह उसे थोक और खुदरा दोनों तरीके से बेचते हैं। वर्तमान समय में संकल्प के ग्राहक कई बड़े शहरों जैसे बेंगलुरु दिल्ली मुंबई पुणे तक हो चुके हैं। उन्होंने अपने खेतों के लिए 5 लोगों को रोजगार भी दिया है। इसके साथ ही उनकी सालाना आमदनी भी 12 से 13 लाख रुपए हो चुकी है।
किसानों को अच्छी मार्केटिंग के लिए दे रहे हैं बढ़ावा
आगे संकल्प का विचार है कि वह ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को एक साथ ही जोड़ सके, जिससे किसान डायरेक्ट ग्राहकों को अपने उत्पादों को बेच सके और ज़्यादा मुनाफा कमा सके। इसमें बिचौलियों का काम ख़त्म हो जाएगा। और किसानों के मन में यह जो भ्रम है कि प्राकृतिक बहुत महंगे मिलते हैं तो उस भ्रम को भी दूर किया जा सके। इससे कहीं ना कहीं किसानों के बीच एक सकारात्मक विचारधारा फैले गई और वह अच्छा काम करने के लिए प्रेरित होंगे।
यूट्यूब पर 25000 फॉलोअर्स को करते हैं जागरूक
संकल्प ने इस साल यानी 2020 में अपना यूट्यूब चैनल भी शुरू किया है, जिसके द्वारा वह लोगों को जैविक खेती के बारे में जागरूक करते हैं और उन्हें जानकारियाँ प्रदान करते हैं। ताकि लोग रासायनिक चीजों को अपने खाने से दूर रख सके। उनके लोगों को जागरूक करने का तरीक़ा इतना अच्छा है कि कुछ ही महीनों में उनके 25000 सब्सक्राइबर्स हो चुके हैं।
संकल्प ने सरकार से भी की अपील
संकल्प का सरकार से भी यह अपील हैं कि भारत में प्राकृतिक खेती को और भी बढ़ावा दिया जाए। ताकि किसान ज़्यादा से ज़्यादा जैविक खेती करें। संकल्प ने यह भी कहा कि सरकार को ज़िला स्तर पर किसानों के पास मॉडल पेश करने होंगे जिससे उन्हें प्राकृतिक खेती पर भरोसा हो।
इस तरह संकल्प अपने काम के जरिए कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति ला रहे हैं। जिसमें किसानों को ज़्यादा ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है इसके साथ-साथ सेहत और स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जा रहा है और जैविक खेती को प्रमोट किया जा रहा है।