शिक्षा हमारे लिए ज़रूरी है, लेकिन यह भी सच है कि ‘मेहनत कभी पढ़ाई की मोहताज नहीं होती।’ हमें ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते रहते हैं, जिनकी शिक्षा भले ही किन्हीं कारणों से पूरी ना हो पाई हो, लेकिन उन्होंने मेहनत के दम पर अपनी पहचान बनाई है।
ऐसे ही एक शख़्स हैं बठिंडा (Bathinda) के राजवीर सिंह (Rajveer Singh), जो माँ के बीमार होने की वज़ह से 10वीं कक्षा के बाद नहीं पढ़ पाए थे। फिर बाद में उन्होंने घर से ही मछली पालन का काम शुरू कर दिया और इसके लिए बहुत मेहनत की। उनका यह व्यवसाय विस्तृत होता गया और अब वह इसी व्यवसाय से सालाना 45 लाख रुपये कमा रहे हैं।
घर की बंजर ज़मीन को साफ़ करके 4 एकड़ में बनाया “Rajveer Fish Farm”
मेहराज गाँव के निवासी राजवीर ने बताया कि उनकी माँ बीमार रहती थी जिसके कारण वह दसवीं के बाद पढ़ाई नहीं कर पाए थे। फिर जब वे सिर्फ़ 18 साल की उम्र के थे तभी से ही मछली पालन करना शुरू कर दिया था। इसके लिए पहले उन्होंने मछली पालन का प्रशिक्षण लिया फिर अपने घर की ही 10 एकड़ बंजर ज़मीन को साफ़ करके उसमें से 4 एकड़ ज़मीन में फिश फार्म हाउस बना लिया। पहले तो शुरू-शुरू में उन्होंने 30-35 लेबर के साथ मछली पालन करने के साथ ही मंडीकरण का व्यापार भी किया। फिर अगले वर्ष से इन्होंने पंचायती छप्पड़ वाली नहर के पानी वाली जमीनें ठेके पर ले ली और उसमें मत्स्य पालन किया।
अभी राजवीर सिंह करीब 30 गांवों की पंचायती ज़मीन में अपने बड़े-बड़े पौंड में मछली पालन का कार्य कर रहे हैं और राजस्थान के सूरतगढ़ में भी उन्होंने 10 वर्षों से 150 एकड़ ज़मीन लीज पर ले रखी है उसमें भी वह मत्स्य पालन करते हैं। इस प्रकार से करीब 200 एकड़ पंचायती ज़मीन में उन्होंने पौंड बनवाए हैं जिसमें मछली पालन का काम चल रहा है। उनके अनुसार 1 एकड़ भूमि में करीब 15 क्विंटल तक मछली पैदा हो जाती है, इसलिए उसकी क़ीमत भी अच्छी खासी मिलती है।
40 की उम्र में बनाया फार्म हाउस
राजवीर सिंह केवल मछली पालन ही नहीं करते बल्कि खेती के साथ-साथ दूसरे कई सहायक व्यवसाय करते हैं जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। जब वह 40 वर्ष की आयु के हुए तो उन्होंने अपनी पसन्द का एक फार्म हाउस भी बनवाया। हालांकि उनका मछली पालन का काम काफ़ी विस्तृत है और हर साल 45 लाख रुपए की कमाई उससे होती है, लेकिन फार्म हाउस बनाना उनका सपना था जिसे उन्होंने पूरा किया।
उन्होंने अपने ही गाँव मेहराज में 4 एकड़ भूमि में जो फार्म हाउस बनवाया है, उसमें करीब 2000 से भी ज़्यादा विभिन्न प्रजातियों के पेड़ पौधे हैं। इस हरे भरे फार्महाउस में प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। साथ ही इस फार्महाउस में कई दुर्लभ प्रजातियों के लुप्त हो रहे सैकड़ों पक्षी जैसे चिड़िया, घुग्गी, मोर इत्यादि भी दिखाई देते हैं। इसमें घोड़े और कुत्ते भी हैं। राजवीर अपने खेत में ही ऑर्गेनिक सब्जियों और अनाज भी उगाया करते हैं। इसके अलावा करीब सभी प्रकार के फलों के पेड़ उन्होंने फार्महाउस में लगा रखे हैं।
पानी पर निर्भर है यह व्यवसाय
राजवीर सिंह बताते हैं कि पंजाब राज्य में मछली की खपत बहुत ज़्यादा नहीं होती है, परन्तु फिर भी मंडीकरण की कोई परेशानी नहीं आती है। क्योंकि अब वह पटियाला, चंडीगढ़, श्रीनगर, दिल्ली के व्यापारियों को भी माल भेजते हैं। व्यापारी स्वयं भी उनके फार्म हाउस पर मछली खरीदने आते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि मत्स्य पालन का कारोबार पानी पर ही निर्भर करता है, वैसे अधिक परेशानी नहरी पानी की होती है। जब नहरों से पानी कम प्राप्त होता है, तो दिक्कत आ जाती है। ट्यूबवैल कनेक्शन भी कमर्शियल रेट पर ही लगता है, इसलिए प्रतिमाह पच्चीस-तीस हज़ार रुपये का बिल आ जाता है। इस प्रकार से देखा जाए तो मत्स्य पालन के व्यवसाय में शुरू के दिनों में कमाई ज़्यादा नहीं होती है, पर बाद में परेशानी नहीं आती। इसके अलावा बारिश के मौसम में भी 1 पौंड में 5 से 6 लाख रुपयों का नुक़सान भी उठाना पड़ सकता है।