History of sugar : भारतीयों को मीठे का शौक बहुत ज्यादा होता है, जिसकी वजह से हमारे देश में चाय से लेकर मिठाई तक हर चीज को बनाने के लिए चीनी का इस्तेमाल किया जाता है। चीनी के बिना किसी भी मीठी डिश का स्वाद अधूरा ही रह जाता है, जिसकी वजह से लोग इसे सफेद सोना भी कहते हैं।
हालांकि कई लोग सफेद चीनी की जगह पर भूरी शक्कर यानी ब्राउन शुगर का इस्तेमाल करते हैं, जो सेहत के लिए नुकसानदायक नहीं होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अंग्रेजी-सी लगने वाली ब्राउन शुगर का आविष्कार हमारे देश भारत में ही हुआ था, जिसके बाद सफेद चीनी का अस्तित्व दुनिया के सामने आया था।
भारत ने दुनिया को दी थी ब्राउन शुगर
यह तो हम सभी जानते हैं कि सफेद चीनी बनाने के लिए गन्ने का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन प्राचीन काल में मिठास के लिए शक्कर का उपयोग किया जाता था जो मुख्य रूप से गन्ने के रस और गुड़ को मिलाकर तैयार की जाती थी। उस दौर में भूरी शक्कर को कई प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था, जिसमें सर्दी, खांसी और कफ जैसी समस्याओं को दूर करने वाले पोषक तत्व मौजूद थे। इसे भी पढ़ें – भारत के विकास के लिए पीढ़ियों से काम कर रहा है टाटा समूह, जानें इस परिवार का इतिहास
इस तरह सातवीं शताब्दी के दौरान अरब के व्यापारी भारत आए थे, जो अपने साथ भूरी शक्कर को लेकर गए थे। इस तरह अरब के व्यापारियों के जरिए भारत की भूरी शक्कर मध्य एशिया तक पहुँच गई थी, जहाँ उसके साथ कई प्रकार के प्रयोग किए थे। इन्हीं प्रयोगों के दौरान मिस्र के कारीगरों ने भूरी शक्कर को सफेद दानेदार शक्कर में तब्दील कर दिया था।
इतना ही नहीं भूरी शक्कर को सफेद दानेदार शक्कर का रूप देने के बाद मिश्री की डली और बताशे जैसे चीजें भी बनाई गई थी, जिनका इस्तेमाल मिस्र में बड़े पैमाने पर किया जाता था। इस तरह 11वीं शताब्दी के दौरान चीनी मिस्र से यूरोप के विभिन्न देशों तक पहुँच गई थी, लेकिन तब तक चीनी को उसका दानेदार रूप नहीं मिला था।
इस तरह दानेदार बनी थी चीनी
यूरोप पहुँचने तक भी दुनिया के ज्यादातर लोग चीनी की मिठास से परिचित नहीं थे, बल्कि वह अपने मीठे की तलब को मिटाने के लिए फलों के प्राकृतिक रस और शहद पर निर्भर रहते थे। ऐसे में मौसमी फलों और शहद के तैयार होने तक उन्हें मीठे खाद्य पदार्थों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था, जो सफेद शक्कर के आने से खत्म हो गया था।
दरअसल पुर्तगाली व्यापारी 15वीं शताब्दी के दौरान कैरिबियन पहुँचे थे, जो गन्ने की खेती करने के लिए उपयुक्त जगह थी और उस जगह में चीनी बनाने के लिए पर्याप्त ईंधन भी मौजूद था। ऐसे में चीनी की मील में काम करने के लिए अफ्रीका के स्थानीय लोगों को दास बनाकर कैरिबियन लगाया गया था, जो दिन रात मजदूरी करते थे। इस तरह अफ्रीका के दासों की वजह से सन् 1505 में पहली शुगर मील की शुरुआत हुई थी, जो देखते ही देखते एक कॉलोनी में परिवर्तित हो गई। ऐसे में कैरिबियन में पहली बार चीनी को दानेदार रूप में तैयार किया गया था, जो देखते ही देखते पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गई थी और उसकी मांग तेजी से बढ़ने लगी।
भारत में दानेदार चीनी का इतिहास | History of sugar in India
भले ही भारत ने दुनिया को भूरी शक्कर से परिचित करवाया था, लेकिन हमारे देश में लंबे समय तक सफेद दानेदार चीनी की मौजूदगी नहीं थी। इसकी दो वजह थी, पहली यह कि भारतीयों को सफेद चीनी बनाने का फॉर्मूला पता नहीं था। दूसरी वजह यह थी कि उस दौर हमारे पास सफेद चीनी बनाने के लिए पर्याप्त संसाधन और मशीनें मौजूद नहीं थी।
हालांकि भारत से लंबे समय तक चीनी बनाने के लिए कच्चा माल विदेशों में जाता रहता था, लेकिन सफेद दानेदार चीनी को भारत तक पहुँचने में लंबा वक्त लग गया था। प्राचीन दस्तावेजों से पता चलता है कि एशिया में सफेद दानेदार चीनी बनाने की शुरुआत चीन में हुई थी, जिसके लिए चीन के बादशाह कुबलई खां ने मिस्र के कारीगरों को बुलवाया था।
उन कारीगरों ने चीन के कारीगरों और आम लोगों को सफेद दानेदार चीनी बनाने का तरीका सिखाया था, जिसके बाद चीनी बनाने की यह तकनीक चीन से भारत पहुँची थी। यही वजह थी कि भारतीयों ने सफेद शक्कर को चीनी नाम दिया था, जबकि भारत में पहली चीनी मील सन् 1610 में लगाई गई थी और उसके बाद चीनी का स्वाद भारतीयों की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि आज तक नहीं उतर पाया है।
चीनी खाने के फायदे
आज के दौर में अक्सर डॉक्टर्स लोगों को कम चीनी खाने की सलाह देते हैं, क्योंकि इससे मोटापे के साथ कई प्रकार की बीमारियाँ होने का खतरा बना रहता है। लेकिन असल में चीनी का सेवन करना सेहत के लिए फायदेमंद साबित होता है, क्योंकि इससे आंखों से सम्बंधित रोग नहीं होते हैं जबकि बुखार और कफ जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है।
हालांकि आज के दौर में चीनी के साथ कई प्रकार की मिलावट की जाती है, जबकि उस सफेद रंग देने के लिए कैमिकल का भी इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि चीनी के इस्तेमाल को सेहत के लिए हानिकारक माना जाता है, लेकिन अगर मिलावट रहित चीनी का सेवन किया जाए तो इससे शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। इसे भी पढ़ें – अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए बनाई गई थी बोरोलिन, आज है हर भारतीय की पहली पसंद