आजकल हर किसानों को यह पता चल चुका है कि केमिकल युक्त खाद और दवाइयों के इस्तेमाल से फ़सल तो अच्छी हो जाते हैं लेकिन उन से सेहत पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है और इसी वज़ह से ज्यादातर किसान जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। अपने खेतों के लिए वह ख़ुद से बनाई हुई जैविक खाद और उर्वरक का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो फसलों के लिए बहुत मददगार साबित होते है और उनका सेहत पर भी बुरा प्रभाव नहीं डालता है।
1.2 फ़ीट लंबी हरी मिर्च उगाया
कुछ किसान तो ऐसे भी हैं जो जैविक खेती से बहुत ही अलग तरह की फसलों की उपज के लिए जाने जाते हैं। आजकल एक किसान का नाम भी बहुत चर्चा में है जिन्होंने 1.2 फीट लंबी हरी मिर्च अपने खेतों में उगाकर रिकॉर्ड बनाया है।
सेना में भी रह चुके हैं
भारतीय सेना में नौकरी कर चुके राजस्थान के जैविक किसान मोती सिंह रावत अब पूरी तरह से खेती कर रहे हैं। यह हरी मिर्च की खेती जैविक तरीके से युग आते हैं जिसकी लंबाई सामान्य मिर्च की तुलना में काफ़ी अधिक है। इन्होंने अपने खेत में 1 फीट लंबी हरी मिर्च उगाया है।
जब इन्हें दिव्यांग घोषित कर दिया गया
दरअसल मोती सिंह रावत पहले सेना में थे। सन 1992 की बात है जब एक रात गश्ती के दौरान ग्लेशियर में फंस जाने के कारण उनके पांव जख्मी हो गए। उसके बाद इन्हें काम करने में मुश्किलें आने लगी। इसी के कारण उन्हें दिव्यांग घोषित कर दिया गया। 1995 में जब यह सेना से रिटायर हुए तब इन्होंने राजस्थान में अपने पैतृक गाँव सेलमा में खेती करने का निर्णय लिया। उस समय उनके पांव भी ठीक हो चुके थे।
पहली फ़सल में हुआ 80 हज़ार का मुनाफा
खेती के शुरुआती समय में सबसे पहले मोती सिंह ने टमाटर उगाने की सोची। उस समय उनके पास सिर्फ़ 1 एकड़ ज़मीन था। इन्होंने रिटायरमेंट के समय मिले पैसों को टमाटर की खेती के लिए इन्वेस्ट करने का सोचा। खेती के लिए इन्होंने 12 हज़ार सबसे पहले लगाया और पहले ही फ़सल में उन्हें 80 हज़ार का मुनाफा हुआ। मुनाफे के बाद इन्होंने और भी ज़मीन को लीज पर लिया और उस पर भी दूसरे फसलों की खेती शुरू कर दी।
शुरुआत में तो इन्होंने भी बाक़ी किसानों की तरह हाइब्रिड खेती की लेकिन जल्द ही इन्हें समझ में आ गया कि ऐसे केमिकल्स वाले उर्वरकों का इस्तेमाल करने से मिट्टी में पानी का ठहराव ज़्यादा देर नहीं हो पा रहा है। तब इन्होंने 2008 में जैविक खेती करनी शुरू की।
1 एकड़ ज़मीन में पॉलीहाउस भी बनाया है
अब मोती सिंह हरी मिर्च के साथ शिमला मिर्च, टमाटर और ककरी उगाने के लिए लगभग आधा एकड़ ज़मीन में पॉलीहाउस भी बनाया है। इसके साथ ही साथ यह गेहूँ मक्के और अन्य सब्जियों की खेती भी करते हैं। मोती सिंह ने बताया कि वह एक एकड़ में शिमला मिर्च की खेती करके 30 हज़ार प्रति माह तक कमा लेते हैं। जिसकी क़ीमत बाज़ार में 100 से 200 रुपए किलो तक है।
खुद से तैयार करते हैं वर्मी कंपोस्ट
मोती सिंह ने ख़ुद से वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए गोबर गोमूत्र और अन्य भी कई तरह के प्राकृतिक मिश्रा ने जैसे जैविक पोषण का इस्तेमाल करते हैं उसके बाद से मिट्टी में मिला कर मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं। यह अपने ज़मीन और पौधों का बहुत ध्यान रखते हैं।
संक्रमण से बचाव के लिए कई पत्तों के रसों का करते हैं इस्तेमाल
जैसा कि हम सभी को पता है कि राजस्थान जैसी मरुस्थलीय क्षेत्रों में खेती करना बहुत ही मुश्किल होता है। वहाँ का तापमान लगभग 40 से 50 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। इसलिए मोती से गर्मी के मौसम में अपने पोलिंग हाउस में फॉर घर और पानी छिड़काव तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जिससे तापमान कम करने में इन्हें मदद मिलती है। यह पौधों की जड़ों को संक्रमण से बचाने के लिए छाछ के साथ-साथ इमली के पत्तों का रस, नीम और शरीफा के पत्तों के रस और मकई और बाजरा के पत्तों के रसों का भी इस्तेमाल करते हैं। अपनी मेहनत के बदौलत ही यह इतनी लंबी हरी मिर्च उगाने में सफल हुए।
अपने अनुभव को साझा करते हुए मोती सिंह ने बताया कि “2019 की बात है जब एक दिन मैं अपने खेत में 1.2 फीट लंबी हरी मिर्च देखा, जिसे देखते ही मैं बिल्कुल ही हैरान हो गया था और यह तीसरा वर्ष था जब राफ्टिंग विधि के द्वारा हरी मिर्च की फ़सल हुई थी और यह भी पिछली कटाई से 5 वर्षों में विकसित किया गया था”।
पुणे के ही एक जैविक खेती करने वाले किसान चंदन गायकवाड कहते हैं कि “ऐसी मिर्च को उगाना उसके प्रकार पर निर्भर करता है। अगर मिर्च में जिन अधिक समय तक रहता है तो जैविक तरीके अक्सर बीजों को पूर्ण विकास प्राप्त करने में मदद करते हैं।”
चंदन ने आगे यह भी बताया कि उन्होंने ऐसी हरी मिर्च से पहले गन्ने के खेतों में भी देखा था, जहाँ 20 फीट लंबी गन्ने की शाखाएँ थी। इसे भी जैविक खेती के द्वारा ही उगाया गया था।
क्या है अगला लक्ष्य?
मोती सिंह ने एक बातचीत के दौरान बताया कि “मेरा अगला लक्ष्य सबसे लंबी हरी मिर्च उगाने के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराना है” इन्होंने अपने एक संदेश के जरिए युवाओं से यह भी कहा कि “ज्यादातर युवा पीढ़ी को लगता है कि खेती करना एक बहुत ही मेहनत का काम है, जिसमें कोई मुनाफा नहीं होता।” लेकिन ऐसी बात नहीं है अगर आप मेहनत कीजिएगा तो आपके लिए सब कुछ संभव है।
मंत्री और सरकारी अधिकारी अक्सर इनके खेतों में आते हैं
मोती सिंह से अपने काम को लेकर इतने प्रसिद्ध हो चुके हैं कि इन्हें सरकार के द्वारा अभिनव खेती के लिए विभिन्न पुरस्कारों से भी नवाजा गया है। अक्सर मंत्री और सरकारी अधिकारी इनके खेतों का दौरा करते रहते हैं।
इनके आसपास के कई किसान इनसे प्रेरित हुए हैं और इनसे मार्गदर्शन लेते हैं। लेकिन इनका कहना है कि खासकर युवाओं को जैविक खेती पर फोकस करना चाहिए।