अगर आपने भारतीय इतिहास पढ़ा है, तो आप यह अच्छी तरह जानते होंगे कि भारत को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का काम ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था। पश्चिम बंगाल से पूरे भारतवर्ष में अपने पैर पसारने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने कई सालों तक भारतीयों से दिन रात मजदूरों की तरह काम करवाया और उन्हें मेहनताना देने से भी कतराती रही।
लेकिन बीतते समय के साथ भारतीयों के बीच क्रांतिकारी लहर जगी और ईस्ट इंडिया कंपनी का सफाया हो गया। इसी कंपनी को दशकों को बाद एक भारतीय ने खरीद लिया और पूरी दुनिया के सामने ये साबित कर दिया कि भारत पर राज करने वाली कंपनी आज एक भारतीय की मुट्ठी में है। तो आखिर कौन है वो भारतीय, जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) को चुटकियों में खरीद लिया। आइए जानते हैं-
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दुनिया भर में प्रसिद्ध थी East India Company
ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत सन् 1600 के दशक में हुई थी, उस दौरान किसी ने भी नहीं सोचा था कि एक छोटी सी शुरुआत करने वाली कंपनी का वर्चस्व पूरी दुनिया पर होगा। ईस्ट इंडिया कंपनी धीरे धीरे दुनिया के दूसरे देशों तक पहुंची और वहां जमकर व्यापार किया, इसके बाद यह कंपनी समुद्री रास्ते से सफर करते हुए पहले ब्रिटेन और फिर भारत आ पहुंची।
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने चाय और मसालों समेत दूरी भारतीय वस्तुओं का व्यापार शुरू कर दिया, जो यूरोपीय देशों में उगाए नहीं जाते थे। अपने अलग बिजनेस आइडिया की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने कुछ ही दिनों में दुनिया भर के लगभग 50 प्रतिशत ट्रेड पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया, जिसकी किसी को कानों कानों खबर तक नहीं हुई।
भारत पर अपनी गुलामी का चाबुक चलाने वाले अंग्रेजों को यह बात अच्छी तरह से समझ आ चुकी थी कि ब्रिटिश हुकूमत को बचाए रखने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी उनकी जरूरत है। इस कंपनी के जरिए न सिर्फ व्यापार करके दौलत कमाई जा सकती थी, बल्कि दूसरे देशों पर कब्जा भी किया जा सकता था।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने तकरीबन 200 सालों तक भारत पर अपनी हुकूमत का सिक्का चलाया, जिसके बाद सन् 1857 में मेरठ से उठी क्रांतिकारी हुंकार ने इस कंपनी के कान खड़े कर दिए। यह भारत की आजादी के लिए किया गया पहला विद्रोह था, जिसकी वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार रातों रात अर्श से फर्श पर आ गिरा।
सन् 1857 की क्रांति के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भारती में काम करना और भारतीय मसालों को यूरोपीय देशों तक भेजने का काम मुश्किल हो गया था। ऐसे में धीरे धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी का सुपड़ा भारत से साफ होता चला गया, लेकिन इस कंपनी के प्रति भारतीयों के दिल में रंज और बदले की एक भावना थी। जिसे आखिरकार सालों बाद भारतीय बिजनेसमैन संजीव मेहता (Sanjeev Mehta) ने पूरा कर दिया।
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Sanjeev Mehta ने महज 20 मिनट में खरीद ली ईस्ट इंडिया कंपनी
जिस कंपनी ने 200 सालों तक भारतीय जमीन पर अपना राज चलाया और भारतीयों पर बेताहशा जु/र्म किए, जब उसी कंपनी को एक भारतीय बिजनेसमैन ने खरीदा तो हर किसी के होश उड़ गए। किसी जमाने में दुनिया भर के 50 प्रतिशत बाजार का अकेला फायदा उठाने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी की हालत दिन ब दिन खराब होती चली गई।
भारत से जाने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के पास कीमती मसाले और चाय बेचने का कोई दूसरा विकल्प नहीं था, ऐसे में कंपनी का व्यापार और मुनाफा धीरे धीरे डूबता चला गया। एक वक्त ऐसा आ गया कि ब्रिटिश सरकार ने भी ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद करने से साफ इंकार कर दिया और अपने हाथ पीछे कर दिए।
लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम दुनिया भर में प्रचलित था, इसलिए उसके मालिक नहीं चालते थे कि कंपनी को बंद किया जाए। यही वजह थी कि लाख परेशानियां आने के बावजूद भी ईस्ट इंडिया कंपनी को घाटे में चालू रखा गया। ऐसे में इस मौके का फायदा उठा भारतीय बिजनेस मैन संजीव मेहता ने, जिनके एक फैसले ने इतिहास रच दिया।
दरअसल साल 2003 में जब संजीव मेहता (Sanjeev Mehta) को पता चला कि ईस्ट इंडिया कंपनी के हालात बेहद खराब हैं और कंपनी को खड़ा रखने के लिए पर्याप्त धन नहीं है, तो संजीव मेहता तुरंत ईस्ट इंडिया कंपनी के दफ्तर जा पहुंचे। उन्होंने फैसला कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन वह ईस्ट इंडिया कंपनी को किसी भी कीमत में खरीद कर रहेंगे।
घुटनों पर आ गिरी East India Company
संजीव मेहता (Sanjeev Mehta) एक बेहतरीन बिजनेस मैन हैं, इसलिए वह अच्छी तरह जानते हैं कि सामने मौजूद कंपनी या शख्स के दिल में क्या चल रहा है। वह ईस्ट इंडिया कंपनी के ऑफिस में मात्र 20 मिनट के लिए रूके, लेकिन उन्हें पहले 10 मिनटों में ही समझ आ चुका था कि कंपनी अपने घुटनों पर आज चुकी हैं। ऐसे में संजीव मेहता ने बिना कोई देरी करते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे शेयर्स खरीदने का मन बना लिया।
संजीव मेहता (Sanjeev Mehta) ने एक नैपकिन उठाया और उसके ऊपर एक कीमत लिखी, जिसके बाद उन्होंने वह नैपकिन कंपनी के मालिकों की तरफ बढ़ा दिया। अपनी डूबती कंपनी को बचाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी की मालिक कुछ भी करने को तैयार थे, ऐसे में उन्होंने बिना कोई मोल भाव किए कंपनी के 21 प्रतिशत शेयर्स संजीव मेहता को बेच दिए। इस तरह महज 20 मिनट के अंदर एक भारतीय बिजनेस मैन ने भारत पर हुकूमत करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी पर अपना मालिकाना हक जमा लिया।
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लंदन स्टोर में तब्दील हो चुकी है कंपनी
दुनिया भर में अपने व्यापार के लिए मशहू ईस्ट इंडिया कंपनी ने जितनी तेजी से कामयाबी का आसमान छुआ था, ठीक उसी तेजी से वह औंधे मुंह जमीन पर आ गिरी। 20 मिनट के अंदर ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के 21 प्रतिशत शेयर्स खरीदने वाले संजीव मेहता ने महज 1 साल के अंदर कंपनी के बाकी बचे 38 प्रतिशत शेयर्स भी खरीद लिये।
इस खरीद के साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) पूरी तरह से संजीव मेहता (Sanjeev Mehta) का मालिकाना हक गो गया, आज यह कंपनी लंदन के प्रचलित स्टोर की रूप ले चुकी है। जहां कई एंटिक चीजों की प्रदर्शनी लगी रहती है और लोग एतिहासिक चीजें खरीदने इस स्टोर पर आते रहते हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी से लंदन के एक स्टोर में तब्दील हो चुके इस व्यवसाय में भारतीय बिजनेस मैन आनंद महिंद्रा ने भी इंवेस्टमेंट की है।