हम भारतीय मसालेदार और स्वादिष्ट खाना बहुत पसंद करते हैं और उसके लिए अपने भोजन में बहुत प्रकार के मसाले डालते हैं और भारतीय खाना सिर्फ़ हमारे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत पसंद किया जाता है जिसका कारण है इसके विभिन्न प्रकार के मसाले। बिना मसाले के खाना बेस्वाद लगने लगता है इसलिए खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए और उसे स्वादिष्ट बनाने के लिए हम बहुत प्रकार के मसाले जैसे कि चाट मसाला, गरम मसाला इत्यादि इस्तेमाल करते हैं।
इन्हीं मसालों में से एक होती है काली मिर्च (Black Pepper) जिसे कि “Kings of spice” भी कहते हैं। विभिन्न प्रकार के भोजन में काली मिर्च डालने से उसका स्वाद दुगना हो जाता है। इतना ही नहीं काली मैच में कहीं औषधीय गुण भी होते हैं तथा इसका सेवन काफ़ी सेहतमंद रहता है।
इसका सेवन करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है साथ ही हमारा लीवर भी हैल्थी रहता है। काली मिर्च का सेवन वात और कफ जैसे बीमारियों में भी बहुत कारगर होता है। दमे के रोगियों के लिए भी है बहुत फायदेमंद है। साथ ही काली मिर्च में अनेक प्रकार के बैक्टीरिया और कीटाणुओं को नष्ट करने की भी क्षमता होती है, इसलिए बहुत प्रकार की दवाइयाँ बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।
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मां दन्तेश्वरि हर्बल फॉर्म में की गई काली मिर्च की खेती
अब तक यही माना जाता था कि काली मिर्च की खेती सिर्फ़ दक्षिण भारत में ही होती है। परन्तु अब छतीसगढ के कोंडागाँव के चिकिलकुट्टी गाँव में भी काली मिर्च की खेती की जाने लगी है। डॉ. राजाराम त्रिपाठी (Dr. Rajaram Tripathi) द्वारा स्थापित किए गए माँ दन्तेश्वरि हर्बल फॉर्म में ऑर्गेनिक खेती से औषधीय पौधों की खेती की जा रही है।
डॉ. राजाराम त्रिपाठी काली मिर्च की खेती करना चाहते थे फिर उन्होंने यह सोचा कि जब दक्षिण भारत में यह फ़सल उगाई जा सकती है तो फिर यहाँ क्यों नहीं उगाई जा सकती है। फिर उन्होंने तय किया कि वह यही पर रह कर काली मिर्च की खेती का काम शुरू करेंगे। फिर उन्होंने अपने फॉर्म ‘मां दन्तेश्वरि हर्बल फॉर्म’ में काली मिर्च की फ़सल उगाना शुरु कर दिया। जिसके लिए उन्होंने को मेहनत की, फल स्वरूप उनकी काली मिर्च की फ़सल बहुत अच्छी हुई और उन्हें काफ़ी मुनाफा हुआ उनकी मेहनत से काली मिर्च की अच्छी फ़सल हुई जिससे उन्हें फायदा भी हुआ।
मां दन्तेश्वरि नामक इस हर्बल फॉर्म में एक एकड़ की भूमि पर ऑस्ट्रेलियन टीक के 700 पौधे लगाए गए हैं। ऑस्ट्रेलियन टीक के इन पौधों का इस्तेमाल इमारती लकड़ियाँ बनाने के लिए भी होता है। इस हर्बल फॉर्म में काली मिर्च का भी पौधा रोपित किया गया है।
कैसे होती है काली मिर्च (Black Pepper) के पौधों की पहचान
काली मिर्ची के पौधों की पत्तियाँ आयताकार होती हैं। इन पत्तियों की लंबाई 12 से 18 cm तक होती है तथा चौड़ाई 5 से 10 cm तक होती है। इन पौधों की जड़े उथली हुईं होती है व ज़मीन के भीतर 2 मीटर तक की गहराई चली जाती हैं। काली मिर्च के इन पौधों पर सफेद रंग के फूल निकलते हैं।
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बहुत प्रकार से फायदेमंद है काली मिर्च की खेती
काली मिर्च की खेती के कुछ विशेष प्रकार के फायदे होते हैं। इसके पौधों में अलग से खाद डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। काली मिर्च के पेड़ से जो पत्ते गिरते हैं उन्हीं से ऑर्गेनिक खाद निर्मित किया जा सकता है। इतना ही नहीं, काली मिर्च की खेती करने के लिये अलग से ज़मीन की ज़रूरत भी नहीं पड़ती है। इन पौधों की खेती खुरदरी सतह वाले पौधों जैसे कि आम, कटहल और दूसरे भी कई जंगली पौधों साथ ही की जा सकती है।
अगर आप काली मिर्च की खेती करना सीखना चाहते हैं तो नीचे दिए गए वीडियो को देखे –
इसके अलावा काली मिर्ची की खेती करने के सम्बंध में यदि आप और ज़्यादा जानकारी पाना चाहते हैं तो उसके लिए हम आपको नंबर बता रहे हैं जिन पर कांटेक्ट करके आप जानकारी प्राप्त कर सकते हैं: 9406358025, 7000719042. डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने अपनी नई सोच के द्वारा छत्तीसगढ़ में सफलतापूर्वक काली मिर्च की खेती की। उनका यह प्रयास निश्चित तौर पर सभी के लिए प्रेरणास्पद रहेगा।