हमारी पृथ्वी पर असंख्य पशु पक्षी हैं उनमें से कई तो ऐसी प्रजातियाँ हैं जो अब लुप्त होती जा रही हैं। अब तो मधुमक्खियाँ भी धीरे-धीरे करके लुप्त होते प्राणियों की सूची में आ गई हैं।
रॉयल ज्योग्राफिक सोसाइटी ऑफ लंदन की एक मीटिंग की गई थी, जिसमें अर्थवॉच इंस्टीट्यूट ने कहा कि मधुमक्खी हमारी पृथ्वी पर सबसे अमूल्य प्राणी होती हैं। इसके अलावा वर्ष 2008 में ‘द गार्जियन’ ने भी यही बात कही थी। परंतु अब यह बुरी ख़बर भी मिल रही है कि अगर मधुमक्खियाँ ख़त्म हो गई तो उससे मानव जाति का जीवन भी संकट में आ जाएगा।
मधुमक्खियाँ इंसानों के लिए अत्यधिक लाभदायक होती हैं अगर इनके बचाव के लिए कुछ नहीं किया गया, तो वैज्ञानिक और वन्य जीव विशेषज्ञ ऐसा कहते हैं कि “मधुमक्खियाँ उन प्रजातियों की सूची में शामिल हो जायेंगी जो निकट भविष्य में विलुप्त होने के कगार पर हैं।”
क्यों आवश्यक है मधुमक्खियों को बचाना?
मधुमक्खियाँ अगर लुप्त हो गई तो इससे सारे मानो समाज का विनाश हो जाएगा क्योंकि मधुमक्खियों को अन्य किसी चीज अथवा प्राणी से रिप्लेस नहीं किया जा सकता है। आपको बता दें कि मधुमक्खियों तथा फूल-पौधों के मध्य का सम्बंध पृथ्वी पर सर्वाधिक व्यापक, सामंजस्यपूर्ण व परस्पर निर्भरता का है। करीब 10 करोड़ वर्षों पूर्व मधुमक्खियों तथा फूलों के मध्य के सामंजस्य द्वारा यह पृथ्वी समृद्ध बनी थी। अतः इस ग्रह पर संपूर्ण मानव जाति के उत्थान हेतु भी मधुमक्खियाँ ही कारण है।
धरती पर मधुमक्खियों की करीब 20, 000 से भी ज़्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं। लेकिन फिर भी, उन मधुमक्खियों में से अधिकतर हीव्स में नहीं रहा करती हैं। यह प्रजातियाँ 2 मिमी से लेकर 4 सेमी के आकार में अलग-अलग प्रकार की होती हैं। वे नए विभिन्न प्रकार के पौधों के लिए अनुकूल नहीं होती हैं, तब भी ख़ुद को उनके अनुसार अनुकूल करने का प्रयास करती हैं।
मधुमखियों से बढ़ती है पौधों की विविधता
हम जितने भी प्रकार के खाद्य फसलें उपयोग में लाते हैं उसमें से करीब 75% खाद्य फसलें जिनसे बीज और फलों का उत्पादन होता है, उन पर मधुमक्खियों की वज़ह से ही परागण द्वारा केवल आंशिक तौर पर प्रभाव पड़ता है।
एक सर्वे के मुताबिक यह भी पता चला कि इस विश्व में 87 प्रमुख खाद्य फसलें सम्पूर्ण या आंशिक रूप से परागण से ही संचालित हो पाती हैं। परागण कि इस प्रक्रिया में मधुमक्खियाँ बहुत योगदान देती हैं। जिससे वे हजारों पशु पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को भोजन उपलब्ध कराती हैं। पृथ्वी पर पौधों की विविध प्रजातियाँ पाई जाती है इसके लिए मधुमक्खियाँ ही उत्तरदायी होती हैं।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, “मधुमक्खी की आबादी में गिरावट से कॉफी, कोको, बादाम, टमाटर और सेब जैसे कुछ फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।”
मधुमक्खियों के साथ स्वास्थ्यवर्धक शहद का स्रोत भी नष्ट हो जाएगा
इतना ही नहीं, मधुमक्खियों से मिलने वाले स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ शहद का महत्त्व प्राचीन काल से ही रहा है। वर्ष 2009 के आंकड़ों के अनुसार यदि केवल मुख्य शहद उत्पादक देशों की बात करें तो उनका कुल निर्यात 200 बिलियन से भी अधिक है। शहद पुराने समय से ही भोजन का एक बड़ा स्रोत रहा है लेकिन मधुमक्खियाँ लुप्त होने से यह भी ख़त्म हो जाएगा।
कुछ वैश्विक फसलें परागणकों पर सीधे निर्भर रहती हैं, जिनसे कुल मिलाकर 235 बिलियन डॉलर से 577 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष तक की कमाई होती है। यह प्रकृति द्वारा प्रदत्त उपहार भी मधुमक्खियों के साथ लुप्त होने वाला है।
क्या वज़ह है मधुमक्खियों के विलुप्त होने की
पृथ्वी पर मुख्य परागणकर्ता मधुमक्खियाँ हैं, जिनके गायब होने से मनुष्य तथा और भी कई प्राणियों की प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं। मानवों की जनसंख्या निरंतर बढ़ती जा रही है अतः उत्पादन बढ़ाने के तरीकों का भी बहुत उपयोग किया जा रहा है, ख़ास तौर पर खेती-बाड़ी के लिए जंगलों की सफ़ाई की जा रही है तथा कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग किया जा रहा है।
जिससे 40% परागणक प्रजातियाँ, ख़ास तौर पर मधुमक्खियों की प्रजातियों को बहुत नुक़सान हो रहा है। इसी वज़ह से चाहे जंगली मधुमक्खियाँ हो या घरेलू मधुमक्खियाँ दोनों ही प्रकार की प्रजातियों में बहुत ज़्यादा कमी आई है।
जैसे-जैसे वैश्वीकरण बढ़ता जा रहा है विभिन्न स्थानों से कीटों और रोगजनकों के संचरण द्वारा कुछ क्षेत्रों में मधुमक्खियों की आबादी पर असर पड़ा है। ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि मोबाइल फ़ोन से निकलने वाली तरंगों की वज़ह से भी यह विलुप्त हो रही हैं। स्विट्जरलैंड के फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अनुसार जब मोबाइल फ़ोन पर बात की जाती है तब उनसे जो तरंगे निकलती है उसके द्वारा मधुमक्खियाँ अपने मार्ग से भटक जाती हैं।
कई शोधकर्ताओं जैसे डैनियल फेवरे, जीवविज्ञानी आदि ने के ऐसे प्रमाण दिए जिनके द्वारा यह पता चला की मधुमक्खियों को यह तरंगे नुक़सान पहुँचाती है तथा जब इसके संपर्क में आती हैं तब अन्य मधुमक्खियों को चेतावनी भी देती हैं, यही बात ‘द ऑस्ट्रेलियन’ में भी बताई गई।
विषैले कीटनाशक जैसे कि न्यूरोटॉक्सिन और प्राकृतिक कीटनाशकों के प्रयोग पर जल्द से जल्द प्रतिबंध लगा देना चाहिए। अतः कृषकों को विशेष फसलों परागण की आवश्यकता के बारे में जानकारी होनी चाहिए तथा उसके अनुरूप ही कार्य भी होना चाहिए।
सरकार और किसानों को चाहिए कि वे पशु पक्षियों के निवास स्थान का संरक्षण करें। मधुमक्खियों हेतु खाद्य पदार्थ सदैव उपलब्ध रहे इसके लिए किसान अपने खेतों में विविध फसलें उगा सकते हैं। सभी को मिलकर पारिस्थितिक तंत्र के अनुकूल कार्य करना होगा तभी इन लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण हो पाएगा।