Ram Manohar Lohia Death Anniversary: भारतीय राजनीति एंव स्वतंत्रता आंदोलन में यूं तो कितने ही राजनेता आए और चले गए। लेकिन क ई ऐसे नेता भी हुए हैं जिन्होंने अपने दम पर शासन का रूख बदला है एवं देश को एक नई दिशा दशा दी है। इन्हीं में से एक थे राम मनोहर लोहिया
बचपन से ही मिली राष्ट्र भक्ति की सिख
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में 23 मार्च 1910 को जन्मे राम मनोहर लोहिया में राष्ट्र भक्ति की भावना बचपन से ही भरी हुई थी। लोहिया के पिताजी हिरालाल पेशे से अध्यापक एवं सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उनके पिताजी गांधी जी के अनुयायी थे। वे जब भी गांधी जी से मिलने जाते थे तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाते थे। इसी के चलते गांधी जी के विराट व्यक्तित्व का प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा।
समर्थक ही नहीं विरोधियों से भी अपार सम्मान पाते थे लोहिया
अपने तेजस्वी व सामाजवादी विचारों के माध्यम से देश में बदलाव की बयार लाने वाले लोहिया अपनी प्रखर देशभक्ति के कारण समर्थकों से ही नहीं अपितु विरोधियों से भी अपार सम्मान पाते थे।
सुविधापूर्ण जीवन के स्थान पर जंग ए आजादी के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी
राम मनोहर लोहिया ने अपने पिताजी के साथ 1918 में पहली कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में भाग लिया। बनारस से इंटरमीडिएट एवं कलकत्ता से स्नातक करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए लंदन के स्थान पर बर्लिन का चयन किया। जर्मनी में चार साल व्यतीत करने के बाद डॉ राममनोहर लोहिया पुनः स्वदेश लौटे और सुविधापूर्ण जीवन के स्थान पर जंग ए आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था
डॉ लोहिया मानव की स्थापना के पक्षधर समाजवादी थे। वह समाजवादी भी इस अर्थ में थे कि समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था। वह चाहते थे कि समाज में व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद कोई दुराव एवं कोई दिवार न रहे सब जन एक समान हो, सब जन का मंगल हो।
केवल ढाई आदमियों से प्रभावित रहे डॉ लोहिया
डॉ लोहिया जनता को जनतंत्र का निर्णायक मानते थे। डॉ लोहिया अक्सर कहा करते थे कि उन पर ढाई आदमियों का प्रभाव रहा है एक मार्क्स, दूसरे गांधी एवं आधा नेहरू का।सन1946-47 लोहिया की जिंदगी के अत्यंत निर्णायक वर्ष रहे। आजादी के समय उनके और जवाहर लाल नेहरू में के ई मतभेद पैदा हो जिसके बाद दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। बाद के दिनों में 12अक्टूबर 1967 को 57 वर्ष की आयु में डा राम मनोहर लोहिया जी का देहांत हो गया।
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