Maharishi Mahesh Yogi: दुनिया भर में भारत की एक अलग पहचान है, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं। हमारे देश में ऋषि, मुनि और संतों को बहुत उच्च स्थान दिया जाता है, जिनके शिष्यों की संख्या लाखों में होती है।
ऐसे में आज हम आपको भारत के प्रसिद्ध संत और योगी बाबा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी लोकप्रियता का मुकाबला आज तक कोई नहीं कर पाया है। हम बात कर रहे हैं महर्षि महेश योगी (Maharishi Mahesh Yogi) की, जिन्होंने देश में अपनी अलग मुद्रा (Raam Currency) तक चला दी थी। History of Raam Currency
कौन थे महर्षि महेश योगी? (Maharishi Mahesh Yogi)
आज तक आपने कई संत और योगी बाबा के बारे में सुना होगा, लेकिन महर्षि महेश योगी (Maharishi Mahesh Yogi) को ध्यान यानी मेडिटेशन के लिए जाना जाता था। उनके देश भर में लाखों शिष्य थे, जबकि विदेशों से भी लोग उनसे योग साधना सीखने के लिए भारत आया करते थे।
महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1917 को छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में पांडुका गाँव में हुआ था, लेकिन उनके पैदाइशी नाम को लेकर अब भी लोगों के बीच बहस होती रहती है। एक दल का मानना है कि उनका नाम महेश प्रसाद वर्मा था, जबकि कुछ लोग कहते हैं कि वह महेश श्रीवास्तव थे।
महर्षि महेश योगी का पैदाइशी नाम और जन्म स्थान चाहे कुछ भी रहा हो, लेकिन उन्होंने दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। महर्षि महेशी योगी ने प्रयागराज (इलाहाबाद) विश्वविद्यालय से फिजिक्स में ग्रेजुएशन की और फिर आध्यामिक मार्ग पर चलते हुए योग साधना शुरू कर दी।
नहीं संभाल पाए गुरु की गद्दी
महर्षि महेश योगी ने अपनी जिंदगी के लगभग 13 साल ज्योतिमठ में गुजारे थे, जहाँ उन्होंने शंकराचार्य ब्रह्मानंद सरस्वती की छत्रछाया में रहते हुए शिक्षा और दीक्षा प्राप्त की थी। ऐसे में साल 1953 में स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के देहांत के बाद महर्षि महेश योगी ने उनकी गद्दी संभालनी थी, क्योंकि स्वामी ने अपनी वसीयत में अपना पद और गद्दी उन्हीं के नाम की थी।
लेकिन महर्षि महेश योगी को अपने गुरु की गद्दी पर बैठने का मौका नहीं मिल पाया, क्योंकि काशी विद्वत परिषद के नियमों के अनुसार गद्दी पर बैठने का अधिकार सिर्फ ब्राह्मण कुल के लोगों को होता है और महेशी योगी कायस्थ (Kayastha) कुल से सम्बंध रखते थे।
ऐसे में उन्होंने गद्दी का लोभ नहीं किया और एक अलग रास्ते पर चल पड़े, जहाँ उन्होंने लोगों को ध्यान और योग की शिक्षा देने का फैसला किया। इस दौरान महर्षि महेश योगी ने लगभग 2 साल तक मौन व्रत का पालन किया, जिसके बाद उन्होंने साल 1955 में ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन की शिक्षा देना शुरू कर दिया था।
पूर्व प्रधानमंत्री भी थी उनकी शिष्या
इस तरह महर्षि महेश योगी धीरे-धीरे देश भर में लोकप्रिय होते चले गए और वह हर जन आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे। 1960 के दशक तक महर्षि महेश योगी ऋषिकेश में अपना आश्रम स्थापित कर चुके थे, जहाँ साल 1968 में रॉक ग्रुप बीटल्स के सदस्यों ने आकर उनसे शिक्षा ली थी।
इतना ही नहीं महर्षि महेश योगी के शिष्यों में भारत की पूर्व महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम भी शामिल है, जो अक्सर उनके आश्रम में जाकर शिक्षा लिया करती थी। इसके अलावा आध्यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा भी महर्षि महेश योगी के शिष्य रह चुके हैं।
राम नाम की मुद्रा का चलन (Raam Currency)
महर्षि महेश योगी की लोकप्रियता भारत समेत पूरे एशिया में बहुत ज्यादा थी, जबकि यूरोपीय देशों से भी उनके शिष्य शिक्षा लेने के लिए आया करते थे। महर्षि महेश योगी ने अपना एक अलग साम्राज्य स्थापित कर लिया था, जहाँ हर कोई उनके आदेशों का पालन करता था।
उन्होंने 1960 से 1970 के दशक के बीच एक नई मुद्रा का चलन शुरू किया था, जिसे राम मुद्रा (Raam Currency) के नाम से जाना जाता है। इस मुद्रा को उन्हीं की संस्था ग्लोबल कंट्री वर्ल्ड ऑफ पीस द्वारा जारी किया गया था, जिसे साल 2002 में खरीददारी के लिए आश्रम से जुड़े लोगों के बीच लॉन्च किया गया था। इस मुद्रा के तहत 1, 5 और 10 रुपए के नोटों की छपाई की जाती थी, जिसमें भगवान श्री राम की तस्वीर बनी होती थी।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि महर्षि महेश योगी द्वारा जारी की गई राम मुद्रा को साल 2003 में नीदरलैंड सरकार द्वारा कानूनी मान्यता दी गई थी, जहाँ लगभग 30 गांवों में स्थित 100 से ज्यादा दुकानों पर राम मुद्रा के जरिए खरीददारी की जा सकती थी। इसके अलावा अमेरिका के आइवा शहर की महर्षि वैदिक सिटी में भी राम मुद्रा को मान्यता दी गई थी।
हालांकि इस राम मुद्रा का चलन सिर्फ आश्रम से जुड़े लोगों और दुकानों आदि में होता था, जिसे शांति के प्रतीक चिह्न के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। दुनिया भर में अपना साम्राज्य स्थापित करने वाले महर्षि महेश योगी (Maharishi Mahesh Yogi) ने साल 2008 में अंतिम सांस ली थी, लेकिन उनके शिष्यों आज भी उनकी पूजा करते हैं।