Story of Margo Soap Founder KC Das – भारत को अंग्रेजों की हुकुमत से आजाद हुए 75 साल बीत चुके हैं, जिसे प्राप्त करने के लिए कई लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। लेकिन इस लड़ाई में भारत को सिर्फ ब्रिटिश शासकों से ही छुटकारा नहीं दिलवाना था, बल्कि उनके द्वारा बेची जा रहे सामान को भी जड़ से उखाड़ कर फेंकना था।
अंग्रेज अपने उत्पादों को भारत में बेचकर खूब मोटा पैसा कमाते थे, जिसकी वजह से भारतीय व्यापारियों की कमर बुरी तरह से टूट चुकी थी। ऐसे में उस दौरान क्रांतिकारी खगेंद्र चंद्र दास (Khagendra Chandra Das) ने अंग्रेजों के व्यापार के खिलाफ आवाज उठाई थी, ताकि भारतीय सामान को तबज्जु दी जा सके।
खगेंद्र चंद्र दास ने विदेशी ब्रांड्स को चुनौती देने के लिए बाज़ार में नीम युक्त मार्गो साबुन (Margo Soap) को लॉन्च किया था, जो देखते ही देखते हर भारतीय की पहली पसंद बन गया। आखिर क्या थी मार्गो साबुन की शुरुआत की कहानी, आइए विस्तार से जानते हैं। Story of Margo Soap Founder KC Das
कौन थे के. सी. दास? (Story of KC Das?)
क्रांतिकारी खगेंद्र चंद्र दास का जन्म बंगाल के एक संपन्न बैद्य परिवार में हुआ था, उनके पिता राय बहादुर तारक चंद्र दास पेशे से एक न्यायाधीश थे। ऐसे में खगेंद्र चंद्र दास पर बचपन से ही उनके पिता के पद का जोर था, लेकिन उन्होंने देशभक्ति की राह पर चलकर अपनी एक अलग पहचान बना ली।
दरअसल खगेंद्र चंद्र की माँ मोहिनी देवी गांधीवादी विचारों का पालन करती थी और स्वतंत्रता कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी, ऐसे में खगेंद्र चंद्र के मन में भी देश के प्रति कुछ करने का विचार उमड़ने लगा।
खगेंद्र चंद्र दास को आमतौर पर के. सी. दास के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने कलकत्ता से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद शिबपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर के रूप में पढ़ाना शुरू कर दिया।
स्वदेशी सामान को बढ़ावा देना चाहते थे दास
इस दौरान 16 अक्टूबर 1905 को लॉर्ड कर्जन ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत भारत से बंगाल का विभाजन कर दिया था। इस विभाजन से भारतीयों के मन में विदेशी सामान का बहिष्कार करने और स्वदेशी प्रोडक्ट्स को अपनाने की भावना जोर पकड़ने लगी।
ऐसे में अंग्रेजों को रोष दिखने के लिए भारतीयों ने ब्रिटिश उत्पादनों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया, जबकि स्वदेशी सामान की खरीद करने लगे। इस दौरान के. सी. दास भी अपने स्वदेशी प्रोडक्ट्स बनाना और बेचना चाहते थे, लेकिन उस समय पढ़ाई के चलते उन्हें व्यापार से किनारा करना पड़ा था।
पिता के विरोध के बाद विदेश में की पढ़ाई
KC Das के विचार अपनी माँ की तरह गांधीवादी और राष्ट्रीयवादी थे, लिहाजा उन्होंने भी स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। लेकिन उनके पिता राय बहादुर तारक चंद्र दास को खगेंद्र चंद्र का आंदोलने में हिस्सा लेना बिल्कुल पसंद नहीं था।
दरअसल KC Das के पिता ब्रिटिश भारत सरकार के अंतर्गत कार्य करते थे और वह कुछ उच्च पदाधिकारियों के करीबी भी थे, ऐसे में उन्होंने अपने बेटे को आंदोलन में हिस्सा न लेने की सलाह दी। लेकिन के. सी. दास ने अपने पिता की एक न सुनी, जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें विदेश जाकर पढ़ाई करने का आदेश दिया।
हालांकि खगेंद्र चंद्र दास ब्रिटेन जाकर पढ़ाई नहीं करना चाहते थे, लेकिन इसी दौरान उन्हें इंडियन सोसाइटी फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंटिफिक इंडस्ट्री की तरफ से छात्रवृत्ति मिल गई। के. सी. दास ने इस ऑफर को स्वीकार कर लिया और अमेरिका चले गए।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ने वाले पहले भारतीय थे दास
KC Das ने अमेरिका में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की, जहाँ से उन्होंने साल 1910 में कैमिकल साइंस में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। इस तरह खगेंद्र चंद्र स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने वाले पहले भारतीय बन गए थे।
ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद के. सी. दास जहाज में सवार होकर भारत की तरफ लौट गए, हालांकि इससे पहले वह रास्ते में जापान में कुछ दिन रूके थे। इस दौरान उन्होंने जापानी व्यापारियों से बिजनेस क बारिकियाँ सीखी और फिर भारत लौट आए।
कलकत्ता में शुरू की केमिकल कंपनी
इस तरह भारत लौटने के बाद खगेंद्र चंद्र दास ने साल 1916 में कलकत्ता में अपनी केमिकल कंपनी की शुरुआत की थी, जिसमें आर. एन. सेन और बी. एन. मैत्रा ने उनका साथ दिया था। इस तरह साल 1920 तक दास की कंपनी का विस्तार हो गया था, जिसके बाद उन्होंने टॉयलेट सामग्री बनाने का काम शुरू कर दिया।
इस तरह KC Das भारत के प्रतिष्ठित उद्यमी और केमिकल कंपनी के मालिक बन गए, जिसके बाद उन्होंने स्वदेशी सामान को बढ़ावा देने के लिए नीम के पत्तों के रस से तैयार मार्गो साबुन और नीम टूथपेस्ट की शुरुआत की।
मार्गो साबुन की शुरुआत
KC Das की कंपनी द्वारा बनाए गए मार्गो साबुन (Margo Soap) और नीम टूथपेस्ट को देश के हर वर्ग के व्यक्ति के लिए बनाया गया था, ताकि लोग ब्रिटिश सामग्री का बहिष्कार करके स्वदेशी सामान का इस्तेमाल करना शुरू कर दें।
इस तरह देखते ही देखते खगेंद्र चंद्र दास द्वारा लॉन्च किए गए प्रोडक्ट्स की मांग तेजी से बढ़ने लगी, जिसके बाद मार्गो साबुन और नीम टूथपेस्ट का व्यापार कलकत्ता से बाहर अन्य शहरों में भी फैलने लगा।
इसके बाद भारत के दूसरे शहरों में मार्गो कंपनी की ब्रांच खोली गई और कंपनी का विस्तार होता चला गया, जिसकी वजह से मार्गो दक्षिण पूर्वी एशिया का सबसे प्रचलित ब्रांड बन गया था। इंटरनेशनल बाज़ार में भी मार्गो की बढ़ती मांग की वजह से सिंगापुर में भी कंपनी का एक प्लांट स्थापित किया गया।
100 साल पूरे कर चुका है मार्गो
मार्गो ब्रांड की शुरुआत भले ही ब्रिटिश उत्पादों चुनौती देने के लिए की गई हो, लेकिन आज यह ब्रांड भारत में 100 साल पूरे कर चुका है। हालांकि इस सालगिराह को देखने के लिए के. सी. दास दुनिया में नहीं रहे, क्योंकि साल 1965 में उनकी मृत्यु हो गई थी।
लेकिन KC Das ने अपनी मौत से पहले मार्गो की कामयाबी देख ले थी, जिसकी वजह से वह दक्षिण एशिया के सबसे प्रसिद्ध बिजनेस मैन के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। आज मार्गो साबुन (Margo Soap) भारतीय और इंटरनेशनल बाज़ार में 100 सालों का सफर पूरा कर चुका है।