साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय, मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाए
कबीर की इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ कर रहा है एक किसान का परिवार जो इस लॉकडाउन में पिछले 150 दिनों से वैसे गरीबों को खाना खिलाने का काम कर रहा है, जो अक्सर ग़रीबी और पैसों के अभाव में भूखे पेट सो जाया करते हैं।
खेतीबाड़ी से जुड़ा आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम का रहने वाला यह परिवार जबसे लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से गरीबो और बेसहारा लोगों के पेट भरने का काम कर रहा है। परिवार की एकमात्र महिला सदस्या सुधारानी जो ना तो बोल सकती हैं और ना हीं सुन सकती हैं, वह ख़ुद ही इतने लोगों के लिए खाना तैयार करती हैं, बर्तन धोती हैं जिनमें उनका साथ उनके पति, ससुर और देवर करते हैं।
खबरों के मुताबिक परिवार के लोगों का कहना है कि उन लोगों को बहुत दुख होता है जब कुछ अमीर लोग अपने खाने का कुछ हिस्सा बर्बाद कर फेंक देते हैं, तो वहीं कुछ लोगों को भूखे कई-कई दिनों तक रहना पड़ता है, इसलिए इन लोगों ने उन गरीबों को खाना खिलाने का काम शुरू किया, ताकि वह लोग भी अपना पेट भर सके और चैन की नींद सो सकें।
सुधा रानी बताती हैं कि इस काम के लिए उन्हें अपने पति पालुरू सिद्धार्थ से प्रेरणा मिलती है, जो ख़ुद पेशे से किसान हैं और समाज सेवा में भी उनकी बहुत दिलचस्पी है। सुधा को हर रोज़ इतने लोगों के लिए खाना बनाने और खिलाने में बहुत मुश्किल भी होती है, क्योंकि उन्हें इसके लिए रोज़ 1 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है तब जाकर वह खाना बना पाती हैं।
लेकिन समाज सेवा एक ऐसी सेवा है जो चुटकियों में आपकी सारी मुश्किलों और आपकी सारी परेशानियों को दूर कर देती हैं, जैसे ही आप दूसरों के चेहरे पर सुकून और ख़ुशी देखते हैं आप स्वतः ही अपने सारे ग़म भूल जाते हैं।
सुधारानी का परिवार लगभग 15 एकड़ ज़मीन पट्टे पर लेकर खेती करता है और उसी से अपनी जीविका चलाता है। उनके इस जज्बे को सलाम है, क्योंकि ऊपर वाला भी ऐसे लोगों की झोली कभी ख़ाली नहीं करता जो अपनी झोली हमेशा दूसरों के लिए खोल कर रखते हैं।