पत्ता गोभी को लेकर कुछ ऐसी खबरें आई थी कि उसे बहुत लोगों ने खाना छोड़ दिया। ऐसा कहा जा रहा था कि पत्ता गोभी में एक ऐसा कीड़ा यानी टेपवर्म (Tapeworm) या फीताकृमि पाया जाता है, जो लोगों के दिमाग़ तक पहुँच कर उन्हें गंभीर बीमारियों का शिकार बना देता है। लेकिन अगर यह बात सच है तो आपको भी पत्ता गोभी खाने के समय कुछ सावधानियों को बरतनी पड़ेगी। आइए जानते हैं कि वह कीड़े कैसे पत्ता गोभी के जरिए हमारे दिमाग़ तक पहुँचते हैं।
यह कीड़े जानवरों के मल में पाए जाते हैं
पत्ता गोभी (Cabbage) और फूलगोभी (Cauliflower) दोनों एक ही प्रजाति की सब्जियाँ है। पत्ता गोभी से जो कीड़े निकलते हैं उन्हें टेपवर्म (Tapeworm) यानी फीताकृमि कहा जाता है। यह कीड़े हमारे शरीर के अंदर आंतों में जाने के बाद ब्लड फ्लो के द्वारा शरीर के अन्य हिस्सों तथा मस्तिष्क तक भी पहुँच जाते हैं। यह कीड़े इतने छोटे होते हैं कि हम इन्हें खुली आंखों से देख भी नहीं सकते। सब्जियों को उबालने के दौरान यह कीड़े मर भी सकते हैं। यह कीड़े जानवरों के मल में पाए जाते हैं।
ब्लड फ्लो के साथ नसों के द्वारा हमारे दिमाग़ तक पहुँच जाते हैं
सब्जियों के जरिए हमारे मस्तिष्क में पहुँचने वाले टेपवर्म अक्सर बारिश के पानी या और किसी वज़ह से ज़मीन तक पहुँच जाते हैं और फिर कच्ची सब्जियों के जरिए यह सबसे पहले हमारे पेट में उसके बाद हमारे आंतों में उसके बाद ब्लड फ्लो के साथ नसों के द्वारा हमारे दिमाग़ तक पहुँच जाते हैं। इन कीड़ों का जो लार्वा होता है वह हमारे दिमाग को बुरी तरह से नुकसान पहुँचा सकता है।
इन कीड़ों की तीन प्रजातियाँ होती हैं
हमारे शरीर में इन कीड़ों के कारण जो इंफेक्शन होते हैं उन्हें हम टैनिएसिस (Taeniasis) कहते हैं। जब यह कीड़े हमारे शरीर में जाते हैं तब यह अंडे भी देते हैं जिसके बाद हमारे शरीर के अंदर घाव बनने शुरू हो जाते हैं। मुख्यतः इन कीड़ें की तीन प्रजातियाँ होती हैं, पहली प्रजाति टीनिया सेगीनाटा, दूसरी प्रजाती टीनिया सोलिअम और तीसरी प्रजाति टीनिया एशियाटिका होती हैं। जो हमारे शरीर में लीवर में पहुँचने के बाद सिस्ट बनाते हैं जिससे पस पड़ जाता है। ये कीड़े आंखों में भी आकर नुक़सान पहुँचा सकते हैं।
कीड़ों के अंडों का प्रेशर बढ़ने से हमारा दिमाग़ काम करना बंद कर देता है
हम जो खाते हैं उन्हीं आहारों को यह कीड़े अपना भोजन बना लेते हैं। यह कीड़े जिस व्यक्ति के दिमाग़ में भी पहुँच जाते हैं उन्हें दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है। वैसे शुरुआत में आप इन लक्षणों का पता नहीं लगा सकते। लेकिन धीरे-धीरे आपको सिर दर्द, थकान, विटामिंस की कमी महसूस होने लगेगी। दिमाग़ में इन कीड़ों के अंडों का इतना ज़्यादा प्रेशर बढ़ने लगता है कि हमारा दिमाग़ काम करना बंद कर देता है और मस्तिष्क से जुड़ी गंभीर बीमारी भी हो सकती है।
इनकी उम्र लगभग 30 सालों तक की होती है
विशेषज्ञों का ऐसा भी मानना है कि अगर हमारे दिमाग़ में बाहरी कोई चीज घुस जाता है तो इससे हमारे दिमाग़ का अंदरूनी संतुलन बिगड़ जाता है। इन खतरनाक कीड़ों यानी टेपवर्म की लंबाई 3.5 से 25 मीटर तक होती है और तो और इसकी उम्र भी लगभग 30 सालों तक की होती है। अगर किसी को इन कीड़ों से सम्बंधित कोई समस्या होती है तो ऐसी दवाई दी जाती है जिससे यह कीड़े मर जाए या दूसरा ऑप्शन सिर्फ़ सर्जरी का होता है।
12 लाख से भी अधिक लोग न्यूरोसिस्टिसेरसोसिस की समस्या से पीड़ित हैं
इस विषय में डॉक्टर्स का कहना है कि जिन चीजों में यह कीड़े पाए जाते हैं। अगर उन चीजों को कोई अधपकी खाता हैं तो, कीड़े मर नहीं पाते हैं और हमारे पेट तक पहुँच जाते हैं। इन कीड़ों से फैलने वाले संक्रमण हमारे भारत में बहुत ही आम बात है, जो कि हमारे यहाँ लगभग 12 लाख से भी अधिक लोग न्यूरोसिस्टिसेरसोसिस की समस्या से पीड़ित हैं। इस समस्या में अक्सर लोगों को मिर्गी के दौरे आते हैं।
पहला संक्रमण का मामला आज से लगभग 20 से 25 साल पहले आया था
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इन कीड़ों की लगभग 5 हज़ार से भी ज़्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं। पहली बार भारत में इससे फैलने वाले संक्रमण का मामला आज से लगभग 20 से 25 साल पहले आया था और जिन लोगों को यह संक्रमण हुआ था उनके सिर में तेज दर्द की शिकायत हुई थी और मिर्गी के दौरे आने की वज़ह से उन्हें अस्पताल में भी भर्ती कराना पड़ा था।
यही कारण है कि अब काफ़ी जगहों पर लोगों ने पत्ता गोभी खाना छोड़ दिया है। लोग इसके बदले लेट्यूस लीव्स का इस्तेमाल करते हैं। इतना ही नहीं पत्ता गोभी के अलावा भी इन कीड़े का जो लार्वा है वह पालक, मछली, पोर्क या बीफ इत्यादि में भी पाया जाता है। इसलिए डॉक्टर्स का ऐसा कहना है कि इन सब्जियों को अच्छे से धो कर उसके बाद उन्हें उबालकर, या अच्छी तरह से पका कर खाना चाहिए ताकि इनमें होने वाले कीड़े मर जाए। ऐसा भी कहा गया है कि यूरोपीय देशों में इस संक्रमण का ख़तरा एशियाई देशों की तुलना में कम होता है।