Struggle Story of Srikanth Bolla – चुनौतियाँ हम सभी के जीवन में होती हैं। लेकिन उनमें से ज्यादातर चुनौतियाँ हम सभी के जीवन में ऐसी होती हैं, जिन्हें हम कोशिश करके दूर कर सकते हैं। लेकिन यदि ये चुनौती भगवान ने ही दी हो, तो उसके सामने हम सभी असहाय हो जाते हैं। भले ही हम कितने भी कल्पनाशील, मेधावी या ताकतवर क्यों ना हों, शारीरिक बाधा के आगे सब बेबस हो कर बैठ जाते हैं।
आज हम आपको जिस लड़के की कहानी बताने जा रहे हैं। वह भी एक शारीरिक चुनौती से ही जूझ रहा था। उसके सामने चुनौती ये थी कि वह देख नहीं सकता था। वह जन्म से ही दृष्टिहीन (Blindness) था। ऐसे में उसके लिए इस समाज में जीना किसी चुनौती से कम नहीं था। लोग तरह-तरह के ताने देते थे। कहते थे कि ‘इसे मरने दो’ ऐसी परिस्थिति में भी उसने संयम दिखाया और आज उसके जीवन की कहानी हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है।
श्रीकांत बोला (Srikanth Bolla)
जन्म से ही अपने साथ कांटों का बिछौना लेकर पैदा हुए इस बच्चे का नाम है श्रीकांत बोला। श्रीकांत आंध्र प्रदेश (Andra Pradesh) के एक छोटे से गाँव में पैदा हुए थे। इनके माता पिता पेशे से खेती किसानी का काम करते थे। श्रीकांत शारीरिक तौर पर बिल्कुल हष्ठ पुष्ठ थे। लेकिन वह देख नहीं सकते थे। उनके लिए आंखों का ना होना मानो उनके जीवन में कोई काली दीवार बनकर खड़ी हो गई हो। दृष्टिहीन होने के चलते उनके माता-पिता भी ख़ुद को शापित मानते थे। हालांकि श्रीकांत के दृष्टिहीन होने के पीछे उनके माता-पिता की कोई गलती नहीं थी।
रिश्तेदार कहते थे “यह देख नहीं सकता, इसे मरने दो।”
श्रीकांत को जीवन की चुनौती के साथ लोगों की बातों का भी सामना करना पड़ता था। लोग कहा करते थे कि ‘यह देख नहीं सकता, इसे मरने दो’ लेकिन श्रीकांत की दादी उन्हें बड़ा प्यार करती थी। वह उनके हर काम में मदद करती थी। लेकिन दादी तो केवल घर पर ही उनकी मदद कर सकती थी। जब श्रीकांत घर से बाहर मैदान में दोस्तों के साथ खेलने जाते, तो वह उसे उसके दोस्त ऐसा आभास कराते, मानो वह मैदान में है ही नहीं। ये सिर्फ़ श्रीकांत का ही अपमान नहीं था। उनके साथ उनका पूरा परिवार ख़ुद को शर्मिंदा महसूस करता था।
ब्लाइंड स्कूल में नहीं लगा मन
लोगों के तानों से परेशान होकर श्रीकांत के चाचा ने उन्हें घर से 400 किलोमीटर दूर उनका हैदराबाद के एक ब्लाइंड स्कूल (Blind school) में दाखिला करवा दिया। आपको बता दें कि दृष्टिहीन बच्चों के लिए इस स्कूल में ‘ब्रेल लिपि’ (Braille lipi) की मदद से पढ़ाया जाता है। बचपन से ही घर के परिवेश में पला बढ़ा श्रीकांत ख़ुद को इस स्कूल के माहौल में ढाल नहीं पाया। लिहाजा जब कोई रास्ता नहीं दिखा तो श्रीकांत स्कूल से भाग गया। ऐसे में लंबी तलाश के बाद उसके चाचा ने फिर से उसे ढूँढा। इस बार चाचा ने श्रीकांत से पूछा कि क्या वह फिर से घर में अपमान वाला जीवन जीना चाहता है। बस यही वह पल था जिसने श्रीकांत का मानो पूरा जीवन बदल दिया।
तब श्रीकांत ने ख़ुद से लिया संकल्प
श्रीकांत वापस घर आ गए। लेकिन इस बार वह अपमान के साथ जीने नहीं, बल्कि उन्होंने ख़ुद से संकल्प ले लिया था कि अब उनके रास्ते में जो कुछ भी आएगा। सभी में वह अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करेंगे। इसी तरह चलते हुए उन्होंने आगे दसवीं कक्षा में बोर्ड परीक्षाएँ दी। जिसमें उन्हें पूरे स्कूल में प्रथम स्थान हासिल करने का गौरव प्राप्त हुआ। दसवी के बाद आगे वह साइंस विषय के साथ पढ़ाई करना चाहता थे। लेकिन स्कूल में प्रथम आने के बाद भी वह साइंस विषय नहीं ले सकते थे।
क्योंकि तब तक भारतीय शिक्षा पद्धति में ऐसा नियम था कि दृष्टिबाधित लोग केवल आर्ट विषय के साथ ही पढ़ाई कर सकते हैं। श्रीकांत ने इस कानून में बदलाव के लिए कोर्ट में मामला दाखिल किया। इसके लिए श्रीकांत ने तब तक लड़ाई लड़ी जब तक कि इस कानून में बदलाव नहीं हो गया। आज कानून में बदलाव करने के साथ ही श्रीकांत ने बारहवीं में शानदार तरीके से 98 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की है।
MIT में पढने वाले श्रीकांत पहले नेत्रहीन छात्र बने
श्रीकांत को मानो इस दुनिया में शारीरिक चुनौती से लड़ने के साथ सिस्टम से भी लड़ने के लिए भेजा गया था। बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह देश में इंजीनियरिंग के लिए प्रसिद्ध IIT जैसे संस्थान में पढ़ना चाहते थे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि उस दौरान IIT में दृष्टिहीन बच्चों की सीट आरक्षित नहीं थी। IIT में उनका आवेदन अस्वीकार किए जाने के बाद उन्होंने दुनिया भर में प्रतिष्ठित संस्थान ‘Massachusetts Institute of Technology’ में आवेदन किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि वह पहले ऐसे नेत्रहीन छात्र थे, जिन्हें MIT में प्रवेश मिला था।
विकलांग छात्रों के लिए बनाया संगठन
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीकांत अपने देश में लौट आए। श्रीकांत पहले कॉर्पोरेट क्षेत्र में नौकरी करना चाहते थे। लेकिन बाद में उन्होंने मन बनाया कि वह शारीरिक चुनौती से गुजर रहे बच्चों के लिए काम करेंगे। इसके लिए उन्होंने आगे चलकर ‘समन्वय’ नाम का संगठन बनाया। उनका ये संगठन ऐसे बच्चों के लिए था, जो किसी भी तरह की शारीरिक चुनौती से गुजर रहे हैं। ऐसे बच्चों को ज़रूरत के अनुसार सेवाएँ प्रदान की जाती थी। ताकि उनका जीवन आम लोगों की तरह सहज हो सके।
2012 में बनाई दिव्यांग लोगों के लिए कंपनी
श्रीकांत केवल संगठन बनाने तक सीमित नहीं रहे। आगे चलकर साल 2012 में उन्होंने ‘Bollant Industries Pvt Ltd‘ की स्थापना की। ये एक ऐसी कंपनी थी जिसमें दिव्यांग लोगों के लिए काम उपलब्ध होता था। क्योंकि हमने अक्सर देखा है कि दिव्यांग लोगों को रोजगार ढूँढने में बड़ी कठिनाई उठानी पड़ती है। इसलिए श्रीकांत की ये कंपनी ऐसे लोगों को अपनी कंपनी में रोजगार देने का काम करती है।
श्रीकांत की इस कंपनी में इको फ्रेंडली उत्पाद ही बनाए जाते हैं। जैसे कि ऐरेका लीफ प्लेट्स, कप्स, ट्रेज और डिनर वेयर, बीटल प्लेट्स और डिस्पोजेबल प्लेट्स, चम्मच, कप्स आदि। श्रीकांत ने आगे चलकर इस कंपनी में गोंद और प्रिंटिंग के काम को भी चालू कर दिया था। इस कंपनी में सभी कामों की देख-रेख की जिम्मेदारी उन्होंने रवि पंथ को दी थी। रवि पंथ ना केवल उनकी कंपनी में इन्वेस्ट मात्र नहीं किया था, वह उनके बतौर मेंटर भी रह चुके थे।
उद्योगपति रतन टाटा भी हैं इनसे प्रभावित
श्रीकांत के संघर्ष को देखकर कोई भी उनसे प्रभावित हो सकता है। इसी से प्रभावित होकर रतन टाटा (Ratan Tata) ने भी श्रीकांत को फंड प्रदान किया था। आज आपको जानकर ख़ुशी होगी कि श्रीकांत की कंपनी में लगभग 150 लोग काम करते हैं, जो कि शारीरिक तौर पर किसी ना किसी प्रकार से अक्षम हैं। साल 2016 में उन्हें ‘Best Entrepreneur’ के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। अच्छी बात ये है कि श्रीकांत की कंपनी आज 70 लाख से भी ज़्यादा का कारोबार कर रही है।
श्रीकांत बोला (Srikanth Bolla) बताते हैं…
“एक समय था जब सारी दुनिया के लोग मेरा मज़ाक उड़ाया करते थे और कहते थे कि यह कुछ नहीं कर पायेगा। मेरी यह उपलब्धियाँ ही उन्हें मेरा जवाब है। अगर आप जीवन की लड़ाई के विजेता के रूप में उभरना चाहते हैं तो आपको अपने जीवन के सबसे खराब समय में धैर्य रखना पड़ेगा और सफलता आपके पास खुद-ब-खुद चली आएगी।”
श्रीकांत बनना चाहते हैं ‘भारत के राष्ट्रपति’
श्रीकांत बोला (Srikanth Bolla) के संघर्षों की कहानी जानकर आप ये समझ गए होंगे कि उन्हे कुछ भी खैरात में नहीं मिला है। उनके जीवन के हर क़दम पर एक नई चुनौती थी। जिसे पार करना उनके लिए हंसी खेल नहीं था। लेकिन आज जब श्रीकांत संघर्षों के बाद एक नए मुकाम को छू चुके हैं, तो भी वह जीवन में रुकना नहीं चाहते। वह बताते हैं कि उनके जीवन का अंतिम लक्ष्य एक बार ‘भारत का राष्ट्रपति’ बनना है। जो कि देश का पहला नागरिक होता है।
ये बात तो भविष्य के गर्भ में छिपी है कि वह भारत के राष्ट्रपति बनते हैं या नहीं। लेकिन उनके संघर्ष को देखकर इतना तो कहा जा सकता है कि यदि कभी वह इस पद पर पहुँच भी गए, तो देश के लिए ये भी एक नया इतिहास लिखने जैसा होगा। खैर, ‘AWESOME GYAN‘ टीम की दुआएँ श्रीकांत बोला (Srikanth Bolla) के साथ हैं। हम उम्मीद करते हैं कि वह अपने हर लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब हों।