अहमदाबाद, गुजरात: आपने पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार की तरफ़ से बहुत-सी योजनाएँ सुनी होगी। हो सकता है आपने वैश्विक स्तर पर ‘सस्टेनेबल गोल डेवलपमेंट’ (Sustainable Goal Development) नाम की चीज भी सुनी हो। जिसने दुनिया के पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए सभी देशों के लिए 17 गोल निर्धारित किए हैं। जो कि कार्बन उत्सर्जन, पेड़ों की कटाई, भूमिगत जल का संरक्षण जैसे लक्ष्य निर्धारित करता है। लेकिन आप जानते होंगे कि पर्यावरण को बचाने के लिए अकेले सरकार ना काफ़ी है। इसके लिए लोगों को भी आगे आना होगा।
आज हम आपको एक ऐसे ही शख़्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जो सिर्फ़ आगे ही नहीं आया। बल्कि अपने स्तर पर बहुत कुछ कर भी रहा है। उसका मानना है कि सरकार की कमियाँ गिनाना तो हम सभी जानते हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारी कोई नहीं निभाना चाहता। आइए जानते हैं कि कौन है वह शख्स और किस तरह से पर्यावरण को बचाने का काम कर रहा है।
डॉ. दिलीप सिंह सोढ़ा (Dr. Dilip Singh Sodha)
इनका नाम है डॉ. दिलीपसिंह सोढ़ा। इनकी उम्र 37 साल है। साल 2015 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दिलीप सिंह ने UPSC (Union public Service Commission) की परीक्षा देने का फ़ैसला किया। उन्होंने इस परीक्षा के लिए एक-दो साल जमकर मेहनत भी की। लेकिन सिलेक्शन नहीं हुआ। ऐसे में मंज़िल भले ही नहीं मिली हो, पर उस दौरान उन्होंने जो कुछ सीखा वह उनके लिए बेहद मददगार साबित हुआ। उन्हें इस दौरान ही समाज और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने का भी आभास हुआ। प्रैक्टिस के बाद साल 2019 में उन्होंने ख़ुद का क्लीनिक खोल लिया। इस दौरान उन्होंने सोचा कि वह पैसा कमाने के साथ पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाएंगे।
सोलर पैनल (Solar Panel) लगवाकर की शुरुआत
पर्यावरण के प्रति उन्होंने अपना फ़र्ज़ अदा करने के लिए सबसे पहले अपने घर पर सोलर पैनल लगवा लिए। वह बताते हैं कि सर्दियों में उनका बिजली का बिल कम और गर्मियों में हमेशा ज़्यादा आया करता था। दो महीने में करीब 1000 यूनिट बिजली की खपत होती थी। ऐसे में उन्होंने बिजली ग्रिड पर से निर्भरता कम करने के लिए घर की छत पर 5 किलोवाट (5 kilowatt) का सोलर पैनल लगवा लिया। सोलर पैनल लगवाने के बाद उनके घर बिजली का बिल दस हज़ार से सीधा ‘जीरो’ (Zero) के लगभग पहुँच गया। आज सोलर पैनल से भी उनके घर पहले की तरह एसी, कूलर, पंखा और लाइट जलती है।
इस तरह लगवाते हैं सोलर पैनल
सोलर पैनल (Solar Panel) लगवाने के लिए अपने घर बिजली सप्लाई करने वाली कंपनी की भी मदद लेनी पड़ती है। वह आपके घर में इस तरह का मीटर लगा देते हैं जिससे आप सोलर पैनल के साथ बिजली विभाग से भी आप बिजली ले सकते हैं। इसमें देखा जाता है कि आपके सोलर सिस्टम से कितनी बिजली बनाई गई और आपकी महीने भर में खपत कितनी रही। यदि बिजली कम बनी और आपकी खपत ज़्यादा रही तो आपको बिल देना पड़ेगा। लेकिन यदि सोलर पैनल से बिजली ज़्यादा बनी खपत कम रही तो बिजली विभाग आपको बिल भुगतान करेगा।
कितनी आती है लागत
दिलीप सिंह सोढ़ा बताते हैं कि सोलर सिस्टम की लागत 1 लाख 65 हज़ार रुपए आई थी। जो कि सरकार की सब्सिडी लेने के बाद आती है। साथ ही इसे लगवाने का 25 हज़ार का अलग से ख़र्चा आता है। लेकिन इसे लगवाने के बाद जिस तरह से उनका बिजली बिल जीरो हो गया है उससे तीन साल में इसकी क़ीमत पूरी अदा हो जाएगी। इस तरह से बिजली बिल कम करने का एक अच्छा विकल्प निकल कर आया है। वह कहते हैं कि हमें सोलर पैनल लगवाने के लिए पहले आसपास दो-तीन कंपनियों से बात कर लेनी चाहिए। आज कल बहुत-सी कंपनियाँ ऐसी भी आती हैं जो सरकारी सब्सिडी का सारा काम-काज ख़ुद देखती हैं। ऐसे में ग्राहकों को इसका बोझ नहीं उठाना पड़ता।
पौधारोपण का चलाया है अभियान
दिलीप सिंह बिजली बचाने तक सीमित नहीं हैं। वह आज पौधारोपण का काम भी करते हैं। उन्होंने अपने घर के आसपास बहुत से पौधे लगाए हुए हैं। जिसकी देखभाल भी वह ख़ुद ही करते हैं। इन पौधों को बचाने के लिए ट्री गार्ड (Tree guard) भी लगवाया है। लेकिन लोग इसके अंदर भी लोग कचरा डाल देते हैं जिसकी सफ़ाई भी लो ख़ुद ही हर रविवार को करते हैं।
इसके अलावा बनासकांठा (Banaskantha) में उनके खेत भी हैं, जिन्हें वहीं का एक स्थानीय परिवार उन्हें संभालता है। यहाँ खेत में उन्होंने 30 पौधे लगाए हुए हैं। जिसमें ड्रिप इरिगेशन (Drip irrigation) के माध्यम से पानी की सिंचाई की जाती है। ताकि पानी बर्बाद होने से बचाया जा सके।
घर के कचरे से बनाते हैं खाद
दिलीप सिंह ने अपने घर के बाहर ही गड्ढा बनाया हुआ है। जो कि कूडे से खाद बनाने का काम करता है। यदि इस तरह से हम घर के कूडे को इस गड्ढे में डाल दें तो इसे बाद में खाद के रूप में काम में लिया जा सकता है। जिसे बाद में वह अपने पौधों में डालने के प्रयोग में लाते हैं।
पैडल पावर नाम का है साइकिलिंग ग्रुप (Cycling Group)
दिलीप सिंह ने इस बात पर भी ख़ूब काम किया है कि लोग साइकिल के महत्त्व को कैसे समझे। इसके लिए उन्होंने ‘पैडल पावर’ (Paidal Power) नाम का ग्रुप बनाया है। जिसमें 50 लोग जुड़े हैं। ये सभी लोग पर्यावरण को बचाने के लिए साइकिल का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करते हैं।
मनाते हैं ‘कार फ्री डे’ (Car free Day)
वैसे तो दिलीप का क्लीनिक (Clinic) घर से सात किलोमीटर दूर है। लेकिन वह इस की परवाह किए बिना सप्ताह में एक दिन कार फ्री डे रखते हैं। इस दिन वह कार की बजाय साइकिल से अपने क्लीनिक तक जाते हैं। उनकी कोशिश है कि आने वाले आठ-दस सालों तक इस नियम को अपनाते रहें। इसी तरह वह अपने जीवन में छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करते हैं जिनका मकसद समाज और पर्यावरण के प्रति कुछ ना कुछ बेहतर करना होता है।
क्या देते हैं लोगों को संदेश
दिलीप सिंह लोगों को कहते हैं कि ना तो कोई देश अच्छा होता है ना ही कोई सरकार। ये लोगों के ऊपर निर्भर करता है कि वह कैसे देखते हैं। यदि लोग अपनी भूमिका अच्छे से अदा करते हैं तो देश की तरक्क़ी निश्चित है। लेकिन अकेले सरकार कितनी भी योजनाएँ बना ले बिना लोगों के सहयोग से ये कभी संभव नहीं हो सकता। इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि लोग सिर्फ़ अपने अधिकारों के लिए आवाज़ ना उठाएँ, उन्हें अपने कर्तव्य भी देखने चाहिए होते हैं। तभी वास्तव में एक देश, सफल देश बनता है।