नदी, तालाब और झीलों में बढ़ता प्रदूषण किसी से छिपा नहीं है, लेकिन हम उसे साफ़ करने के बजाय नजरअंदर कर देते हैं। इतना ही नहीं कई लोग पूजा, पाठ की बची सामग्री समेत अन्य तरह का कूड़ा भी नदी में डालने से नहीं हिचकिचाते। इसका परिणाम यह होता है कि साल दर साल नदी, तालाब और झीलों का पानी दूषित हो रहा है, जिसकी वज़ह से कई घातक बीमारियाँ जन्म ले रही हैं।
भले ही आप और हम नदियों को साफ़ रखने के बारे में नहीं सोचते, लेकिन इस देश में एक ऐसे भी नागरिक हैं जिन्होंने अपनी आरामदायक नौकरी छोड़कर जल प्रदूषण को कम करने का फ़ैसला किया है। पर्यावरणविद अरुण कृष्णमूर्ति की कहानी न सिर्फ़ सैकड़ों भारतीयों को प्रेरित करती है, बल्कि बढ़ते जल प्रदूषण की तरफ़ ध्यान भी आकर्षित करती है।
नौकरी छोड़कर नदियों की सफ़ाई में जुटा नौजवान
चेन्नई के रहने वाले 32 वर्षीय पर्यावरणविद अरुण कृष्णमूर्ति (Arun Krishnamurthy) को हमेशा से ही झील, तालाब और नदियों से प्यार रहा है, क्योंकि उनका बचपन इन्हीं जल स्त्रोतों के आसपास गुजरा है। ऐसे में जब अरुण को पढ़ाई पूरी करने के बाद दुनिया की मशहूर कंपनी गूगल में नौकरी करने का मौका मिला, तो उन्होंने इस अवसर को छोड़ दिया। वज़ह थी अरुण का पर्यावरण के लिए अटूट प्रेम, जिसे वह चाह कर भी अनदेखा नहीं कर सकते थे।
अरुण कृष्णमूर्ति ने जब बढ़ते जल प्रदूषण पर ध्यान दिया, तो उन्हें समझ आया कि यह समस्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है और कोई भी इसे ख़त्म करने की दिशा में क़दम नहीं उठा रहा है। ऐसे में नदियों, झीलों और तालाबों में बहते कूड़े कचरे और प्लास्टिक ने अरुण को विचलित कर दिया, जिसके बाद उन्होंने जल प्रदूषण को ख़त्म करने का निर्णय लिया।
ईएमआई नामक संगठन से शुरू की मुहिम
अरुण कृष्णमूर्ति ने जल प्रदूषण को कम करने की मुहिम शुरू की, जिसके तहत साल 2007 में उन्होंने ईएमआई नामक संगठन की नींव रखी। इस संगठन का उद्देश्य जल स्त्रोतों में जमा कचरे को साफ़ करके उन्हें पुनर्जीवित करना था। ईएमआई संगठन के तहत अलग-अलग राज्यों के लोग जल प्रदूषण को ख़त्म करने की मुहिम में अरुण के साथ जुड़ते चले गए।
वर्तमान में ईएमआई देश के लगभग 14 राज्यों में जल प्रदूषण को कम करने काम कर चुका है, जहाँ इस संगठन ने 93 जल स्त्रोतों की न सिर्फ़ साफ़ सफ़ाई की है बल्कि उन्हें दोबारा से जीवन भी प्रदान किया है। इन जल स्त्रोतों में 39 झीलें और 48 तालाब शामिल हैं, जो आसपास बसे गांव, कस्बें के लोगों को स्वस्छ पीने का जल मुहैया करवाते हैं।
सरकार द्वारा नहीं मिलती कोई मदद
अरुण कृष्णमूर्ति ने जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने की जो मुहिम शुरू की है, उसके तहत आज कई राज्यों के लोग नदी, तालाब और झीलों की साफ़ सफ़ाई करने का काम कर रहे हैं। यही वज़ह है कि मात्र 15 सालों में ईएमआई जल प्रदूषण को कम करने वाले सबसे अहम संगठनों में से एक बन चुका है।
अरुण कृष्णमूर्ति के लिए अपनी गूगल की आरामदायक नौकरी छोड़कर पर्यावरण को साफ़ सुथरा रखने का काम शुरू करना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था, क्योंकि उनका मानना है कि जीवन में कोई भी चीज कभी स्थाई नहीं होती है। ऐसे में वह नौकरी के मोह में अपनी आंखों के सामने जल प्रदूषण को बढ़ते हुए नहीं देख सकते थे, क्योंकि उन्हें बचपन से ही जल स्त्रोतों से ख़ास लगाव रहा है।
यूं तो ईएमआई संगठन केंद्र और राज्य सरकार के साथ मिलकर जल प्रदूषण को रोकने के लिए काम करता है, लेकिन इस काम के लिए उन्हें सरकार की तरफ़ से कोई मदद नहीं मिलती है। यानी ईएमआई संगठन से जुड़े किसी भी सदस्य को सरकार की तरफ़ पैसे या साफ़ सफ़ाई के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरण नहीं दिए जाते हैं। लेकिन जब भी ईएमआई को किसी भी जल स्रोत की साफ़ सफ़ाई का काम करना होता है, तो उन्हें सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है।
पर्यावरण से बढ़कर नहीं है नौकरी
अरुण कृष्णमूर्ति का मानना है कि पर्यावण और जल स्रोत उनकी आरामदायक नौकरी से कई ज़्यादा बढ़कर हैं, क्योंकि सच तो ये है कि मानव और सभी तरह के प्राणियों के लिए जल ही जीवन है। ऐसे में जब उन्होंने ईएमआई संगठन की शुरुआत की थी, तो उन्हें नहीं पता था कि लोग जल प्रदूषण को ख़त्म करने की मुहिम में उनका साथ देंगे।
लेकिन अरुण के इस संगठन को उनके काम की वज़ह से लोगों का इतना साथ और प्यार मिला कि कई राज्यों के लोग लगातार ईएमआई के साथ जुड़ते जा रहे हैं। अरुण कृष्णमूर्ति की कहानी जानकर इतना तो कहा जा सकता है कि अगर व्यक्ति बदलाव के लिए एक छोटी-सी शुरुआत करे, तो उसे जनता का साथ ज़रूर मिलता है। बस ज़रूरत है तो आगे आकर एक नई शुरुआत करने की।