पृथ्वी पर सभी प्राणियों में मानव जाति केवल एक चीज़ की वज़ह से अन्य जीवों से भिन्न तथा ऊंचे स्तर पर है और वह है हमारा दिमाग, जो हमें बुद्धिशाली बनाता है तथा नए-नए विचार और तरकीबें खोज निकालता है।
आपका केवल एक विचार या आईडिया भी आपको बड़ी सफलता दिला सकता है। हम सभी ने ‘मिट्टी से सोना’ बनाने वाली कहावत तो सुनी ही है, जिसका मतलब है व्यर्थ चीज़ को कीमती बनाना, पर आज हम आपको इस कहावत को सार्थक करने वाले 2 लोगों की कहानी बताएंगे, जिन्होंने अपने एक आईडिया से ऐसा बिजनेस किया, जिससे उन्हें करोड़ों का मुनाफा हो रहा है। दरअसल इन व्यवसायियों ने हाथी के गोबर (Dung) से छोटे से बिजनेस की शुरुआत की और फिर इनका यह बिजनेस विस्तृत होता गया तथा अब वे करोड़ों रुपए कमा रहे हैं।
कैसे आया इस अनोखे व्यवसाय का आइडिया?
यह साल 2003 की बात है, जब दो लोग, विजेंद्र शेखावत (Vijendra Shekhavat) और महिमा मेहरा (Mahima Mehra) राजस्थान (Rajasthan) में स्थित आमेर के किले पर घूमने गए थे। किले में घूमते समय उन्होंने अचानक कुछ ऐसा देखा कि उनके दिमाग़ में बिजनेस का एक शानदार आईडिया घूमने लगा। उन्होंने देखा कि किले के नीचे के भाग में हाथी का गोबर (Dung) पड़ा हुआ था। फिर उन दोनों ने अपने आईडिया पर काम करना शुरू किया।
जिसके लिए सबसे पहले उन्होंने इंटरनेट पर रिसर्च किया कि हाथी के लीद (Dung) से पेपर कैसे बनाया जाता है? इंटरनेट द्वारा उन्हें जो भी इंफॉर्मेशन चाहिए थी वह सब प्राप्त हो गई। उन्हें यह भी पता चला कि श्रीलंका, थाईलैंड और मलेशिया में भी हाथी के गोबर से पेपर बनाया जाता है। फिर सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद उन्होंने भी फ़ैसला किया कि वे भी यह व्यवसाय शुरू करेंगे।
15 हज़ार रुपए का लोन लेकर शुरु किया बिजनेस
विजेंद्र और महिमा ने बिजनेस शुरू करने के लिए करीब 15 हज़ार रुपए का लोन लिया तथा कच्चे माल के लिए हाथी के गोबर का इस्तेमाल करके अपने बिजनेस की शुरुआत की। फिर साल 2007 में उन्होंने अपने ‘हाथी छाप ब्रांड’ की लॉन्चिंग देश भर में कर दी। वे अपने इस व्यवसाय में हाथी के गोबर से फोटो एल्बम, बैग्स, नोटबुक गिफ्ट टैग, फ्रेम्स, टी कोस्टर तथा स्टेशनरी का सामान इत्यादि बनाते हैं। यह सभी सामान भारत में 10 रुपये से लेकर 500 रुपये तक बिकता है।
इस प्रोसेस से बनता है हाथी की लीद से पेपर
उनका यह अनोखा बिजनेस ख़ूब तरक्क़ी करने लगा। फिर उन्होंने अपने पेपर को विदेशों में भी एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया। अब तो जर्मनी व यूके (United Kingdom) में भी उनका हाथी ब्रांड पेपर भेजा जाता है। आपको बता दें कि पेपर बनाने के लिए सर्वप्रथम हाथी की लीद को साफ़ करने हेतु उसे एक बड़े वाटर टैंक में रखते हैं, फिर जब वह ठीक प्रकार से साफ़ हो जाती है, तो उससे पेपर बनाने का काम शुरू किया जाता है। हाथी के इस गोबर को धोते समय जो पानी बचता है, उसे भी उर्वरक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
महिमा पसंद करती हैं इको-फ्रेंडली लाइफ स्टाइल
महिमा को इको-फ्रेंडली लाइफ स्टाइल से जीना पसंद है। यही वज़ह है कि उन्होंने हाथी के गोबर से अपना बिजनेस शुरू किया, जिससे पर्यावरण को भी कोई हानि ना पहुँचे। महिमा ने उनके अन्य गाँव वालों के साथ मिलकर एक छोटी-सी टीम भी बनाई और फिर वे उस टीम के साथ मिलकर हाथी के गोबर से पेपर निर्माण का काम किया करती हैं।
पेपर बनाने के लिए हाथी का गोबर ही क्यों?
अब शायद आप यह सोंच रहे होंगे कि पेपर बनाने के लिए अन्य किसी जानवर की अपेक्षा हाथी के गोबर का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है? तो आपको बता दें कि दरअसल हाथी का पाचन तंत्र ज्यादातर खराब रहता है, इस वज़ह से उसकी पाचन प्रक्रिया ठीक प्रकार से नहीं हो पाती है। इस वज़ह से उसके गोबर में रेशे काफ़ी ज़्यादा मात्रा में होते हैं, जिसकी वज़ह से पेपर भी ज़्यादा मात्रा में बन जाता है।
महिमा मेहरा (Mahima Mehra) और विजेंद्र शेखावत (Vijendra Shekhavat) ने अपने नए आईडिया से जो ईको फ्रेंडली तरीक़ा अपनाकर अनूठा बिजनेस शुरू किया और उसे बुलंदियों पर पहुँचाया, वह काबिले तारीफ़ है।