90s childhood memories – आज दुनिया बहुत ही आधुनिक हो चुकी है, जहाँ मोबाइल फोन से लेकर स्कूटर तक सब कुछ बेहद एडवांस है। लेकिन इस एडवांस टेक्नोलॉजी के बीच रहते हुए कुछ लोगों को अपने बचपन की भूली बिसरी बातें याद आती हैं, क्योंकि उस दौर की बात ही कुछ अलग थी।
आज हम आपको 90 के दशक की उन भूले बिसरे गलियारों में वापस ले जा रहे हैं, जिन्हें देखने के बाद आप भी पुराने दिनों में लौट जाएंगे। तो आइए चलते हैं 90 के दशक के एक बेहद दिलचस्प और रोमांचक सफर पर-
शक्तिमान अब टीवी के बजाय YouTube पर आता है
90 के दशक में हर बच्चा शक्तिमान सीरियल को देखने के लिए बेताब रहता था, जो दूरदर्शन पर प्रसारित होता था। लेकिन वर्तमान में छतों से छलांग लगाने वाले शक्तिमान का एड्स बदल गया है।
जी हाँ… आपने बिल्कुल सही सुना, अब शक्तिमान टेलीविजन पर नहीं बल्कि यूट्यूब पर प्रसारित होता है। इतना ही नहीं इस दिलचस्प सीरियल को लेकर बच्चों का क्रेज भी पहले जैसा नहीं है, हालांकि 90 के दशक के बच्चे बड़े होकर भी इस सीरियल को देखना पसंद करते हैं।
COMPLAN का नया एड
अगर आप 90 के दशक में पैदा हुए या खेल कूद करने वाले बच्चे थे, तो आपने टीवी पर COMPLAN का एड जरूर देखा होगा। उस एड में चाइल्ड एक्टर के रूप में एक्टर शाहिद कपूर नजर आते थे, जो आज खुद दो बच्चों के पिता हैं।
लेकिन बदलते दौर के साथ COMPLAN का एड और उसके एक्टर्स भी बदल चुके हैं, इसलिए तो वर्तमान में प्रसारित होने वाले एड में जूनियर शाहिद कपूर के बजाय डॉक्टर्स और अन्य एक्टर्स दिखाई देते हैं।
धारा विज्ञापन का चाइल्ड एक्टर
आपने कभी न कभी धारा ब्रांड का कच्ची घानी सरसों तेल के बारे में जरूर सुना होगा, जो 90 के दशक में सबसे मशूहर तेल ब्रांड हुआ करता था। टीवी पर इस ब्रांड का विज्ञापन एक छोटा-सा बच्चा करता था, जिसका नाम Parzan Dastur हैं।
वर्तमान में धारा कच्ची घानी सरसों तेल का विज्ञापन टीवी पर बहुत कम देखने को मिलता है, जबकि पुराने विज्ञापन में नजर आने वाले चाइल्ड एक्टर Parzan Dastur भी अब बड़े हो गए हैं। धारा की वजह से घर-घर मशहूर हुए एक्टर Parzan Dastur की उम्र अब 30 साल हो चुकी है और वह शादीशुदा भी हैं।
बदल गई KISME टॉफी की पैकिंग
अगर आप 90 के दशक में पले बड़े हैं, तो आपने भी अपने जन्मदिन के मौके पर स्कूल व ट्यूशन में KISME टॉफी जरूर बांटी होगी। उस जमाने में 1 रुपए में 4 KISME BAR मिलती थी, लेकिन बीतते वक्त के साथ KISME टॉफी की पैकिंग के साथ-साथ उसका लुक और साइज भी बदल पूरी तरह से बदल गया है।
अब हर जगह नहीं मिलता है MILO
NESTLE कंपनी का प्रोडक्ट MILO चॉकलेट पाउडर 90 के दशक में बहुत ज्यादा मशहूर था, जो बच्चों से लेकर बड़ों तक हर उम्र के व्यक्ति को पसंद था। MILO को ठंडे दूध या पानी के साथ मिस्क करके पीया जाता था, उस दौर में यह मेहमानों को कोल्ड ड्रिंक की तरह सर्व किया जाता था।
लेकिन बीतते समय के साथ मार्केट में नई-नई चीजें आने लगी, जिसकी वजह से MILO इस भीड़ में कहीं गुम हो गया। आज हालात यह हैं कि NESTLE का प्रोडक्ट होने के बावजूद भी MILO हर दुकान या शॉपिंग मॉल में नहीं मिलता है, जिससे यह पता चलता है कि जमाना और लोगों की पसंद कितनी बदल चुकी है।
कोलगेट का बदला हुआ रूप
भले ही आज भी ज्यादातर भारतीयों के घर पर कोलगेट को टूथपेस्ट के रूप में इस्तेमाल किया जाता हो, लेकिन 90 के दशक से लेकर अब तक कोलगेट के लुक और पैकिंग में काफी अंतर आ चुका है। 90 के दशक में कोलगेट एक एल्युमिनियम की ट्यूब में आता था, लेकिन अब उसकी जगह प्लास्टिक की ट्यूब की पैकिंग ने ले ली है।
KEO KARPIN की नई बोतल
KEO KARPIN भारत में इस्तेमाल होने वाला सबसे पुराने हेयर ऑयल ब्रांड में से एक है, लेकिन 90 के दशक में KEO KARPIN की पैकिंग एक कांच की बोतल में होती थी। लेकिन वर्तमान में इस ब्रांड का हेयर ऑयल प्लास्टिक की बोतल की पैकिंग के साथ आता है।
खत्म हो गया Bensia Pencil का क्रेज
90 के दशक में हर स्कूल जाने वाले बच्चे का सपना होता था कि उसके पास एक Bensia Pencil जरूर हो, जिसे कॉपी पर होम वर्क करने का अलग ही अनुभव होता था। लेकिन आज स्कूल के बच्चों में Bensia Pencil को लेकर वह क्रेज और दीवानगी देखने को नहीं मिलती है, जो 90 के दशक में हुआ करती थी।
गुम हो गए खुशबूदार ERASER
आज स्कूल की पढ़ाई भी डिजीटल हो चुकी है, ऐसे में बच्चों को पेसिंग और ERASER का इस्तेमाल करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन 90 के दशक में हर बच्चे के पास खुशबूदार और रंगीन ERASER हुआ करता था, जिसे खुशबू हर क्लास को इंट्रस्टिंग बना देती थी।
BOOMER में नहीं आता है टैटू
90 के दशक में मार्केट में BOOMER का अपना एक अलग क्रेज था, जो बच्चे से लेकर बड़ों तक हर उम्र के व्यक्ति को चबाना पसंद था। उस दौर में BOOMER के हर पैकेट के साथ एक टैटू आता था, जिसे बच्चे हाथ पर चिपका कर खुश हो जाते थे।
लेकिन आज मार्केट में BOOMER के पैकेट तो मिलते हैं, लेकिन उसके साथ आने वाले इंट्रस्टिंग टैटू गायब हो चुके हैं। अब न तो कोई बच्चा BOOMER खरीदने के दीवाना होता है और न ही उसमें आने वाले टैटू को हाथ में चिपकाना चाहता है।
SUNDROP का पुराना विज्ञापन
SUNDROP भारत का एक मशहूर कुकिंग ऑयल है, जिसका विज्ञापन 90 के दशक में टेलीविजन पर छाया करता था। उस विज्ञापन में एक छोटा-सा बच्चा पुरियों पर कूदते हुए नजर आता था, जिसका नाम Rohan Shah है।
आज रोहन की उम्र 26 साल है और उन्हें इंडस्ट्री में 15 साल से ज्यादा बिता चुके हैं, इस दौरान उन्होंने 300 से ज्यादा विज्ञापनों में काम किया है। हाल ही में रोहन को फिल्म हैक्ड में देखा गया था, इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि SUNDROP के विज्ञापन में आने वाला वह बच्चा कितना बदल गया है।
गायब हो गया है गत्ते वाला लूडो
90 के दशक में हर घर में गत्ते या दफ्ती वाला लूडो हुआ करता था, जिसे जमीन पर बिछाकर बच्चे गेम का लुफ्त उठाते थे। लेकिन वर्तमान में उस लूडो की जगह मोबाइल लूडो ने ले ली है, जिसे मीलों दूर बैठे दोस्त के साथ भी ऑनलाइन खेला जा सकता है।
एग्जाम का कार्डबोर्ड
जब हम बच्चे हुआ करते थे, तो उस जमाने में स्कूल में एग्जाम देने के लिए कार्डबोर्ड का इस्तेमाल किया जाता था। गत्ते पर एग्जाम शीट रखकर पेपर देने का अपना एक अलग ही मजा होता था, लेकिन अब वह कार्डबोर्ड बोरिंग हो चुका है।
90 के दशक में इस्तेमाल होने वाले कार्डबोर्ड अब स्टेशनरी की दुकान पर देखने के लिए भी नहीं मिलते हैं, क्योंकि आज के बच्चे एडवांस और डिजाइन वाले कार्डबोर्ड का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं।
चले गए रिबन के जमाने
90 के दशक में सरकारी से लेकर प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं के बाल खास तरह के रिबन से बंधे होते थे, जिसके बाद ही उन्हें स्कूल में एंट्री दी जाती थी। उस दौर में लड़कियाँ लाल, सफेद या फिर नीले रंग के रिब्बन से दो चोटियाँ बाँधकर स्कूल जाती थी। लेकिन आज के एडवांस जमाने में स्कूल ड्रेस के साथ कोई भी हेयर स्टाइल चल जाता है।
अब छतों पर नहीं लगता है एंटिना
90 के दशक में हर घर की छत पर एक अलग तरह का एंटिना नजर आता था, जो एक तार की मदद से सीधा टीवी से जुड़ा होता था। उस एंटिना का कनेक्शन सैटेलाइट से होता था, जिसकी मदद से टीवी पर दूरदर्शन का नेटवर्क आता था।
लेकिन बदलते वक्त के साथ घर की छतों पर लगा एंटिना उतर गया और उसकी जगह एडवांस सैटेलाइट की छतरियों ने ले ली। अब तो कई घरों में फायर टीवी के जरिए ऑनलाइन प्रोग्राम देखे जाते हैं, ऐसे में 90 के दशक का एंटिना और चैनल बदलने वाला बटन पूरी तरह से गायब हो चुका है।
मोबाइल पर नहीं आते हैं SMS
आज हर व्यक्ति के पास स्मार्ट मोबाइल फोन है, जिसमें तरह-तरह के एप मौजूद हैं। स्मार्ट फोन की मदद से व्यक्ति व्हाट्स एप और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ही मैसेज का आदन प्रदान करता है, जबकि 90 के दशक में यह काम SMS के जरिए पूरा किया जाता था।
बदल गई हाजमोला की पैकिंग और गोलियाँ
मुंह का स्वाद बदलना हो या फिर खाने को पचाना, हाजमोला की सिर्फ एक गोली इस काम को पूरा कर देती है। 90 के दशक में हाजमोला हर दुकान और गली मोहल्ले में मिल जाता था, जिसकी पैकिंग अलग थी और उसमें गोलियाँ भी ज्यादा आती थी।
लेकिन आज हाजमोला गिनी चुनी दुकानों पर ही मिलता है, जबकि उसकी पैकिंग भी पूरी तरह से बदल कर छोटी कर दी गई है। इतना ही नहीं अब हाजमोला के पैकेट में सिर्फ 4 गोलियाँ ही आती हैं, जो चंद मिनटों में खत्म हो जाती है।
अब नहीं मिलता है गुरु चेला
गुरू चेला का रंगीन पैकेट और उसके अंदर आने वाली खट्टी मीठी गोलियों का स्वाद शायद ही 90 के दशक का कोई बच्चा भूल पाया होगा, लेकिन अब यह प्रोडक्ट सिर्फ हमारी यादों में ही जिंदा है। वर्तमान में बाज़ार में इतनी तरह की चीजें आ चुकी हैं कि गुरु चेला बनाने वाली कंपनी ने इस प्रोडक्ट को बनाना ही बंद कर दिया है, इसलिए न तो अब गुरु चेला बिकता है और न ही उसके पैकेट को उल्टा सीधा करके खेल खेला जाता है।
15 अगस्त में नहीं मिलते हैं लड्डू
90 के दशक में 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे कार्यक्रमों को स्कूल में बहुत ही धूमधाम और नाच गाने के साथ मनाया जाता था, जबकि आखिर में सभी बच्चों को बूंदी लड्डू बांटे जाते थे।
लेकिन आज के दौर में 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन स्कूलों में छुट्टी होती है, जबकि उससे सम्बंधी कार्यक्रम एक दिन पहले ही सेलिब्रेट कर लिया जाता है। लेकिन इस कार्यक्रम के दौरान न तो बच्चों को लड्डू दिए जाते हैं और नहीं पहले ही तरह धूमधाम होती है।
खत्म हो गया है ANNUAL FUNCTION का चलन
आज के एडवांस जमाने में स्कूलों में अलग-अलग तरह के प्रोग्राम होते हैं, जबकि 90 के दशक में स्कूलों में ANNUAL FUNCTION मनाने का चलन प्रचलित था। इस दिन स्कूल में नाच गाना और साल भर अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों को पुरस्कार दिया जाता था।
लेकिन आज स्कूलों में ANNUAL FUNCTION का चलन खत्म हो चुका है, क्योंकि स्कूल प्रशासन अतिरिक्त खर्च से बचने की कोशिश करता है। ऐसे में बच्चों को प्रोत्साहित करने वाले प्रोग्राम खत्म हो चुके हैं और उनकी जिंदगी मोबाइल में कैद हो चुकी है।
गायब हो गए रसना और रूअफजा
90 के दशक में घर में मेहमान आने पर रसना और रूअफजा सर्व किया जाता था, जबकि यह दोनों ड्रिंक्स बच्चों की हर पार्टी जान हुआ करते थे। लेकिन आज रसना और रूअफजा की जगह कोल्ड ड्रिंक और पैकेट बंद जूस सर्व किए जाते हैं, जो सेहत के लिए हानिकारक भी होते हैं।
सफेद यूनिफॉर्म का घटता ट्रेंड
वर्तमान में ज्यादातर स्कूलों की सिर्फ एक ड्रेस हुआ करती है या फिर बच्चों को सोसाइटी के नाम पर चार अलग-अलग ग्रुप में बांट दिया जाता है, जिसकी वजह से उन्हें बुधवार और शनिवार को हरे, नीले, लाल या फिर पीले रंग की टी-शर्ट पहनकर स्कूल जाना होता है।
लेकिन 90 के दशक में स्कूलों में इस तरह का चलन नहीं था, बल्कि उस दौर में बुधवार और शनिवार को हर बच्चे को सफेद रंग की फुल यूनिऑर्म में स्कूल आना होता था। हालांकि अब यह चलन पूरी तरह से खत्म हो चुका है।
अब पॉकेट मनी में नहीं मिलते हैं 2 रुपए
90 के दशक में हर बच्चे को पॉकेट मनी के रूप में 2 रुपए मिलते थे, जो उनके माता-पिता द्वारा सैलेरी वाले दिन दिए जाते थे। उस दौर के बच्चे उन्हीं 2 रुपयों में अपनी जरूरत की चीजें खरीद लिया करते थे, जिससे उन्हें बहुत खुशी मिलती थी। लेकिन आज हजारों रुपए खर्च करके भी बच्चे उस 2 रुपए वाली खुशी को अनुभव नहीं कर सकते हैं।
जन्मदिन की पार्टी को लेकर उत्सुकता
आज के एडवांस जमाने में छोटे से छोटे बच्चे की बर्थ-डे पार्टी के लिए हजारों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं, लेकिन 90 के दशक में बर्थ-डे सेलिब्रेट करने का एक अलग ही क्रेज होता था। उस दौर के बच्चे 1 महीने पहले ही जन्मदिन मनाने की तैयारियों में जुट जाते थे और माता-पिता बहुत ही कम पैसों में एक अच्छी पार्टी का इंतजाम कर देते थे।