How Cockroaches Survived at the time of Destruction : एक समय ऐसा भी था, जब पृथ्वी पर विशालकाय शरीर वाले डायनासोर्स राज किया करते थे। इस प्रजाति के जीव न सिर्फ शारीरिक रूप से बड़े थे, बल्कि वह अन्य जीवों के मुकाबले काफी ज्यादा खतरनाक और खूंखार भी हुआ करते थे।
लेकिन आज से 6.6 करोड़ साल पहले पृथ्वी से एक उल्कापिंड (Asteroid) टकराया था, जिसके परिणामस्वरूप धरती से डायनासोर्स (Dinosaurs) की प्रजाति का अंत हो गया था। इस महाविनाश में पृथ्वी पर मौजूद लगभग 80 प्रतिशत जीवन पूरी तरह से खत्म हो गया था, ऐसे हालातों में कोकरोच (Cockroach) एक ऐसा जीव था जिसने विपरीत परिस्थितियों में खुद को जीवित रखने की कला सीख ली थी।
जब धरती से टकराया था उल्कापिंड
आज पृथ्वी पर अनेकों प्रकार का जीवन मौजूद है, जो बीतते वक्त के साथ बदलता रहा है। लेकिन आज से 6.6 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर छोटे आकार के जीवों के अलावा कई विशालकाय जीवों की प्रजातियां निवास किया करती थी, जिसमें से डायनासोर (Dinosaurs) सबसे अहम जीव हुआ करता था।
इस प्रजाति में धरती में चलने वाले डायनासोर (Dinosaurs) से लेकर आसमान में उड़ने वाले डायनासोर्स (Dinosaurs) शामिल थे, जिनमें से कुछ शाकाहारी हुआ करते थे तो वहीं कुछ डायनासोर्स दूसरे जीवों का शिकार करके अपनी भूख मिटाया करते थे। ऐसे में 6.6 करोड़ साल पहले मैक्सिको की खाड़ी के पास एक उल्कापिंड धरती से टकरा गया था, जिससे निकलने वाली गर्म रेडिएशन ने डायनासोर्स के साथ साथ कई स्थलीय जीव पल भर में खत्म हो गए थे।
लेकिन इस महाविनाश में जीवों की कुछ प्रजातियां बिल्कुल सुरक्षित बच गई थी, क्योंकि यह जीव जमीन के अंदर निवास करते थे। इन्हीं जीवों में से एक था कोकरोच, जो आज आपको कीचन से लेकर बॉथरूम में अलग अलग जगहों पर चलते हुए दिखाई देता है। लेकिन यहां सवाल खड़ा होता है कि आखिर कोकरोच ने खुद को इस महाविनाश से कैसे बचाया होगा। ये भी पढ़ें – सिर्फ मुर्दाखोर ही नहीं होता गिद्ध, पर्यावरण को कई संकटों से भी बचाता है, जानिए गिद्ध से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी
महाविनाश में बच गया था कोकरोच
पृथ्वी पर आज से 6.6 करोड़ साल पहले हुए महाविनाश से बच निकलने में कोकरोच (Cockroach) के सपाट शरीर और छोटे की अहम भूमिका थी, जिसकी वजह से वह उल्कापिंड के टकराव से पैदा होने वाली गर्म रेडिएशन के संपर्क में आने से बच गया था। इसके अलावा कोकरोच जमीन के अंदर गहराई तक जाने की क्षमता रखते हैं, जहां तक उल्कापिंड से टकराव के बाद उत्पन्न होने वाली रेडिएशन का पहुंच पाना लगभग असंभव होता है।
ऐसे में धरती से उल्कापिंड की टक्कर के बाद तापमान इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उसकी गर्मी की वजह से कई स्थलीय जीव मरने लगे थे, लेकिन उस परिस्थिति में कोकरोच ने खुद को जिंदा रखने के लिए भूकंप की वजह से जमीन में बनी दरारों का सहारा लिया था। यह छोटा सा जीव गर्म रेडिएशन से बचने के लिए मिट्टी की दरारों के बीच गहराई में छिप गया था, जहां इसके शरीर को जीवित रहने के लिए पर्याप्त तापमान मिल रहा था।
उस महाविनाश की वजह से पृथ्वी पर मौजूद लाखों पेड़ पौधों की प्रजातियां भी खत्म हो गई थी, जिसकी वजह से जीवित बचे जानवरों को खाने की कमी का सामना करना पड़ा था। ऐसे में कोकरोच ने जिंदा रहने के लिए सड़े गले मांस का सेवन करना शुरू कर दिया था, क्योंकि उस वक्त पृथ्वी पर मृत जानवरों के अवशेष ही उपलब्ध थे। ये भी पढ़ें – हरे रंग के कपड़े से क्यों ढकी जाती है निर्माणाधीन बिल्डिंग, जानिए इसके पीछे की वजह
सुरक्षा कवच की वजह से बढ़ी थी कोकरोच की आबादी
इस तरह कोकरोच (Cockroach) की प्रजाति ने आपदा में अवसर की तलाश करते हुए खुद को जीवित रखा, जिसके बाद धीरे धीरे उनकी संख्या में तेजी आने लगी थी। इसका एक अहम कारण यह भी था कि कोकरोच के अंडे एक कवच नुमा थैली के अंदर मौजूद होते हैं, जिसे ओदेका कहा जाता है।
कोकरोच (Cockroach) के अंडों का कवच देखने में सूखे दानों के बॉक्स की तरह दिखाई देते हैं, जिसके अंदर उनके अंडे लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं। इतना ही नहीं कोकरोच के अंडों को कोई अन्य जीव आसानी से अपना भोजन भी नहीं बना सकता है, क्योंकि उसका बाहरी कवच बहुत ज्यादा सख्त होता है और उसे खोलने के दौरान अक्सर दूसरे जीव जख्मी हो जाते हैं।
ऐसे में महाविनाश के बाद कोकरोच (Cockroach) ने अपनी प्रजाति को आगे बढ़ाने के लिए इस सुरक्षा कवच का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया था, जिससे उनकी आबादी तेजी से बढ़ने लगी थी। इस तरह धीरे धीरे पृथ्वी का स्वरूप दोबारा से सामान्य होने लगा और यहां एक बार फिर जीवन की शुरुआत हुई थी, जिसके बाद कोकरोच (Cockroach) मिट्टी के अंदर रहने के साथ साथ जमीन में चलते फिरते अपना जीवन यापन करने लगे थे। ये भी पढ़ें – ये है दुनिया के 5 सबसे अद्भुत आईलैंड्स, जहाँ चलता है सिर्फ जानवरों का राज