टेंट में रहें, कई-कई रात भूखे पेट भी सोए। पेट भरने के लिए राम लीला में पानीपुरी तक बेचा और किया आईपीएल में डेब्यू। ये कहानी है, 18 साल के यशस्वी जायसवाल की, जो यूपी के भदोही से मुंबई पहुँचे और वहाँ संघर्ष करते हुए आज आईपीएल में डेब्यू किया।
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जब यशस्वी 11 साल के थे, तब वह मुंबई के आज़ाद मैदान ग्राउंड के मुस्लिम यूनाइटेड क्लब में टेंट रहते थे और वह भी पूरे तीन साल। लेकिन कुछ लोगों ने उन्हें वहाँ से भी हटा दिया। जिसके बाद वह एक डेयरी शॉप पर रहने लगे। इन तकलीफ़ो में भी रहते-रहते उनके दिलों-दिमाग में सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही चीज़ रहती और वह ये कि “भारत के लिए मुझे क्रिकेट खेलना है।“
यशस्वी की उम्र अब 18 साल हो गई है और वह मिडिल ऑर्डर के बैट्समैन हैं। जब वह बल्लेबाजी करते हैं तो बहुत से एक्सपर्ट ये कहते हैं कि एक दिन ज़रूर ये बड़ा प्लेयर बनेगा और वह श्रीलंका में होने वाले अंडर-19 टीम में भाग लेने के लिए तैयार भी हैं, और मैच में बेहतर प्रदर्शन के लिए भी बहुत उत्सुक हैं।
यशस्वी कहते हैं कि “मैं अपनी लाइफ़ में इतना प्रेशर झेल चुका हूँ कि अब ये सारी चीज़ें मुझे मज़बूत बनाती हैं। वह कहते हैं कि मैं रन भी बना सकता हूँ और विकेट भी ले सकता हूँ, लेकिन इससे भी ज़्यादा चिंता का विषय ये होता है उनके लिए की उन्हें शाम और सुबह का खाना मिलेगा या नहीं और उसकी व्यवस्था कैसे की जाए?”
मुंबई अंडर-19 टीम के कोच सतीश सामंत का कहना है कि “यशस्वी में एक असाधारण खेल भावना है और दृढ़ शक्ति है।“
मूल रूप से यूपी के भदोही के रहने वाले यशस्वी के पिता एक छोटी-सी दुकान चलाते हैं। अपने दो भाइयों में बड़े यशस्वी ने भदोही से मुंबई तक का सफ़र सिर्फ़ क्रिकेट खेलने के लिए तय किया है। उनके पिता ने यशस्वी को उसके अंकल संतोष के साथ मुंबई भेज दिया, जो वर्ली में एक किराए के मकान में रहते हैं। लेकिन, लेकिन घर छोटा होने के कारण यशस्वी का अपने अंकल के साथ रहना मुश्किल था। तब संतोष (जो ख़ुद मुस्लिम यूनाइटेड क्लब में मैनेजर हैं) ने मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के मालिक से बात की कि संतोष को टेंट में रख लें। तीन सालों में टेंट ही उनका घर बन गया था।
यशस्वी पूरा दिन क्रिकेट खेलते थें। रात होते ही थक कर सो जाते और एक दिन ये कहते हुए उनका पूरा सामान फेंक दिया गया कि वह कुछ नहीं कर सकते, उनकी सहायता नहीं करते, सिर्फ़ सोते हैं। तब मजबूरी में उन्हें काल्बादेवी डेयरी में सोना पड़ा। “
यशस्वी कहते हैं कि “वो नहीं चाहते हैं कि उनकी ये दर्द भरी दास्तां उनके भदोही में रह रहे घर वालों को पता चले। क्योंकि पता चलने के बाद वह उसे वापस बुला लेंगे और क्रिकेट का कैरियर ख़त्म हो जाएगा।” उनके पिता कभी-कभी उन्हें पैसे भेजते हैं, जो कि पर्याप्त नहीं होता।
कैसे किया गुजारा?
आज़ाद मैदान में होने वाली राम लीला में पानीपुरी और फल बेचने के दौरान उन्हें कई रात ग्राउंड्समैन के साथ ही रहना पड़ा और कभी-कभी उससे झगड़ा हो जाने के कारण भूखे पेट भी सोना पड़ा। यशस्वी कहते हैं, “रामलीला के दौरान मेरी अच्छी खासी कमाई हो जाती है। मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरी टीम पानीपुरी खाने मेरे पास आए। कभी-कभी वह आ जाते हैं और मुझे उन्हें सर्व करना अच्छा नहीं लगता।” वह बड़े लोगों के साथ भी क्रिकेट खेल कर हफ़्ते के 200-300 रुपये कमा लेता है।
कादमवड़ी में एक छोटे से चॉल में रहने वाले यशस्वी कहते हैं कि गर्मियों में प्लास्टिक के टेंट में रहना बहुत मुश्किल होता है और प्लास्टिक से निकलनी वाली गर्मी सहन करना तो और मुश्किल होता है। कई बार वह अपना बिस्तर लेकर बाहर आ जाते थे और ग्राउंड में सो जाते थे। लेकिन एक बार आँख में एक कीड़े के काटने के बाद, गर्मी के बावजूद वह टेंट में ही सोते थें।
यशस्वी को वह दिन भी अच्छे से याद हैं, जब वह अपने टीममेट्स के साथ लंच के लिए जाते, ये जानते हुए कि उनके पास पैसे नहीं हैं और उनसे कहते कि पैसे नहीं हैं, लेकिन भूख है। एक-दो टीममेट्स चिढ़ाते, लेकिन वह गुस्से से जवाब भी नहीं देते थें।
उनके लिए भारत की नेशनल क्रिकेट टीम में जगह बनाना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। ये संघर्ष यशस्वी जयसवाल जैसे बच्चों के लिए और बड़ा हो जाता है, जो सामाजिक, आर्थिक संकट से उबरते हुए कोशिश करते हैं। यशस्वी का यहाँ तक पहुँचना वैसे बच्चों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं जो हर समय पैसों और अपनी परिस्थितियों का रोना रोते हैं।
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