वर्षों पहले हमारे समाज में ऐसी मान्यता थी कि महिलाएँ सिर्फ़ घर का ही कामकाज संभाल सकती हैं। शिक्षा तो बहुत दूर की बात थी, उन्हें सिर्फ़ घर के सजावटी वस्तुओं के तौर पर लिया जाता था। उनका समाज में उतना योगदान नहीं होता था जितना पुरुषों का होता था और वैसे ज़माने में अगर कोई शादीशुदा महिला घर से बाहर निकल कर अपने देश ही नहीं बल्कि विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने जाती है तो यह वाकई हमारे देश के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है।
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उन्हें कितनी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा होगा जब उन्होंने विदेश जाकर पढ़ाई करने का फ़ैसला लिया होगा। लोग यह सोच कर हैरान परेशान होंगे कि कैसे एक शादी-शुदा हिंदू महिला डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए विदेश जा सकती है।
आनंदी गोपाल जोशी (Anandi Gopal Joshi) उस सशक्त महिला का नाम है जिन्होंने यह हिम्मत दिखाई। उन्होंने समाज के आलोचनाओं की बिल्कुल परवाह नहीं की। अपने इस हिम्मत, लगन के कारण ही वह भारत की पहली महिला डॉक्टर बन पाई। उन्होंने अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों पर दर्ज करा लिया और इसी के साथ वह हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई।
आनंदी बाई (Anandibai) का जन्म 31 मार्च 1865 में पुणे के एक रुढ़िवादी हिंदू-ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम यमुना था। वह एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती थी जिसमें लड़कियों को एकदम कड़ाई से घर में रखा जाता था और ज़्यादा पढ़ाना लिखना ज़रूरी नहीं समझा जाता था। यही वज़ह है कि सिर्फ़ 9 साल की उम्र में ही उनसे 20 साल बड़े गोपाल विनायक जोशी से उनका विवाह कर दिया गया। इसलिए शादी के बाद उनका नाम आनंदी गोपाल जोशी रख दिया गया।
आगे चलकर आनंदी ने एक पुत्र को जन्म दिया और उस समय उनकी आयु 14 वर्ष थी। जब उनके बेटे का जन्म हुआ तब वह शारीरिक रूप से बहुत ही कमजोर था और उसे ठीक ढंग से चिकित्सा नहीं मिलने के कारण मात्र 10 दिनों में ही उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने आनंदी को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया। कुछ दिनों बाद जब आनंदी ने ख़ुद को संभाला तब उन्होंने रोने के बजाय कुछ करने का फ़ैसला लिया और उन्होंने यह प्रण लिया कि वह एक डॉक्टर बनेंगी और डॉक्टर बनने के बाद, जिन लोगों की चिकित्सा के अभाव में समय से पहले मृत्यु हो जाती है उनका इलाज़ करेंगी।
उनके इस फैसले से घर के साथ पूरे समाज में हलचल-सी हो गई और लोग उनका विरोध करने लगे। लेकिन इन विरोधों के बीच अगर कोई था जिन्होंने उनका सहयोग किया, वह थे उनके पति गोपाल। आनंदी के पति गोपाल विनायक ख़ुद भी एक प्रगतिशील विचारक थे जो महिला शिक्षा को समर्थन देते थे। उन्होंने ही आनंदी को अंग्रेज़ी संस्कृत और मराठी जैसे भाषा को पढ़ाया। कई बार तो आनंदी को अपने पति से नहीं पढ़ने के वज़ह से डांट भी सुनना पड़ा।
आपको बता दें तो भारत में उस समय एलोपैथिक डॉक्टरी के पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं थी इसलिए आनंदी को डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए विदेश जाना पर है। अपने उपन्यास “आनंदी गोपाल” में श्री जनार्दन जोशी ने लिखा है कि “आनंदी के प्रति गोपाल की भी एक ज़िद थी कि वह अपनी पत्नी को ज़्यादा से ज़्यादा शिक्षित कराएँ। इसके लिए उन्हें पुरातनपंथी ब्राह्मण-समाज का तिरस्कार भी झेलना पड़ा। जो काम पुरुषों के लिए भी असंभव था यानी विदेश जाकर पढ़ाई करना तब गोपाल ने अपनी पत्नी को विदेश भेजकर उन्हें पहली भारतीय महिला डाॅक्टर बनाने का इतिहास रच दिया।”
वो साल 1883 का था जब आनंदीबाई ने अमेरिका (पेनसिल्वेनिया) पहुँची और इसी के साथ वह भारत की पहली हिंदू महिला भी बन गई जिन्होंने विदेश में क़दम रखा था। आनंदी ने 11 मार्च 1986 को एमडी की डिग्री हासिल कर भारत लौटी, उस समय उनकी उम्र 19 साल थी। जब उन्होंने मेडिकल की डिग्री हासिल की तब उनके इस महान कार्य पर महारानी विक्टोरिया उन्हें बधाई पत्र लिखी और जब वह भारत लौटी तब उनका भव्य स्वागत किया गया, बिल्कुल एक नायिका की तरह।
इस प्रकार उन्होंने अपने डॉक्टर बनने के सपने को तो पूरा किया। लेकिन आनंदी जब भारत लौटी उसके कुछ ही दिनों बाद उन्हें टीबी जैसी खतरनाक बीमारी हो गई और 26 फरवरी 1887 को सिर्फ़ 22 साल की छोटी उम्र में ही उनका निधन हो गया। इस तरह आनंदी अपने जिस उद्देश्य को पूरा करने के लिए डॉक्टर बनी थी वह उस उद्देश्य में को पूरा नहीं कर सकी। लेकिन वह मरकर भी अमर रहे आज भी लोग पहली महिला डॉक्टर के रूप में आनंदी भाई को जानते हैं। उन्होंने वह कर दिखाया जो शायद ही कोई और महिला कर पाती।
कैरोलिन वेलस ने आनंदीबाई के जीवन पर 1888 में एक बायोग्राफी भी लिखी और उसी उपन्यास पर आगे चलकर “आनंदी गोपाल” नाम से एक सीरियल बनाया गया जिसका प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया। उन्होंने लोगों के दिल में अपने लिए इतना ज़्यादा सम्मान भर दिया की उनके नाम पर शुक्र ग्रह पर तीन बड़े-बड़े गड्ढे हैं। इस ग्रह के तीनों गड्ढों का नाम भारत की प्रसिद्ध महिलाओं के नाम पर ही है। उनमें से एक जोशी क्रेटर है, जो आनंदी गोपाल जोशी के नाम पर किया गया है।
इस तरह इतनी कम उम्र में भी लोगों के दिलों पर राज कर गई आनंदी जोशी। उन्होंने इतनी छोटी उम्र में ही सो कर दिखाया जो शायद ही कोई अनुभवी व्यक्ति कर पाता। उन्होंने समाज में एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया।