Home'रत्ती भर' मुहावरा हर कोई इस्तेमाल करता है, पर शायद ही कोई...

‘रत्ती भर’ मुहावरा हर कोई इस्तेमाल करता है, पर शायद ही कोई जानता होगा इसका मतलब

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

भारतीय संस्कृति में मुहावरे और कहावतों का बहुत प्रचलन है। क्योंकि हमें किसी भी बात को सीधी तरह से कहने में ज़्यादा मज़ा नहीं आता जबकि उसी बात को मुहावरे और कहावत के साथ कहा जाए तो कहने वाले और सुनने वाले दोनों ही व्यक्तियों पर ज़्यादा असर होता है।

हम भारतीय लोग अक्सर बातचीत में एक मुहावरे का उपयोग करते हैं:-‘रत्ती भर‘। यह मुहावरा आपने बहुत से लोगों से सुना होगा और आपने भी कई बार बोला होगा। आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा ‘इसे तो रत्ती भर भी लाज नहीं है‘ या फिर ‘तुम्हें तो रत्ती भर भी परवाह नहीं है।’ पर क्या आपको पता है कि यह विशेष शब्द ही इस मुहावरे में क्यों बोला जाता है और क्या होता है इसका अर्थ ? हम लोग सोचते हैं कि रत्ती शब्द का अर्थ थोड़ा-सा या जरा-सा होता है, लेकिन नहीं हम इस मुहावरे का उपयोग थोड़ा-सा या जरा-सा शब्दों के स्थान पर ज़रूर करते हैं लेकिन इस शब्द का मतलब बिल्कुल अलग होता है।

रत्ती एक दानों वाला पौधा होता है

शायद आप नहीं जानते होंगे पर असल में रत्ती एक तरह का पौधा होता है, जिसमें लाल और काले रंग के सुंदर दाने होते हैं। आपको सुनकर हैरानी ज़रूर हो रही होगी पर यही सच है कि हम सभी वर्षों से जो मुहावरा उपयोग करते हुए आए हैं ‘रत्ती भर’ , वह असल में छोटे-छोटे दानों वाला एक पौधे का ही नाम है।

यदि आप इस के दानों को छूकर देखेंगे तो आपको प्रतीत होगा कि यह दाने मोतियों की तरह कठोर होते हैं। रत्ती के यह दाने भी मटर के दानों की तरह एक फली में बंद होते हैं। जब यह पूरी तरह से पक जाता हैं तब पेड़ों से गिर जाता है। यह पौधा अधिकतर पहाड़ों पर ही पाया जाता है। इस पौधे को आम भाषा में ‘गूंजा’ कहते हैं।

पहले सोना मापने के लिए किया जाता था रत्ती का उपयोग

पुराने समय में माप तोल के लिए सही पैमाना नहीं होता था। इसलिए छोटी-छोटी चीजों या सोने अथवा गहनों के वज़न को मापने के लिए रति का इस्तेमाल किया जाता था। सात रत्ती सोना या मोती माप के चलन की शुरुआत मानी जाती है। पुराने समय से ही केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप में रत्ती का इस्तेमाल होता आ रहा था।

आज के ज़माने में हम सभी नई-नई मापन विधियाँ उपयोग करते हैं परंतु फिर भी यह प्राचीन विधि कई आधुनिक विधियों से अधिक भरोसेमंद और अच्छी मानी जाती है। अगर आप अपने पास के किसी भी सुनार या जौहरी के पास जाकर इस विधि के बारे में पूछेंगे तो मैं आपको इसके बारे में बताएंगे।

मुंह के छालों का भी इलाज़ करता है

कहा जाता है कि यदि रत्ती के पत्तों को चबाया जाए तो मुंह में होने वाले सभी छाले ठीक हो सकते हैं। इस पौधे की जड़ें भी काफ़ी सेहतमंद मानी जाती है। बहुत से लोगों के द्वारा ‘रत्ती’ , ‘गूंजा’ पहना भी जाता है। कई लोग इसकी अंगूठी बनवाकर पहनते हैं तो कई माला में पिरो कर इसे पहनना पसंद करते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यह पौधा सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है, अतः इसे पहनना अच्छा रहता है।

सदैव एक जैसा ही होता है इसका भाड़

इस पौधे के बारे में एक और हैरानी की बात यह है कि इसकी फली की उम्र चाहे कितनी भी क्यों ना हो, परन्तु जब आप इसके अंदर विद्यमान बीजों को लेकर उनका वज़न करेंगे, तो आपको सदैव वह वज़न एक जितना ही मिलेगा। यहाँ तक कि इसमें 1 मिलीग्राम जितना भी अंतर कभी नहीं होता है।

आजकल की बनाई गई कृत्रिम मापक यंत्र और मशीनें आपको कभी-कभी गड़बड़ी होने पर ग़लत आंकड़े भी बता सकती हैं, परंतु रत्ती से मापा गया वज़न कभी ग़लत नहीं होता। आप पूरे भरोसे के साथ इसे वज़न के लिए उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि कुदरत द्वारा बनाये इन रत्ती के बीजों का वज़न कभी जरा-सा भी इधर से उधर नहीं हो सकता है। यदि हम आजकल की वज़न मापक मशीन के अनुसार देखें तो एक रत्ती करीब 0.121497 ग्राम की होती है।

यह भी पढ़ें
News Desk
News Desk
तमाम नकारात्मकताओं से दूर, हम भारत की सकारात्मक तस्वीर दिखाते हैं।

Most Popular