भारत में पहले जहाँ विधवा विवाह को एक पाप माना जाता था, वही अब ये प्रचलन काफ़ी तेजी से बढ़ रहा है। आज की यह कहानी एक ऐसी ही विधवा औरत की है, जिसकी ख़ुद की बेटी ने ही उसकी दूसरी शादी कराकर समाज में एक शिक्षित महिला होने का उदाहरण पेश किया है।
जयपुर की रहने वाली संहिता (Sanhita) जो फिलहाल गुड़गांव (Gurgaon) में एक निजी कंपनी में नौकरी कर रही हैं। उन्होंने अपनी ही विधवा माँ की ज़िन्दगी दोबारा खुशियों से भर दिया है।
दरअसल मई 2016 में हार्ट अटैक के कारण संहिता के पिता की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद से उनकी माँ गीता अग्रवाल, जो की पेशे से एक शिक्षिका हैं, वह एकदम अकेली और उदास-सी रहने लगी थीं। संहिता भी अपनी नौकरी के करें गुड़गांव आ गई और उसके बाद उनकी माँ तो और अकेली हो गयी।
संहिता से अपनी माँ की ये स्थिति देखी नहीं गई और उन्होंने अपनी माँ को बिना बताए मैट्रिमोनियल साइट पर उनकी प्रोफाइल बना दी, जिसके बाद बांसवाड़ा के रहने वाले ‘रेवेन्यू इंस्पेक्टर’ के. जी. गुप्ता ने उनसे शादी को लेकर सम्पर्क किया और फिर उनकी बात आगे बढ़ी।
‘रेवेन्यू इंस्पेक्टर’ के. जी. गुप्ता जिनकी पत्नी का 2010 में कैंसर से निधन हो गया था। कुछ समय तक बातचीत होने के बाद उन्होंने अपनी माँ को के.जी. गुप्ता से मिलवाया और उन्होंने भी अपने बारे में सब कुछ बताया। फिर जब संहिता को लगा की उनकी माँ और उस शख़्स के बीच अच्छे रिश्ते बन सकते हैं तो उन्होंने उनकी शादी की बात चलाई। उनकी शादी भी हो गई जिससे उनकी माँ की ज़िन्दगी में जीने की एक नई वज़ह मिल गई। एक नए साथी के रूप में दोनों को एक सहारा भी मिल गया।
संहिता ने कहा की “जब कभी हमलोग दुखी होते हैं तो माँ होती है हमें सम्भालने के लिए, पर अगर माँ दुखी होती है तो उसे भी सम्भालने के लिए भी कोई न कोई घर में होना चाहिए।”
हमारी भी शुभकानाएँ है उनकी माँ के साथ की वह अब हमेशा अपनी ज़िन्दगी में खुश रहे और भगवान सभी को संहिता जैसी बेटी दें।