अब चाहे गाँव हो या शहर कहीं की महिला है बैठने वाली नहीं है। अब हर जगह वह अपना योगदान दे रही हैं और बात अगर कृषि की हो तो इस क्षेत्र में भी वह अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। एक ऐसे ही महिला हैं जिन्हें कृषि क्षेत्र में काफ़ी प्रसिद्धि मिल चुकी है और वह जैविक तरीके से खेती कर काफ़ी लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।
दसवीं तक ही पढ़ाई की हैं रूबी
“रूबी पारीक” नाम की यह महिला सिर्फ़ दसवीं तक ही अपनी पढ़ाई पूरी की हैं और जब यह ओम प्रकाश पारीक से शादी करने के बाद अपने ससुराल आईं तब वहाँ पूरी तरह से खेती गृहस्ती का माहौल था। इनके ससुराल के लोग रासायनिक तरीके से खेती करते थे। धीरे-धीरे करके इन्हें भी खेती की जानकारी होने लगी।
जैविक खेती के लिए ली ट्रेनिंग
बात 2008 की है जब इनके दोसा क्षेत्र में केवीके के कुछ लोग आएँ और उन लोगों ने इनसे जैविक खेती करने के लिए कहा। उसके बाद इन्होंने जैविक खेती करने के लिए कुछ दिनों की ट्रेनिंग भी ली ताकि इन्हें अच्छी जानकारी मिल सके। ट्रेनिंग लेने के बाद रूबी ने यह फ़ैसला कर लिया कि जब वह खेती करेंगी तो जैविक खेती करेंगी और साथ ही बाक़ी लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगी।
20 बीघा ज़मीन पर शुरू की जैविक खेती
तब इन्होंने 2008 में ही अपने 20 बीघा ज़मीन पर जैविक खेती करने की शुरुआत की और सबसे पहले इन्होंने बाजरा, चना, मूंगफली, गेहूँ, ज्वार, जौ, इत्यादि उगाए। तब इन्होंने पाया कि रासायनिक खेती के मुकाबले जैविक खेती में ज़्यादा फायदे होते हैं। वैसे शुरुआत में तो किसी भी चीज के जानकारी के अभाव में कम फायदे होते हैं, लेकिन जैसे-जैसे आप की जानकारी बढ़ती जाती है मुनाफे भी बढ़ते जाते हैं।
यह अपने खेतों के लिए पूरी तरह से गोबर से खाद बनाती हैं और उसे खेती के लिए इस्तेमाल करती हैं जब उनके यहाँ केवीके के कुछ सदस्य आए थे तब उन्होंने एक किसान क्लब संगठन बनाया। जिसका मुख्य उद्देश्य था कि सभी किसान एक साथ एकत्रित होकर एक दूसरे की मदद करें।
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बनी किसान क्लब की अध्यक्ष
केवीके वालों ने रूबी को जैविक खेती के बारे में अधिक जानकारी होने के कारण किसान क्लब का अध्यक्ष बना दिया। जब रूबी को लगा कि इनके उपर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया है तब इन्होंने सोचा कि मुझे ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को जैविक खेती के लिए एक साथ जोड़ना चाहिए और यही वज़ह है कि आज इनके साथ लगभग 1 हज़ार से भी ज़्यादा किसान जुड़ चुके हैं।
रूबी अपने पति के साथ मिलकर जैविक खेती करते हैं और इसके साथ ही वर्मीकंपोस्ट यूनिट की स्थापना भी की है। जितने भी किसान जैविक खेती से जुड़े हुए हैं वह इस यूनिट के माध्यम से लाभान्वित होते हैं। ये वर्मीकंपोस्ट की मदद से ख़ुद से उर्वरक भी बनाते हैं और केंचुआ पालन का भी काम करते हैं। ये बताते हैं कि अगर आप वर्मी कल्चर तरीके से उर्वरक बनाते हैं तो यह एक बहुत ही आसान काम है। इसलिए ये लोग इसे बनाने के साथ-साथ दूसरे किसानों को भी सिखाते हैं और अच्छे उर्वरक का प्रयोग कर फसलों के ज़्यादा से ज़्यादा पैदावार करने के तरीके बताते हैं।
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जोला उत्पादन की शुरुआत की
जैविक खेती और वर्मीकंपोस्ट यूनिट के साथ ही एक और तकनीक का निर्माण किया है जिसका नाम है अजोला उत्पादन, जो पशुओं के चारे के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होता है। अजोला को रबी और खरीफ फसलों के बीच से उगाया जा सकता है। इसमें बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है इसलिए यह पशुओं के लिए बेहद लाभकारी होता है। इसे उगाने में बहुत ही कम लागत आती है और पैदावार बहुत अधिक होती है। पशुओं को खिलाने के लिए इसे सूखे चारे में मिलाकर उन्हें दिया जाता है।
हर साल गेहूँ से लगभग 20 लाख रुपए का होता है मुनाफा
इन्होंने जिस किसान उत्पादन संगठन की शुरुआत की उसमें आज 1000 से भी ज़्यादा लोग जुड़ चुके हैं और जैविक खेती कर ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। इन्हें गेहूँ की खेती से हर साल करीब 20 लाख रूपये तक का मुनाफा हो जाता है। पानी की बचत ज़्यादा ज्यादा हो इसलिए ये ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल करते हैं।
इनकी लाइब्रेरी में किसानों को मुफ्त में मिलता है देसी बीज
इन्होंने खेती सम्बंधित एक लाइब्रेरी की भी स्थापना की है जहाँ किसानों को मुफ्त में देसी बीज दिया जाता है। लेकिन इसके लिए एक नियम है कि अगर आप उस लाइब्रेरी से पांच बीज ले गए और आपके खेतों में पैदावार अच्छी हुई तो बदले में आपको लाइब्रेरी के लिए 50 बीज देने पड़ते हैं।
इस तरह इन लोगों ने पूरी तरह से जैविक खेती को अपना लिया है और जैविक खेती से हुए फसलों का सेवन कर एक स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। आप भी अगर खेती करने की सोच रहे हैं तो आप भी जैविक खेती की शुरुआत कर सकते हैं और जी सकते हैं एक स्वास्थ्य जीवन।