Technique of making coal from ash: भारत समेत दुनिया भर कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधनों का खनन तेजी से हो रहा है, जिसकी वजह से यह खनिज तत्व धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर पहुँच गए हैं। ऐसे में एक भारतीय नागरिक ने राख से कोयला बनाने का कारनाम कर दिखाया है, जिससे देश भर में औद्योगिक क्रांति आने की उम्मीद जताई जा रही है।
देश भर में कोयला खदानों से बड़ी मात्रा में कोयला निकाला जाता है, जिसका इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जाता है। ऐसे में कोयला जलाने के बाद राख में तब्दील हो जाता है, लेकिन बिहार में रहने वाले एक शख्स ने राख को ही कोयले में तब्दील कर दिया है।
राख से बनाया कोयला (Technique of making coal from ash)
बिहार (Bihar) के पश्चिमी चंपारण (Pashchim Champaran) में स्थित मंझरिया गाँव (Manjhariya) से ताल्लुक रखने वाले रामेश्वर कुशवाहा (Rameshwar Kushwaha) इन दिनों राख से कोयला बनाने की तकनीक को लेकर देश भर में सुर्खियाँ बटौर रहे हैं, जबकि उनके इस काम को सरकार की तरफ से भी प्रोत्साहित किया गया है।
रामेश्वर कुशवाहा ने राख से कोयला बनाने (Technique of making coal from ash) की मुहिम साल 2012 में शुरू की थी, क्योंकि वह चाहते थे कि गाँव के लोगों को कम खर्च में खाना पकाने के लिए उपयुक्त साधन मिल सके। ऐसे में कोयला एकमात्र प्राकृतिक संसाधन है, जिसका इस्तेमाल बिजली बनाने से लेकर खाना बनाने के लिए किया जाता है।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए रामेश्वर कुशवाहा ने लगभग 8 साल तक राख को कोयले में तब्दील करने की तकनीक पर काम किया, ऐसे में आखिरकार उन्हें इस काम में कामयाबी हासिल हो गई। इतना ही नहीं रामेश्वर कुशवाहा की कोशिश की सरकार ने भी सराहना की है, जबकि उन्हें हर संभव मदद देने का वादा भी किया है।
हालांकि रामेश्वर कुशवाहा ने सरकारी ऑफर को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और राख से कोयला बनाने की तकनीक को अपने नाम पर पेटेंट करवा लिया, ताकि वह अपने इस आइडिया से बिहार के विभिन्न गांवों और कस्बों तक सस्ती बिजली व ईंधन पहुँचा सके। ये भी पढ़ें – भारत की पहली ऑटोमेटिक ईंट मेकिंग मशीन, 1 घंटे में तैयार करेगी 12 हजार ईंटें, देश-विदेश में बढ़ी मांग
राख से कैसे बनता है कोयला? (How is coal made from ash?)
रामेश्वर कुशवाहा कुंडिलपुर के प्राथमिक कृषि सहकरी समिति (पैक्स) में अध्यक्ष के पद पर भी काम कर चुके हैं, इस दौरान उन्होंने ग्रामीण की समस्याओं को बेहद नजदीक से देखा था। रामेश्वर कुशवाहा ने देखा कि गाँव के लोगों के पास बिजली और ईंधन सम्बंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए कोई उपयुक्त साधन नहीं है, लिहाजा उन्होंने राख से कोयला बनाने का फैसला किया।
इसके लिए उन्होंने धान के भूसे, पराली और गन्ने के सूखे पत्तों को इकट्ठा किया और फिर उनके साथ चारकोल ब्रिक्स को मिला दिया था, जिसके बाद इस मिश्रण को कुछ सालों के लिए जमीन में दबाकर छोड़ दिया जाता है। ऐसे में वह सभी चीजें आपस में मिलकर कोयले में तब्दील हो जाती हैं, जिसका इस्तेमाल बिजली बनाने और आग जलाने के लिए किया जा सकता है।
रामेश्वर कुशवाहा की मानें तो प्राकृतिक चीजों से तैयार किए गए इस कोयले को जलाने से प्रदूषण नहीं होता है, जबकि इस कोयले को जलाने पर किसी प्रकार की गंध भी उत्पन्न नहीं होती है। इसके अलावा कोयले को जलाने के बाद उसकी राख को खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे पैदावार दोगुना तक बढ़ सकती है।
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