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पुलिसवाले ने भीख मांगने वाले बच्चों के हाथों में कटोरे की जगह थमाया कलम, किताब, शुरुआत की आपणी पाठशाला

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आज के समय में राजस्थान के चूरू में “पुलिस कॉन्स्टेबल धर्मवीर जाखड़” और “आपणी पाठशाला” किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। धर्मवीर अपनी ड्यूटी के साथ-साथ भीख मांगने वाले बच्चों के हाथों में कटोरे की जगह कॉपी और क़लम थमा और उन्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल बना रहे हैं।

कॉन्स्टेबल धर्मवीर जाखड़ चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के गाँव खारियावास के रहने वाले हैं। वह वर्ष 2011 में राजस्थान पुलिस में भर्ती हुए और पिछले पांच सालों से महिला पुलिस थाना चूरू में पदस्थापित थे।

धर्मवीर जाखड़

कौन है धर्मवीर जाखड़?

उनके इस नेक काम में न केवल पुलिस महकमा ही बल्कि अब तो पूरा चूरू ज़िला अपनी भागीदारी निभा रहा है। साढ़े तीन साल पहले सिर्फ़ 5 बच्चों से शुरू हुई आपणी पाठशाला में वर्तमान समय में 180 छात्र हैं। पुलिस कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़ के मन में झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों की ज़िन्दगी संवारने का विचार कैसे आया और उसे किस तरह से आपणी पाठशाला में बदला गया। आइए जानते हैं।

28 दिसम्बर 2015 की सुबह कंपकंपा देने वाली सर्दी में पुलिस लाइन के ए ब्लॉक में अक्सर कुछ बच्चे भीख मांगने आया करते थे। एक दिन इन बच्चों के हांथों में रोटी के चंद टुकड़े और ठिठुरते बदन पर चंद कपड़े देख उनसे भीख मांगने की वज़ह को कॉन्स्टेबल धर्मवीर ने जानना चाहा तो जवाब मिला कि हमलोग गरीब हैं। उनकी बेबसी देख दिल भर आया और उनकी ज़िन्दगी संवारने का विचार मन में आया।

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1 जनवरी 2016 से आपणी पाठशाला कि हुई शुरुआत

शाम को ग़रीबी और बिन मां-बाप के बच्चों की सच्चाई का पता लगाने के लिए साथी दिनेश सैनी, ओमप्रकाश भूकल, सुनित गुर्जर को लेकर मैं झुग्गी झोपड़ियों में गया। उन बच्चों की बातें सही निकली। उनमें से कइयों के माता-पिता का बीमारी से निधन हो चुका था, मगर झुग्गी झोपड़ियों में कई बच्चे ऐसे भी थे, जिनके माता-पिता ज़िंदा होते हुए भी भीख मांगकर पेट भर रहे थे।

तब हम चारों ने उन बच्चों की ज़िन्दगी संवारने की ठानी और उसका सिर्फ़ एक ही ज़रिया था शिक्षा। दो दिनों के अंदर हम पढ़ाई की सामग्री व ब्लैकबोर्ड खरीदकर लाए और नए साल 2016 के पहले दिन से यानी 1 जनवरी से झुग्गी झोपड़ियों में बच्चों को पढ़ाने का नया काम शुरू किया। शुरुआत सिर्फ़ एक घंटे की पढ़ाई, पांच बच्चों से हुई।

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उस समय मैं चूरू के महिला पुलिस थाने में तैनात था और जब मेरी ड्यूटी लगी होती, तब साथियों ने बच्चों को पढ़ाना जारी रखा। फिर चुनौती आई बच्चों का नामांकन बढ़ाने और जो पढ़ने आ रहे हैं उन्हें प्रेरित करने की। तो इसके लिए हमने पुलिस लाइन में रहने वाले परिवार से पुराने कपड़े, खिलोने जुटाना शुरू किए और तय किया कि जो बच्चा रोज़ आएगा, साफ़ सुथरे कपड़े पहनेगा और मन लगाकर पढ़ेगा उसे कपड़े-खिलोने उपहार में दिए जाएंगे। नतीजा यह रहा कि 15-20 दिनों में ही आपणी पाठशाला में छात्र संख्या 5 से बढ़कर 25-30 हो गई और पढ़ाई भी एक घंटे की बजाय दो घंटे होने लगी।

आपणी पाठशाला को दो महिने हो चुके थे। बच्चों की संख्या 40 हो गई थी। लोग उनके कपड़े, कॉपी-किताब, पेंसिल और बैग के साथ-साथ भोजन की व्यवस्था भी करने लगे। रोज़ सुबह भीख का कटोरा उठाने की बजाय ये बच्चे स्कूल का बैग उठाकर आपणी पाठशाला पहुँचने लगे।

महिला पुलिस थाना चूरू के तत्कालीन थानाधिकारी विक्रम सिंह ने थाने में ही बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दे दी। 15 दिनों तक आपणी पाठशाला थाने में संचालित होती रही। उसके बाद इन बच्चों को झुग्गी झोपड़ियों के पास मेडिकल कॉलेज चूरू की दीवार की छांव में खुले आसमां के नीचे ही पढ़ाना शुरू किया। अब तक बच्चों की संख्या 80 तक पहुँच गई थी।

उसके बाद डॉ. सुनील जादू ने दरियादिली दिखाई और औषद्यि भंडार के खाली हॉल में बच्चों को पढ़ाने की अनुमति उन्हें दे दी। डेढ़ साल तक आपणी पाठशाला कि कक्षाएँ औषद्यि भंडार चूरू के खाली हॉल में चली। बच्चों की संख्या 80 से बढ़कर 180 हो गई थी और शहर के लोग ही इन बच्चों के लिए नियमि​त रूप से भोजन, कपड़े और पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने लगे।

जाकिर हुसैन स्कूल में प्रवेश

एक समय आया जब जाकिर हुसैन स्कूल में प्रवेश के लिए ऐसे 80 बच्चों को चुनना था जो पढ़ने में होशियार और बड़े हों। फिर चूरू के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राहुल बारहठ की मदद से वहीं के निजी स्कूल जाकिर हुसैन में उन बच्चों को शपथ पत्र के आधार पर दाखिला दिलवाया। स्कूल के प्रबंधन ने न केवल आपणी पाठशाला के बच्चों की फीस माफ़ की बल्कि उनके आने-जाने के लिए स्कूल वैन की सुविधा भी प्रदान कर दी।

अब चूरू एसपी राहुल बारहठ ने तय किया कि बच्चों को औषद्यि भंडार के खाली हॉल की बजाय पुलिस लाइन में खाली पड़े बैरक में भी पढ़ाया जा सकता है। पिछले सवा साल से आपणी पाठशाला कि कक्षाएँ अब पुलिस लाइन चूरू के बैरक में ही चल रही हैं। वर्तमान में यहाँ करीब पौने दो सौ बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

वर्तमान समय में कांस्टबेल धर्मवीर जाखड़, दिनेश सैनी, ओमप्रकाश भूकल, सुनित गुर्जर के साथ-साथ बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी चूरू पुलिस की तीन महिला कांस्टेबलों की भी है। जो अपनी पुलिस की ड्यूटी निभाने के साथ-साथ आपणी पाठशाला के बच्चों को भी पढ़ा रहीं हैं।

सरकारी योजना से भी जोड़ा गया बच्चों को

आपणी पाठशाला के 150 बच्चों को पिछले दिनों शिक्षा विभाग के समग्र अभियान के तहत राजकीय नवीन स्कूल से भी जोड़ा गया। ताकि इन बच्चों का नाम व जन्म तिथि भी कोई सरकारी रिकॉर्ड में हो। अब आपणी पाठशाला का समय भी बढ़ाकर सुबह 9: 00 बजे से 3: 00 बजे तक कर दिया गया है।

लेकिन दस दिन पहले ही इनका तबादला थाने से पुलिस लाइन में हो गया। धर्मवीर जाखड़ बताते हैं कि उनका प्रयास है कि आपणी पाठशाला के पास भी ख़ुद का भवन हो। साथ ही अन्य ज़िला मुख्यालयों पर भी इस तरह की शुरुआत की जाए। जिससे कोई भी गरीब बच्चा पढ़ाई से वंचित ना रहे।

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News Desk
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