आजकल बेटियाँ बेटों से किसी क्षेत्र में कम नहीं है चाहे वह राज’नीति हो या यु’द्ध का मैदान हो। बस उन्हें एक मौका चाहिए फिर वह कुछ भी कर सकती हैं। भारत की इन बेटियों के ऐसे हजारों उदाहरण हैं, यह कहानी ऐसी ही एक बेटी किरण शेखावत की है जिन्हें देश के लिए शही”द होने का गौरव प्राप्त हुआ है, इन्होंने इतिहास में ख़ुद को अमर कर लिया।
वैसे तो अपने देश के लिए कई वीरांगनाओं ने अपनी कुर्बा’नी दी है, मगर देश की सी’माओं की रक्षा करते हुए किसी बेटी के नाम के साथ ये ‘शही”द’ शब्द नहीं जुड़ा था। लेकिन वर्ष 2015 में राजस्थान की एक बेटी किरण, जब प्लेन क्रै’श हो जाने के कारण उन्होंने इतिहास में एक शही”द वीरांगना के रूप में अपना नाम हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज करा लिया।
उनके पिता विजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान के झुनझुनु जिले के सेफरागुवार गाँव से थे। जो ख़ुद भी भारतीय नौसेना में लेफ्टिनेंट थे और बाद में मास्टर चीफ़ पैटी ऑफिसर के पद से रिटायर हुए।
जब 1 मई 1988 को लेफ्टिनेंट विजेंद्र के घर एक बेटी का जन्म हुआ। उस समय इन्हें भी बेटा होने के बजाय बेटी होने के लिए ताने मिलने लगे। लेकिन किसी ने कहाँ सोचा होगा कि यह बड़ी होकर पिता के पद चिन्हों पर ही जाएंगी। सारे समाज का यही कहना था कि काश अगर लड़का होता तो वह भी आपकी तरह नौ सेना में भर्ती होता और अपने देश की सेवा करता।
अधिकतर लोगों का यही मानना होता है कि बेटियाँ कितनी भी आगे बढ़ जाएँ, लेकिन बात जब सेना में जाने की आती है तो फिर यह बात असंभव हो जाती है।
लेकिन इन सारी बातों से दूर लेफ्टि’नेंट विजेंद्र ने अपनी बेटी का नाम किरण रखा। किरण ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा विशाखापटनम के केंद्रीय विद्यालय से, तथा आंध्रा यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन किया। वैसे तो किरण एक नौ सै’निक परिवार से ताल्लुक रखती थीं। इस कारण उन्होंने बचपन से ही नौ से’ना में जाने का फ़ैसला कर लिया था और उसी के अनुसार ख़ुद को ढाल लिया था।
किरण भारतीय नौ से’ना अकादमी में भर्ती होने से पहले एक प्राइवेट बैंक में नौकरी भी की। फिर 2010 में किरण आई’एनए के लिए चुनी गईं और उसके बाद उनकी पोस्टिंग केरल के भारतीय नौसे’ना अकादमी एझीमाला में हुई।
हर व्यक्ति की तरह किरण के मन में भी यही सपना था कि उन्हें जीवनसाथी के रूप में कोई ऐसा मिले जो उनके साथ-साथ उनके काम का सम्मान कर सके और ठीक ऐसा ही हुआ। उनकी शादी विवेक सिंह छोकर के साथ हुई जो ख़ुद भी नौ’सैनिक थे और लेफ्टि’नेंट विवेक के पिता भी नौ से’ना में थे तथा उनकी माँ सुनीता छोकर उस समय अपने गाँव की सरपंच थीं।
किरण ने जैसा सपना देखा था उनके साथ ठीक वैसे ही होता गया। वह एक ज़िंदादिल महिला थीं, उन्हें उड़ान भरने का शौख था। जब भी किरण ड्यूटी पर नहीं होती थीं तब वह अपने हॉबीज को पूरा किया करती थीं। उन्हें संगीत सुनने के साथ-साथ डांस करना अच्छा लगता था।
उन्हें प्रसिद्ध लेखक निकोलस स्पार्क्स बहुत पसंद थे, जिनकी किताबे वह अक्सर पढ़ा करती थी। वर्ष 2015 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर पहली बार महिला मार्चिंग दल ने हिस्सा लिया, जिसमें किरण शेखावत को भी इस दल का हिस्सा बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
5 जुलाई 2010 को किरण ने इंडियन ने’वल एयर स्क्वा’ड्रन ज्वाइन किया। इस स्क्वॉड्रन को कोब्राज़ के नाम से भी जाना जाता है। किरण अपने 5 साल के करियर में देश के कई ने’वल स्टेशनों पर पोस्टेड रहीं। और उनकी अंतिम पोस्टिंग गोवा में हुई थी और यह वही जगह थी जहाँ किरण हंसती खेलती अपनी ज़िंदगी से विदा ले ली।
किस हाद”से में शही”द हुई?
किरण 24 मार्च 2015 को अपनी ड्यूटी के दौरान डॉर्नि’यर विमान में सवार हुई थीं। उन्हें क्या पता था कि जिस पर उनके इस ज़िन्दगी का आखि’री सफ़र होगा और साथ-साथ उन्हें एक नया सम्मान दिला जाएगा। दु’र्भाग्य से उनका विमान उसी रात गोवा में दुर्घटना”ग्रस्त हो गया। विमान इतनी बुरी तरह से क्रै’श हुआ कि दो दिन तक किरण का कहीं कोई पता ना चल सका।
दो दिन तक उनकी तलाशी के बाद 26 मार्च को किरण का श”व बरामद हुआ। उसके बाद 29 मार्च को उनका पा’र्थिव शरीर उनके ससुराल कुरथला गाँव लाया गया और इसी के साथ 22 साल की उम्र में नौ से’ना में भर्ती होने वाली किरण ड्यूटी पर शही”द होने वाली पहली महिला सैनिक बन चुकी थीं।
किरण के पा’र्थिव को देख हर किसी ने आंसुओं से उन्हें अंति’म श्रद्धां’जलि दी। किरण और उनके पति विवेक अपनी-अपनी ड्यूटी के कारण एक साल से ज़्यादा वक़्त से मिले नहीं थे। लेकिन किरण ने अपने पति के साथ पोस्टिंग के लिए सारे इंतज़ाम कर लिए थे और उन्हें मात्र 10 दिन बाद कोच्चि में ज्वाइन करना था। लेकिन इससे पहले ही उन्होंने अपनी ज़िन्दगी को अ’लविदा कह दिया।
किरण की जेठानी राजश्री कोस्ट गार्ड जो की प्रथम वुमेन पायलट हैं। उन्होंने ही किरण के श’हीद हो जाने पर उनके अंति’म संस्का’र के समय उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया था।
राजश्री के अनुसार “ये उनके जीवन का सबसे मुश्किल सैल्यूट था। एक 22 साल की लड़की, जिसने बचपन से ही अपने पिता कि तरह नौ से’ना में जाने का सपना देखा और उसे पूरा किया” जिसके पिता, पति और ससुर नौ से’ना में रहे, जिसने पहली शही”द महिला सैनि’क होने का सम्मान प्राप्त किया और उसके सम्मान में राजस्थान सरकार अभी तक कॉलेज तो दूर एक खेल स्टेडियम तक ना बनवा पाई”।
लोगों के दिलों में हमेशा के लिए ज़िं’दा हैं किरण
किरण के ससुराल कुरथला में उनके नाम से शही”द स्मारक, पार्क तथा मार्ग का नामकरण किया गया है। ये थी देश की पहली शही”द महिला सैनिक किरण शेखावत की कहानी। पूरा देश नमन करता है, देश की इस बेटी को जिसने अपने देश के लिए अपनी जान तक कुर्बा’न कर दी।