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साइंटिस्ट बना रहे हैं सूर्य से 10 गुना गर्म ‘नया सूरज’ , भारत समेत 35 देश कर चुके हैं फंडिंग

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समय के साथ ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों की वज़ह से क्लीन एनर्जी के लिए वैज्ञानिक बहुत प्रकार से प्रयास कर रहे हैं और अब उन्हें अपने 10 वर्षों के कठिन परिश्रम का नतीजा मिल रहा है। दरअसल वैज्ञानिक पिछले 10 वर्षों से दुनिया का सबसे बड़ा चुंबक तैयार करने में लगे थे और अब उनकी कोशिशें कामयाब होने जा रही हैं।

यह चुम्बक बहुत तरह से पृथ्वी में परिवर्तन ला सकता है। ये विशाल चुम्बक इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर का पार्ट है। जिसका उद्देश्य पृथ्वी पर ही सूर्य के लेवल की एनर्जी निर्मित करना है।

क्या है इसकी खासियत?

इस मैग्नेट की लम्बाई 59 फीट और इसका व्यास 1 फीट होगा। इस मैग्नेट के वज़न की बात करें तो यह 1000 टन का होगा। इसे एटॉमिक्स द्वारा डिजाइन और मैनुफेक्चर जनरल किया गया है। आपको बता दें कि यह इतना पावरफुल होगा कि 1000 फीट लंबे व 1 लाख टन के एयरक्राफ्ट कैरियर को भी भूमि से 6 फीट तक ऊपर उठाने में सक्षम रहेगा। इसकी क्षमता इतनी ज़्यादा होगी कि यह पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड से 2 लाख 80 हज़ार गुना अधिक पावरफुल रहेगा।

इस ख़ास मैग्नेट का नाम ‘सेंट्रल सोलेनाइड(Central Solenoid) है। वैसे इसे ‘धरती का सूरज(The Sun of Earth) भी कहते हैं। यह अमेरिका में एक शहर कैलिफॉर्निया में निर्मित किया जा रहा है और शीघ्र ही फ्रांस में भेज दिया जाएगा। बता दें कि इस विशालकाय उपकरण का 75% निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। इसके निर्माण के लिए चीन, जापान, भारत, रूस, ब्रिटेन तथा स्विट्जरलैंड सहित कुल 35 देशों द्वारा फंडिग की गई है।

सूर्य से 10 गुना ज़्यादा गर्म होगा यह कृत्रिम सूरज

ऐसा कहा जा रहा है कि सेंट्रल सोलेनाइड आईटीईआर (ITER Central Solenoid) के फ्यूजन एनर्जी के निर्माण में विशेष रूप से काम करेगा क्योंकि इस चुम्बक से प्लाज्मा में अत्यंत ताकतवर करंट का फ्लो होगा, जो इस फ्यूजन रिएक्शन के नियंत्रण में और उसे शेप देने में भी काफ़ी सहायक रहेगा। इसकी कार्यप्रणाली की बात करें तो हाइड्रोजन प्लाज्मा को इसमें 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस के तापमान पर गर्म किया जाएगा और ख़ास बात तो यह है कि ये कृत्रिम सूरज असली सूर्य के भीतरी भाग से भी 10 गुना अधिक गर्म होगा। इस सारी प्रोसेस से इसमें फ्यूजन रिएक्शन किया जाएगा।

मानव इतिहास का सबसे जटिल प्रोजेक्ट

आईटीईआर की टीम ने बताया कि इस उपकरण के फाइनल पुरजे अभी से लेकर वर्ष 2023 तक इंस्टॉल कर दिए जाएंगे। जब इसमें मैग्नेट व अन्य सभी चीजें एक साथ जुड़ जाएंगी, तब यह आईटीआर टोकमैक नाम की मशीन बनकर तैयार होगी। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2025 में इसमें पहली बार प्लाज्मा जनरेट किया जाएगा। टीम आईटीईआर का मानना है कि यह प्रोजेक्ट मानव इतिहास का सबसे जटिल प्रोजेक्ट है।

17 खरब रुपये की लागत में बनकर तैयार होगा

यह विशाल चुम्बक आईटीईआर (ITER) का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग बताया जा रहा है। इस उपकरण को बनाने में 24 बिलियन डॉलर्स यानी करीब 17 खरब रूपये की लागत आएगी। यह उपकरण धरती पर फ्यूजन एनर्जी उत्पन्न करेगी। इस उपकरण को क्लीन सोर्स के तौर पर इस वज़ह से देखा जा रहा है क्योंकि इससे ग्रीनहाउस गैसें भी नहीं निकलेंगी और इस मशीन द्वारा कोई भी रेडियोएक्टिव कचरा उत्पन्न नहीं होगा। इतना ही नहीं, इसके फ्यूजन प्लांट में एक्सीडेंट्स का ख़तरा भी ना के बराबर रहता है।

पर्यावरण प्रदूषण में आएगी कमी

आईटीईआर प्रोजेक्ट (ITER Project) विश्व का सबसे महत्त्वाकांक्षी एनर्जी प्रोजेक्ट माना जा रहा है, क्योंकि यह पहली ऐसी मशीन होगी, जिससे काफ़ी ज़्यादा समय तक फ्यूजन रिएक्शन मेंटेन रहेगा तथा साथ ही यह, फ्यूजन बेस्ड एनर्जी उत्पन्न करने हेतु इंटेग्रेटेड टेक्नोलॉजी की जांच भी करेगी।

आईटीईआर टीम का कहना है कि यदि उनका यह प्रोजेक्ट सक्सेसफुल हो जाएगा, तो रोजाना केवल 1 किलो फ्यूल से ही 1500 मेगावॉट की बिजली प्राप्त हो जाएगी। इससे पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी और क्लीन एनर्जी पैदा करने की दिशा में यह एक विशेष क़दम सिद्ध होगा। इस कृत्रिम सूर्य के आविष्कार से पृथ्वी पर कई तरीके से परिवर्तन लाए जा सकते हैं।

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News Desk
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