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बिना फ्रिज के 8 से 10 दिनों तक फ्रेश रहेगी फल और सब्जी, कृषि वैज्ञानिकों ने खोजी नई तकनीक

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गर्मी हो या सर्दी, फल और सब्जियों को लंबे समय तक फ्रेश रखने के लिए हर घर में फ्रिज का इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि फ्रिज हम सभी के जीवन में अहम इलेक्ट्रिक डिवाइस बन गया है, जिसके बिना फल, सब्जी और खाने पीने की चीजों को लंबे समय तक स्टोर रखने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है।

लेकिन झारखंड के रांची शहर में स्थित राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक का इजाद किया है, जिसके तहत फल और सब्जियों को 8 से 10 दिनों तक बिना फ्रिज का इस्तेमाल किए फ्रेश रखा जा सकता है। इस तकनीक के तहत फल और सब्जी पर लाह युक्त परत चढ़ाई जाती है, जो उन्हें खराब होने से बचाने का काम करती है।

फल और सब्जी को फ्रेश रखने का नया तरीका

राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान के वैज्ञानिकों ने फल और सब्जियों की सेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए उनके ऊपर लाह युक्त एक पतली परत चढ़ाई है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होती है और फल व सब्जियो को इस परत के साथ खाया जा सकता है।

इस प्रयोग के तहत वैज्ञानिकों ने टमाटर, शिमला मिर्च और बैंगन समेत कुछ सब्जियों और फलों के ऊपर लाह की कोटिंग की थी, जिसके बाद उन चीजों की टेस्टिंग की गई। जांच में पता चला कि फल और सब्जियों पर लाह की कोटिंग करने से उनकी सेल्फ लाइफ बढ़ गई है, जिसकी वजह से उन्हें बिना फ्रिज के भी लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है।

इस प्रयोग को करने का मकसद फल और सब्जियों को सड़ने से बचाना है, क्योंकि खेत से मंडी और फिर मंड से घर तक पहुँचने के दौरान लगभग 40 प्रतिशत खाद्य पदार्थ सड़ कर खराब हो जाते हैं। ऐसे में भोजन की बर्बादी होती है, जबकि किसानों के फसल का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता है। यही वजह है कि रांची के कृषि वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए लाह और खाद्य पदार्थों के साथ प्रयोग किया है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही है लाह की मांग

आपको बता दें कि पूरे देश में लाह का सबसे ज्यादा उत्पादन झारखंड में होता है, जो कि एक बायो डिग्रेबल, नॉन टॉक्सिक और इको फ्रेंडली तत्व होता है। लाह का इस्तेमाल विभिन्न दवाईयों और कैप्सूल की कोटिंग करने के लिए किया जाता है, जिसे खाने से सेहत को किसी प्रकार नुकसान नहीं होता है।

यही वजह है कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में लाह की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है, जिसका इस्तेमाल करके फूड वेस्टेज को काफी हद तक कंट्रोल किय जा सकता है। झारखंड के लगभग 12 जिलों में लाह की खेती की जाती है, जिसका इस्तेमाल अब राज्य के कृषि संस्थान द्वारा किया जा रहा है।

आपको बता दें कि रांची में स्थित राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान की स्थापना साल 1924 में की गई थी और उस वक्त इसका नाम इंडियन लैक रिसर्च इंस्टीट्यूट रखा गया था, हालांकि कुछ समय बाद संस्थान का नाम बदल कर भारतीय प्राकृतिक राल एंड गोंद संस्थान कर दिया गया था। वहीं सितंबर साल 2022 में इसे राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान नाम दिया गया है।

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Shivani Bhandari
Shivani Bhandari
शिवानी भंडारी एक कंटेंट राइटर है, जो मीडिया और कहानी से जुड़ा लेखन करती हैं। शिवानी ने पत्रकारिता में M.A की डिग्री ली है और फिलहाल AWESOME GYAN के लिए फ्रीलांसर कार्य कर रही हैं।

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