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पापा को कलेक्टर ऑफिस में एक साइन के लिए चक्कर काटते देखा, तो बेटी को हुआ दुःख और ख़ुद ही बन गई कलेक्टर

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हम सभी को आए दिन किसी ना किसी काम से सरकारी ऑफिसों में जाना ही होता है। चाहे कोई कागजात बनवाना हो या फिर किसी ज़रूरी कागजात पर साइन करवाना हो। अपना काम करवाने के लिए बड़े-बड़े अधिकारियों के सामने उनकी जी हजूरी करनी पड़ती है। पहले छोटे अफसर फिर बड़े अफसर इस तरह से कुछ कागजात बनवाने के लिए कई चरणों में जाकर ये प्रक्रिया पूरी होती है।

आज भले ही डिजिटल इंडिया कि बात की जाती है लेकिन अशिक्षा और अज्ञान की वज़ह से गांवों में आज भी लोगों अपने कामों के लिए ऑफिसों के धक्के खाने पड़ते हैं।

आज हम इसी तरह ऑफिसों के चक्कर काटते हुए एक व्यक्ति की बेटी रोहिणी भाजीभाकरे के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसने बचपन में अपने पापा को आए दिन कलेक्टर ऑफिस के धक्के खाते देखा तो उसने ठाना कि अब वह ख़ुद बड़ी होकर कलेक्टर बनेगी और अपने पिता जैसे अन्य लाचार लोगों की मदद करेगी। फिर उसने अपने इस संकल्प को सच किया और IAS अधिकारी बनकर सबके लिए आदर्श स्थापित किया।

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सरकारी स्कूल और सरकारी कॉलेज से ही पढ़ाई की, पास की UPSC की परीक्षा

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रोहिणी महाराष्ट्र के सोलापुर स्थित एक छोटे से उपलाई नामक गाँव में रहती हैं। उनके पिताजी एक किसान थे। इन्होंने गाँव में रहकर वहीं के सरकारी स्कूल से 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की। फिर वे 12 वीं कक्षा कि पढ़ाई करने सोलापुर चली गईं थीं।

वे बहुत अच्छी छात्रा थीं उन्होंने स्कूल में टॉप किया और फिर अपनी मेहनत से सरकारी कॉलेज में इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया। फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती थीं तो यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।

रोहिणी ने बिना किसी की सहायता के अपने दम पर इस परीक्षा कि तैयारी की। उन्होंने कोई कोचिंग भी ज्वाइन नहीं की। केवल सेल्फ स्टडी करती रहीं और फिर किसी की मदद लिए बिना अपने परिश्रम से IAS बनीं। उनका कहना है कि सरकारी स्कूलों में अच्छे शिक्षकों की कमी नहीं है बल्कि बुनियादी सुविधाओं की कमी है, जिन्हें पूरा करना चाहिए।

पिता कि परेशानी देखकर मिली IAS बनने की प्रेरणा

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जब रोहिणी की उम्र केवल 9 साल की थीं। उस समय सरकार ने किसानों के लिए कुछ नई योजनाएँ संचालित की थीं। उनके पिता भी इन सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए आवेदन करना चाहते थे, इसलिए बार-बार सरकारी ऑफिसों के चक्कर काट रहे थे। बार-बार काम ना होने की वज़ह से पिता को हताश देखा तो रोहिणी ने उनकी परेशानी की वज़ह पूछी, तब उनके पिता ने बताया कि कुछ ज़रूरी कागजात बनवाने के लिए उन्हें कलेक्टर के साइन कि आवश्यकता है। उसी के लिए वे ऑफिस के इतने चक्कर काट रहे हैं।

अपने पिता से जब सुना कि कलेक्टर के साइन के लिए उनके पापा को इतना भटकना पड़ रहा है, तो उन्हें बहुत दुख हुआ, उन्होंने तभी निश्चय कर लिया कि वे भी बड़ी होकर कलेक्टर ही बनेंगी और उनके पिताजी जैसे सभी लोगों की मदद करेंगी।

उपरोक्त घटना के 23 वर्षों के बाद रोहिणी ने अपने इस संकल्प को हक़ीक़त में बदल दिया। वे तमिलनाडु राज्य में स्थित सेलम जिले में 170 पुरुष कलेक्टर्स के बाद पहली महिला कलेक्टर बनीं और इतिहास रचा।

पिता कि सीख हमेशा याद रखी

रोहिणी कहती हैं कि जब वे IAS के प्रशिक्षण के लिए जा रही थीं तब उनके पिताजी ने उन्हें समझाते हुए कहा था कि बेटी अब तुम्हें बहुत बड़ी जिममेदारी संभालनी है। तुम्हारी टेबल पर ख़ूब सारी फाइलें भी आएंगी, लेकिन तुम उन फाइलों को साधारण पेपर की तरह मत समझना। तुम्हारे एक दस्तखत से ही लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकता है। हमेशा लोगों की भलाई के बारे में सोचकर कार्य करना।

रोहिणी बताती हैं कि मेरे पिताजी 2 एकड़ से भी कम ज़मीन में ज्वार उगाया करते थे। खेती के लिए भूमि और-और फसलों के मामले में वे काफ़ी चिंतित रहा करते थे, क्योंकि उन्हें किसी भी अधिकारी से सहायता नहीं मिल पाती थी। वे रोहिणी को बताते थे कि ज़िला कलेक्टर लोगों की समस्याओं को देखते हुए चाहें तो उनके हित में काम कर सकते हैं और योजनाएँ बना सकते हैं। अतः उन्होंने रोहिणी को भी अपना कर्तव्य पालन करने और गरीब तथा ज़रूरतमंदो की सहायता करने की नसीहत दी थी। उस सीख को रोहिणी ने हमेशा से माना।

IAS अधिकारी बनकर जनता कि मदद में जुट गईं

रोहिणी अपने जिले की पहली महिला कलेक्टर बनीं इसलिए उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण की ओर भी ध्यान दिया। उन्होंने अपने पिता कि बातों को ध्यान में रखा और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भली भांति कर रही हैं। उन्होंने अपने काम के साथ-साथ अपनी भाषा को भी संवारा। पहले उनकी नियुक्ति मदुरई में ज़िला ग्रामीण विकास एजेन्सी में अतिरिक्त कलेक्टर और परियोजना अधिकारी के पद पर हुई। वे मदुरई जिले में रहकर अच्छे से तमिल भी बोल लिया करतीं हैं।

32 साल में उन्हें सेलम में ही सामाजिक निदेशक का कार्यभार सौंपा गया। वे अपने कार्यों और नम्र व्यवहार से सभी का दिल जीत चुकी हैं। वे अपना काम सोच समझकर और पूरी समझदारी के साथ करती हैं। अभी वे सेलम जिले में रहकर स्कूलों में स्वच्छता के लिए जागरूकता अभियान चला रही हैं।

उनके पिता को सरकारी कामकाज के लिए जो तकलीफें उठानी पड़ी थीं, वे नहीं चाहती की उनका सामना और कोई नागरिक करे, इसलिए वे पूरी निष्ठा से अपना कार्य संभालती हैं।

उन्होंने बिना किसी सहायता से IAS बनकर और अपनी जिम्मेदारियों का अच्छे से निर्वाह करके सभी के लिए आदर्श स्थापित किया है।

 

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News Desk
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