कई बार कुछ इस तरह के वास्तविक किस्से सुनने को मिल जाते हैं जिन्हें सुनकर हम वाकई में सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि क्या सच में ऐसा हो सकता है? भले ही हमारे लिए विश्वास करना मुश्किल हो लेकिन सच्चाई को तो स्वीकार करना ही होता है। आज हम ऐसी ही आश्चर्यजनक बात आपको बताने जा रहे हैं जिसे गले उतारना शायद थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
हम बात कर रहे हैं उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गाँव माधोपट्टी की, जिसमें सिर्फ़ 75 ही घर हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि उन 75 घरों में से 47 घरों में आईएएस ऑफिसर हैं जो उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा माधोपट्टी गाँव में और भी कई प्रतिभावान बालक और बालिकाओं ने जन्म लिया जिनमें से कुछ आज पीसीएस अधिकारी हैं, भाभा इंस्टीट्यूट में काम कर रहे हैं और विश्व बैंक जैसे बड़े-बड़े पदों पर कार्यरत हैं। जौनपुर जिले में स्थित इस गाँव ने सभी के लिए मिसाल क़ायम की है।
कौन बने थे यहाँ से पहला आईएएस ऑफिसर?
सन् 1914 में प्रसिद्ध कवि वामिक जौनपुरी के पिताजी मुस्तफा हुसैन सिविल सेवा में आए। फिर सन् 1952 में इसी गाँव से इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस की परीक्षा में चयन हुआ, इन्होंने दूसरी रैंक के साथ ये परीक्षा पास की। फिर इनसे प्रेरणा लेकर सभी में आईएएस बनने का जज़्बा पैदा हुआ और फलस्वरूप इस गाँव में से एक के बाद एक आईएएस ऑफिसर निकलते गए।
दरअसल, इस गाँव की एक ख़ास बात ये है कि यहाँ पर सभी माँ बाप अपने बच्चों को बचपन से ही आईएएस की तैयारी के लिए प्रोत्साहित और प्रशिक्षित करते रहते हैं। वे उन्हें कड़ी मेहनत करने की शिक्षा देते हैं और अपने प्रतियोगी साथियों के साथ मिलकर प्रदर्शन सुधारकर ख़ुद को बेहतर बनाने को कहते हैं। इस गाँव में लगभग 800 लोग रहते हैं। यहाँ से आईएएस ऑफिसर बने बच्चे अपने गाँव को बहुत पसंद करते हैं, यहाँ पर लाल और नीली बत्ती से सजी गाडियाँ आती और जाती दिखती हैं।
इसी गाँव के 4 सगे भाई बने आईएएस, बनाया रिकॉर्ड
माधोपट्टी गाँव में एक घर ऐसा भी है जिसमें चार सगे भाइयों ने आईएएस बनकर कीर्तिमान स्थापित किया। इन भाइयों में से सर्वप्रथम सन् 1955 में विनय कुमार सिंह का सलेक्शन 13 वीं रैंक से हुआ और ये बिहार में मुख्यसचिव भी बने। फिर सन् 1964 में उनके अन्य दो भाई जिनका नाम क्षत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह था उन दोनों ने भी आईएएस की परीक्षा साथ में उत्तीर्ण की।
क्षत्रपाल सिंह ने तमिलनाडु में प्रमुख सचिव का पद संभाला और अजय कुमार सिंह उत्तर प्रदेश में नगर विकास के सचिव बने। सन् 1968 में इनके एक और सगे भाई शशिकांत सिंह आईएएस अधिकारी बने। इस तरह चारों भाइयों ने अपनी योग्यता से सबको हैरत में डाल दिया। इसके बाद शशिकांत सिंह के सुपुत्र यशस्वी भी सन् 2002 में 31 वीं रैंक के साथ आईएएस बने।
कई पीसीएस अधिकारी भी बने, विभिन्न क्षेत्रों में किया नाम रोशन
यहाँ के प्रतिभावान बालक व बालिकाएँ केवल आईएएस ऑफिसर ही नहीं बने बल्कि कई उच्च पदों पर कार्यरत हैं। पीसीएस ऑफिसर्स का तो यहाँ एक पूरा दल बना हुआ है। यहाँ पर राममूर्ति सिंह विद्याप्रकाश सिंह, प्रेमचंद्र सिंह, महेन्द्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह व उनकी धर्मपत्नी पारूल सिंह, रीतू सिंह, अशोक कुमार प्रजापति, प्रकाश सिंह, राजीव सिंह, संजीव सिंह, आनंद सिंह, विशाल सिंह और उनके भाई विकास सिंह, वेदप्रकाश सिंह, नीरज सिंह सभी ने पीसीएस अधिकारी बनकर गाँव का नाम रौशन किया। इसके बाद सन् 2013 में इसी गाँव की एक बहू शिवानी सिंह पीसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई और सभी के लिए प्रेरणा का पात्र बनीं।
बेटे, बेटियाँ हो या बहुएँ सभी ने यहाँ अपनी योग्यता से उच्च पद प्राप्त किए हैं। यहाँ के अन्मजेय सिंह विश्व बैंक मनीला में कार्यरत हैं, डॉक्टर निरू सिंह और लालेन्द्र प्रताप सिंह भाभा इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक के तौर पर कार्य कर रहे हैं, ज्ञानू मिश्रा राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान इसरो में काम करते हैं और यहाँ के देवनाथ सिंह गुजरात राज्य में सूचना निदेशक अधिकारी के ओहदे पर आसीन हैं।