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वर्ल्ड फोटोग्राफी डे : दुनिया की पहली तस्वीर का इतिहास

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कहा जाता है वक्त किसी के लिए नहीं रुकता। हर बीते लम्हे के साथ एक कतरा जिंदगी खर्च हो जाती है और उसके बाद हम उसमें कोई बदलाव नहीं कर सकते, लेकिन आज के समय में बीते लम्हों को कैमरे में कैद कर फोटो के माध्यम से एक खूबसूरत याद के रूप में संजोकर रखना आसान हो गया है। कैमरे के अविष्कार के साथ हमने लम्हों को कैद करना शुरू किया। वक्त को कैद कर लेने की सुविधा को ‘फोटोग्राफी’ कहा गया। फोटोग्राफी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द फोटो और ग्राफीन से मिलकर हुई है। फोटो का अर्थ है- प्रकाश और ग्राफीन का मतलब है खींचना।

फोटोग्राफी का इतिहास-

दुनिया की पहली तस्वीर 1826 में डामर या एसफाल्ट की काली प्लेट पर ली गई थी। फ्रांस के वैज्ञानिक जोसेफ  नाइसफोर और उनके मित्र लुईस डॉगर को दुनिया की पहली तस्वीर खींचने का श्रेय जाता है।

कैसे ली गई दुनिया की पहली तस्वीर-

वैज्ञानिक प्रयोगों में रुचि रखने वाले जोसेफ नाइसफोर और उनके दोस्त लुइस डॉगर ने तस्वीर डेवलप करने के अपने प्रयोग की शुरुआत 1820 में की थी। फोटो डेवलप करने की प्रक्रिया के लिए पहले वे दोनों टिन और कॉपर जैसी धातु का प्रयोग कर रहे थे, लेकिन टिन और कॉपर पर तस्वीर उतारने में यह लोग असफल रहे। उसके बाद उन्होंने बिटुमिन-एस्फाल्ट यानी डामर का प्रयोग किया। दोनों लोग अपने-अपने घरों में बिटुमिन एस्फाल्ट को प्लेट पर फैला कर सूरज की किरणों की सहायता से फोटो उतारने की तकनीक विकसित करने में जुटे हुए थे। फोटो विकसित करने की सबसे आवश्यक वस्तु फोटो प्लेट ही थी।

World First Image
यही थी 1826 में ली गई वह पहली तस्वीर जिसे “View from the Window at Le Gras” नाम दिया गया। इसमें दो इमारतों के बीच खुली जगह दिखाई दे रही है।

इस प्रक्रिया को “डॉगेरोटाइप” प्रक्रिया कहा गया, जोकि लुईस डॉगर के सरनेम से लिया गया शब्द है। इस पूरी तकनीक को विकसित करने में 6 साल का समय लगा। तस्वीर खींचने के लिए ‘ऑब्सक्यूरा ‘ नाम के बड़े से कैमरे का प्रयोग किया गया और तस्वीर खींचने की प्रक्रिया में 8 घंटे का समय लगा।इस पूरी प्रक्रिया को हीलियोग्राफी नाम दिया गया।

आमतौर पर तस्वीर खींचते समय हमें मालूम होता है कि किस वस्तु की तस्वीर लेनी है, लेकिन 1826 में खींची गयी पहली तस्वीर में ऐसा कुछ भी नही हुआ था।सैंट-लूप-डे-वैरेनीज कस्बे में अपने दो मंजिला घर की पहली मंजिल की खिड़की के पास खड़े जोसेफ ने अचानक ही एक तस्वीर कैप्चर की, जिसमें खिड़की के बाहर का एक दृश्य कैप्चर हो गया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि यह दुनिया की पहली तस्वीर थी। इस तस्वीर को view from the window at le gras नाम दिया गया।

कौन थे जोसेफ नाइसफोर और लुईस डॉगर-

जोसेफ नाइसफोर- जोसेफ नाइसफोर का जन्म 7 मार्च, 1765 को फ्रांस में हुआ था। इनके पिता एक बड़े वकील और भाई शोधकर्ता थे।कॉलेज में पढ़ाई के दौरान जोसेफ का मन नए-नए प्रयोग करने में लगता था तथा प्रोफेसर रहते हुए भी उनकी रूचि अनेक प्रयोगों में रही। जोसेफ ने स्टाफ के रूप में नेपोलियन की फ्रेंच आर्मी को भी इटली और  सार्डिनिया के द्वीपों पर अपनी सेवाएं दी। कुछ समय बाद उनकी तबीयत खराब रहने लगी, इसलिए उन्होंने सेना से इस्तीफा दे दिया। 1795 में उन्होंने अपने भाई क्लॉड के साथ मिलकर दोबारा विज्ञान के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। उनका पूरा-पूरा ध्यान फोटोग्राफी प्लेट डेवलपमेंट की प्रक्रिया पर लगा हुआ था। उन्होंने अपना आधा जीवन इसी खोज को समर्पित कर दिया था। 5 जुलाई 1833 को स्ट्रोक के कारण जोसेफ की मृत्यु हुई। जहां उन्होंने अपनी पहली फोटो निकाली थी, उससे थोड़ी दूर पर ही उन्हें दफनाया गया। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे इसिडोरे ने उनके मित्र लुईस के साथ काम करना जारी रखा और लुईस की सहायता से उनके पिता की स्मृति में पेंशन मिलना शुरू हुई।

लुईस डॉगर- लुइस का जन्म 18 नवंबर, 1787 को हुआ था।लुइस एक आर्किटेक्ट और थिएटर डिजाइनर थे। उनको दुनिया का पहला पैनोरमा पेंटर भी कहा जाता है। लुईस की मुलाकात 1819 में जोसेफ नाइसफोर से हुई। उनके साथ मिलकर उन्होंने फोटो डेवलपिंग की  डॉगेरोटाइप तकनीक ईजाद की। यह तकनीक इनके नाम से ही जानी जाती है उन्होंने जोसेफ के साथ 14 साल तक काम किया और इन्हीं की सहायता से जोसेफ की स्मृति में सरकार द्वारा पेंशन जारी की गई। लुईस के प्रयासों से ही यह तकनीक सरकार के संज्ञान में आई और सरकार ने उनकी उपलब्धि को जनता के बीच प्रस्तुत कर उन्हें सम्मानित किया।

सैंट-लूप-डे-वैरेनीज कस्बे में नाइसफोर की याद में बना एक स्मारक।

19 अगस्त को ही क्यों होता है फोटोग्राफी दिवस?

लुइस डॉगर ने फोटो खींचने की तकनीक ‘डागेरोटाइप’ को मान्यता दिलाने तथा आम जनता तक पहुंचाने के लिए सरकार से अनुरोध किया। 9 जनवरी, 1839 को फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज ने इस प्रक्रिया की शुरुआत की और 19 अगस्त, 1839 को इसे मान्यता दी और बिना किसी कॉपीराइट के लोगों को देने की आधिकारिक घोषणा की। इसी तकनीक के सम्मान में 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है।

कब से हुई फोटोग्राफी दिवस मनाने की शुरुआत-

विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाने की तैयारी की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया के फोटोग्राफर कोर्स्केआरा ने साल 2009 में की। 19 अगस्त 2010 को पहली बार ग्लोबल ऑनलाइन गैलरी का आयोजन किया गया। दुनिया भर के 250 से अधिक फोटोग्राफरों ने इस गैलरी में अपनी तस्वीरें भेजी और 100 से अधिक देशों के लोगों ने इस गैलरी की वेबसाइट को देखा। इसका उद्देश्य दुनिया भर के फोटोग्राफरों को एकजुट करना था।

दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर और सेल्फी की कहानी-

विश्व की पहली रंगीन तस्वीर स्कॉटलैंड के भौतिक शास्त्री जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने ली थी इस काम में single-lens रिफ्लेक्स कैमरा के अविष्कारक थॉमस सुटन ने उनकी सहायता की और अलग-अलग रंगों की फोटो प्लेट पर सेंस्टिविटी के हिसाब से फोटो उतारने की प्रक्रिया सेट की। यह प्रक्रिया ब्लैक एंड वाइट फोटो की हीलियोग्राफी प्रोसेस से प्रेरित थी। इसमें कलर फिल्टर की मदद से एक बार में एक रंग की तस्वीर ली जाती थी और फिर सभी रंगों की तस्वीरों को सुपरइंपोज करके एक पूरी तस्वीर बनाई जाती थी। 17 मई, 1861 में पहली रंगीन तस्वीर पेश की गई जो स्कॉटलैंड के टार्टन रिबन की थी। इसमें लाल, नीला और पीला रंग नजर आ रहा था। इसे तीनो रंगो के फिल्टर की मदद से उतारा गया था। यह बड़ी लंबी प्रक्रिया थी, जो लेंस और कैमरा रील के अविष्कार का कारण बनी।

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दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर, जिसे जैम्स क्लार्क मैक्सवेल ने 1861 में कैप्चर किया था।

दुनिया की पहली सेल्फी लेने का श्रेय अमेरिका के युवा व्यापारी रॉबर्ट कॉनेलियस को जाता है। राबर्ट ने अचानक कैमरा सेट किया और लेंस की कैप निकाली और क्लिक बटन दबाकर दौड़कर फ्रेम में खड़े हो गए। इसे ‘फर्स्ट लाइट पिक्चर’ का सम्मान मिला। हालांकि जिस समय यह तस्वीर ली गई, उस समय सेल्फी शब्द प्रचलन में भी नहीं था। इस शब्द का इतिहास सिर्फ 18 साल पुराना है और इसे पहली बार 2002 में ऑस्ट्रेलिया में एक लड़के ने self-portrait के लिए इस्तेमाल किया था।

200 साल पहले शुरू हुई तस्वीर लेने की प्रक्रिया उस वक्त जितनी जटिल हुआ करती थी वैज्ञानिकों के निरंतर प्रयोगों से अब उतनी ही सरल हो गई है। अब एक क्लिक में ही हम आसानी से फोटो खींच सकते हैं। आज के समय में हर व्यक्ति की जेब में कैमरा है और हर कोई फोटोग्राफर बन गया है।

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News Desk
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तमाम नकारात्मकताओं से दूर, हम भारत की सकारात्मक तस्वीर दिखाते हैं।

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