Tribal women of Madhya Pradesh made special soap – दोस्तों, आम, ककड़ी, टमाटर, तरबूज, पपीता, कॉफी और दार्जलिंग की चायपत्ती आदि चीजों के बारे में तो आपको पता ही होगा, लेकिन क्या कभी आपने इन चीजों से बने साबुन के बारे में सुना है…? नहीं सुना होगा, लेकिन आपको बता दें कि MP के खंडवा जिले की महिलाएँ इसी तरह के 20 से भी ज्यादा फ्लेवर के इको फ्रेंडली साबुन निर्मित करती हैं।
ये यूनिक साबुन 350 रुपए तक बिकता है। इतना ही नहीं, इस साबुन के बारे में विशेष बात तो ये है कि इसके लिये अमेरिका से भी ऑर्डर आ रहे हैं। तो चलिए जानते हैं आदिवासी महिलाओं द्वारा बनाए गए ख़ास साबुन की पूरी कहानी…
बकरी के दूध व जड़ी बूटियों से बना है ये साबुन
जब हाथ में हुनर हो, तो प्रसिद्धि अपने आप ही मिल जाती है, मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के पंधाना विधानसभा क्षेत्र के गाँव उदयपुर की रहने वाली आदिवासी महिलाओं ने भी अपने कौशल से ऐसा कमाल दिखा दिया कि उन्होंने विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई। यहाँ की महिलाओं ने जो साबुन बनाए उनके ऑर्डर अमेरिका से भी आ रहे हैं। अब आप सोंच रहे होंगे कि आखिर इन साबुन में ऐसी क्या खास बात है तो बता दें कि यह साबुन असल में बकरी के दूध व दूसरी कई जड़ी बूटियों से बनाए जाते हैं। आपको शायद जानकर आश्चर्य होगा कि ये साबुन जो महिलाएँ बनाती हैं, वे पूरा दिन खेतों में सोयाबीन काटने का काम करती हैं और फिर शाम के समय साबुन बनाया करती हैं।
कैसे हुई थी शुरुआत?
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पुणे के रहने वाले ली नामक युवक द्वारा उदयपुर गाँव में इस प्लांट की शुरुआत की गयी थी। जिसके लिए सर्वप्रथम इन महिलाओं को ये ख़ास साबुन बनाने का प्रशिक्षण प्रदान किया गया था। हालांकि प्रारम्भ में उनके बनाए कुछ उत्पाद सफल नहीं रहे, पर इनके बनाए साबुन काफी सफल रहे। रेखाबाई, ताराबाई और कालीबाई कैलाश इन तीनो महिलाओं ने मिलकर साबुन बनाने का आईडिया सोचा था। ली उनके इस छोटे प्लांट को मैनेज किया करता है। अब इन साबुनों की मांग लगातार बढ़ रही है तथा देश में बहुत से बड़े शहरों में भी ये साबुन डिमांड में हैं।
कई फ्लेवर में मिलते हैं ये इको फ्रेंडली साबुन
प्राकृतिक चीजों से बने ये साबुन बहुत से फ्लेवर में उपलब्ध हैं। इनमें खुशबूदार तेल, दार्जलिंग की चायपत्ती, आम, तरबूज इत्यादि चीजें मिलाकर निर्मित किया जाता है। इतना ही नहीं, इन साबुनों की पैकिंग इस प्रकार से की जाती है कि पर्यावरण को नुकसान ना पहुँचे। अतः इनकी पैकिंग जूट के पैकेट में की जाती है।
पहले परिवार वाले उड़ाते थे मजाक
अपने संघर्ष के उन दिनों को याद करके ये महिलाएँ बताती हैं कि प्रारंभ में जब उनका व्यवसाय सफल नहीं हो पा रहा था, तो परिवार वालों ने, गाँव में रहने वाले लोगों ने, सभी ने उनकी हँसी उड़ाई, इसलिए वे दिन के समय घर के काम तथा खेतों में काम किया करती थीं, फिर साबुन बनाने का काम तो रात में ही करती थीं। जब उनका व्यवसाय चल पड़ा है, तो अब उनके घर की आर्थिक हालात भी सुधर रहे हैं। इतना ही नहीं जो लोग पहले उनका मजाक उड़ाया करते थे, वे सभी लोग उनकी वाहवाही कर रहे हैं।
250-350 रुपए तक है साबुन की कीमत
इन आदिवासी महिलाओं ने अपनी मेहनत व कौशल से सफलता की कहानी लिख डाली है। इनके बनाए साबुन आज देश-विदेश में निर्यात हो रहे हैं और खूब पसंद भी किए जा रहे हैं। यही वजह है कि अमेरिका से भी इन्हें साबुन का ऑर्डर प्राप्त हुआ। इन साबुन के मूल्य की बात करें तो एक साबुन की कीमत 250-350 रुपए तक है। चूंकि यह साबुन केमिकल रहित है तथा आयुर्वेदिक व प्राकृतिक चीजों से बनाया गया है, अतः इस साबुन की मार्केट में काफी मांग है। जैसे-जैसे लोग इसे इस्तेमाल कर रहे हैं, इसकी डिमांड निरन्तर बढ़ रही है।
CM शिवराज सिंह चौहान ने भी किया ट्वीट
इस बारे में CM शिवराज सिंह चौहान ने भी ट्वीटर के माध्यम से साबुन बनाने वाली उन आदिवासी महिलाओं को खूब सराहा। उन्होंने ट्वीट किया कि “खंडवा के पंधाना विधानसभा के उदयपुर गाँव की बहनों ने अनूठा आयुर्वेदिक साबुन बनाकर अपनी कामयाबी की गूंज अमेरिका तक पहुँचा दिया है। प्रदेश आप पर गर्व अनुभव करता है! बहनों श्रीमती रेखाबाई जी, श्रीमती ताराबाई जी, श्रीमती कालीबाई जी को उनकी इस सफलता हेतु हार्दिक बधाई!” Tribal women of Madhya Pradesh made special soap