भारत के किसी भी गांव से आने वाले युवाओं के लिए शहर में पढ़ाई करके नौकरी करना बेहद चुनौतीपूर्ण काम होता है, क्योंकि उसे शहरों की जिंदगी को अपनाने थोड़ा समय लगता है। वहीं अगर कोई व्यक्ति आदिवासी गांव से ताल्लुक रखता हो, तो उसे अपने साथ अपने समुदाय को भी आगे लेकर बढ़ना होता है।
ऐसा ही कुछ किया प्राजक्ता अदमाने (Prajakta Admane) नामक एक युवा लड़की ने, जिसने शहर जाकर पढ़ाई करके अच्छी नौकरी हासिल की थी। लेकिन प्राजक्ता को खुद के साथ साथ अपने आदिवासी समुदाय को भी आगे लेकर बढ़ना था, लिहाजा उन्होंने आरामदायक नौकरी छोड़कर गांव में मधुमक्खी पालन का काम शुरू कर दिया। आज प्राजक्ता की संघर्ष लाखों लोगों के लिए प्रेरणादायक कहानी बन चुका है, जिससे आपको भी बहुत ही सीखने को मिलेगा।
प्रेरणा देती है प्राजक्ता (Prajakta Admane) का कहानी
महाराष्ट्र के आदिवासी ज़िले गड़चिरोली से ताल्लुक रखने वाली प्राजक्ता ने फार्मेसी और एमबीए में डिग्री हासिल की है, जिसके बाद उन्होंने कुछ साल पुणे की एक कंपनी में काम किया। लेकिन प्राजक्ता का मन आरामदायक नौकरी पाकर भी शांत नहीं था, क्योंकि उन्हें हमेशा से कुछ अलग और बेहतरीन करने की चाह थी।
ऐसे में प्राजक्ता ने अपनी आरामदायक नौकरी छोड़कर वापस गड़चिरोली आने का फैसला किया और अपने गांव जाकर मधुमक्खी पालन (Beekeeping) का व्यापार शुरू कर दिया। गड़चिरोली महाराष्ट्र के उन ज़िलों में से एक है, जहां चारों तरफ हरियाली और घने वन मौजूद हैं। ऐसे में प्राजक्ता ने अपने गांव लौटकर मधुमक्खी पालन का रचनात्मक काम शुरू किया, जिसमें उनके गांव के लोग भी खुशी खुशी शामिल होने लगे।
मधुमक्खी पालन से मुनाफा
प्राजक्ता ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर गांव में बी-कीपर (Bee Keeper) के रूप में काम शुरू कर दिया, जिसके लिए उन्होंने कई तरह की रिसर्च की। प्राजक्ता इस फील्ड में नई थी, इसलिए उन्होंने मधुमक्खी पालन और उससे होने वाले फायदों के बारे में सारी जानकारी प्राप्त की।
इसके बाद प्राजक्ता ने राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड से व्यवसायिक प्रशिक्षण पूरा किया, जिसके जरिए वह कश्मीर से आंध्र प्रदेश तक भारत के अलग अलग मधुमक्खी पालकों के संपर्क में आ गई। उन मधुमक्खी पालकों ने प्राजक्ता को बी-कीपर (Bee Keeper) बनने की बारीकियां सीखा दी, जिसके बाद प्राजक्ता को अपना व्यापार शुरू करने में ज्यादा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा।
प्राजक्ता ने मधुमक्खियों को पालने के लिए लकड़ी के बॉक्स तैयार किए, जिसमें मधुमक्खियों की खास देखभाल की जाती है। आज प्राजक्ता के पास 50 से भी ज्यादा लकड़ी के बॉक्स मौजूद हैं, जिसमें सैकड़ों मधुमक्खियां शहद बनाने का काम करती हैं।
प्राजक्ता मधुमक्खी से प्राप्त शहद को विभिन्न प्रकार के फूलों की मदद से फ्लेवर प्रदान करती हैं, जिसकी वजह से ग्राहकों को उनके द्वारा तैयार शहद काफी पसंद आता है। प्राजक्ता फ्लेवर फुल शहद तैयार करने के लिए बेरी, नीलगिरी, लिची, सूरजमुखी, तुलसी और शीशम जैसे फलों और फूलों का इस्तेमाल करती हैं, जिससे शरीर को ढेर सारे फायदे भी मिलते हैं।
बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है शहद
प्राजक्ता का फ्लेवर वाले शहद का सेवन करने से ग्राहकों को कई तरह की बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है, जिसमें खांसी और जुकाम जैसी समस्याएं शामिल हैं। बेरी फ्लेवर वाले शहद का सेवन डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद होता है, क्योंकि उसमें अत्यधिक मिठास नहीं होती है। वहीं शीशम के फ्लेवर वाला शहद दिल के लिए लाभदायक होता है, क्योंकि यह धमनियों में ब्लॉकेज की समस्या नहीं होने देता है। इसके अलावा नीलगिरी फ्लेवर का शहद खाने से शरीर को सर्दी, खांसी और वायरल जैसी समस्याओं से लड़ने में मदद मिलती है।
अच्छा मुनाफा और लोगों को रोज़गार
प्राजक्ता द्वारा तैयार किया जा रहा फ्लेवर फुल शहद बाजार में कस्तूरी शहद के नाम से बेचा जाता है, जिसकी एक बोतल की कीमत 60 रुपए से लेकर 380 रुपए के बीच है। प्राजक्ता मधुमक्खियों द्वारा तैयार शहद के अलावा उनका विष बेचने का भी काम करती हैं, जो गाठिया समेत कई तरह की बीमारियों का इलाज और दवाई तैयार करने के काम आता है।
प्राजक्ता अपने इस शहद के व्यापार से सालाना 6 से 7 लाख रुपए का मुनाफा कमा रही है, जिसमें से वह पैकेजिंग और वितरण के लिए 2 से 2.5 लाख रुपए का निवेश करती हैं। इसके अलावा प्राजक्ता अपने गांव और ज़िले के बेरोज़गार युवाओं व महिलाओं को रोज़गार देने का काम कर रही हैं, इसके साथ ही वह लोगों को मधुमक्खी पालन का तरीका भी सीखा रही हैं।
प्राजक्ता अदमाने (Prajakta Admane) की इस मुहिम की वजह से गड़चिरोली ज़िले को मधुमक्खी पालन के व्यापार में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं, जिससे युवाओं के बीच बिजनेस की समझ बढ़ रही है। इसके साथ ही प्राजक्ता महिलाओं, बेरोज़गारों, सेल्फ-हेल्फ ग्रुप्स और युवाओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही हैं, ताकि बी-कीपर के व्यापार को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जा सके।