भारत सिर्फ़ धार्मिक विविधता के लिए ही नहीं बल्कि अपनी रूढ़िवादी सोच के लिए भी जाना जाता है, जहाँ महिलाओं के लिए अनेक प्रकार के नियम कानून बनाए जाते थे। हालांकि बदलते भारत की तस्वीर आज हमारे सामने है, लेकिन कुछ साल पहले तक महिलाओं का अपनी मर्जी के हिसाब से काम करना भी मुश्किल था।
ऐसे में पुणे की एक महिला जब सड़कों पर ऑटो लेकर उतरी, तो उन्हें देखकर रूढ़िवादी सोच रखने वाले लोगों के मुंह पर जोरदार तमाचा लगा। आइए जानते हैं उस साहसी महिला की कहानी, जो बनी स्वतंत्र भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर-
रूढ़िवादी सोच को ठोकर मारने वाली महिला की कहानी
पुणे की रहने वाले शीला दावरे (Shila Dawre) जब 80 के दशक में सलवार कमीज पहन कर सड़कों पर ऑटो लेकर निकली, तो उन्हें देखकर लोगों ने तरह-तरह की बातें करना शुरू कर दिया था। उस दौर में पुणे समेत पूरे भारत की सड़कों में सिर्फ़ पुरुष ऑटो चालाक हुआ करते थे, ऐसे में शीला का सड़कों पर ऑटो चलाना रूढ़िवादी सोच रखने वाले लोगों को बिल्कुल पसंद नहीं आया।
लेकिन तमाम मुश्किलों के बावजूद भी नहीं शीला दावरे न सिर्फ़ पुणे की सड़कों पर ऑटो दौड़ाया, बल्कि साल 1988 में ‘लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर के रूप में अपना नाम दर्ज करवाने में भी कामयाब रहीं। शीला का जन्म महाराष्ट्र के परभनी ज़िले में हुआ था, लेकिन निजी कारणों की वज़ह से महज़ 18 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर परिवार छोड़ दिया था।
इसके बाद किसी तरह शीला पुणे पहुँची और अपने भविष्य के बारे में सोचने लगी, क्योंकि उनके पास पेट भरने के लिए न तो खाना था और न ही सिर छिपाने के लिए घर था। ऐसे में उन्होंने पुणे में पुरुषों को ऑटो चलाते हुए देखा, जिसके बाद उनके मन में ऑटो चलाकर अपना ख़र्च पूरा करने का ख़्याल गया। लेकिन शीला के इस फैसले का पुणे निवासियों ने जमकर विरोध किया, क्योंकि वह एक महिला को ऑटो चालक के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते थे।
ऑटो किराए पर देने से इंकार करते थे मालिक
शीला दावेर ने लोगों के तमाम विरोध के बावजूद भी ऑटो चालक के रूप में काम करने का फ़ैसला तो ले लिया था, लेकिन उनकी मुश्किल अभी भी ख़त्म नहीं हुई थी। दरअसल रूढ़िवादी सोच रखने वाले कुछ लोगों ने ऑटो मालिकों को शीला को किराए पर ऑटो देने से माना कर दिया था।
इसके बाद शीला कई दिनों तक को ऐसे ही ऑटो की तलाश करती रहीं और आखिरकार उन्हें ऑटो किराए पर चालने के लिए मिल गया। इसके बाद शीला ने कुछ दिन किराए पर ऑटो चलाया और बाद में अपना ख़ुद का ऑटो खरीद लिया, ताकि दोबारा कोई उनके रास्ते में मुश्किलें न खड़ी कर सके।
ऑटो के सफ़र में मिला हमसफर
पुणे के सड़कों पर ऑटो चलाती शीला की मुलाकात शिरीष नामक एक लड़के से हुई, जो शीला की तरह एक ऑटो चालक थे। इस तरह शिरीष और शीला के बीच पहले दोस्ती हुई, जो कुछ ही दिनों में प्यार में बदल गई। साल 2001 तक शिरीष और शीला अलग-अलग ऑटो चलाते थे, लेकिन फिर दोनों ने साथ मिलकर काम करने का फ़ैसला किया।
इसके बाद शीला और शिरीष ने शादी कर ली और आज इस ऑटो कपल की दो बेटियाँ भी हैं। शादी के बाद शीला और शिरीष ने साथ मिलकर एक ट्रैवल कंपनी की नींव रखी, जिसके जरिए वह अच्छा खासा बिजनेस कर रहे हैं।
इसके अलावा वर्तमान में शीला पुणे की दूसरी महिलाओं को ऑटो चलाकर आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करती हैं और उनके इस काम में शिरीष उनका पूरा साथ देते हैं। शीला चाहती हैं कि वह आगे चलकर महिलाओं के लिए एक ड्राइविंग एकेडमी खोले, ताकि महिलाओं को अपनी पसंद से ऑटो सीखने और चलाने के लिए प्लेटफॉर्म मिल सके।